अंगना ने किया बहुभाषीय पावस काव्य गोष्ठी का आयोजन, 11 भाषाओं की फुहार से सराबोर हुई प्रकृति
अंगना के मंच से बहुभाषीय पावस काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन हुआ जिसमे 11 भाषाओं की कविताएं प्रस्तुत की गईं। गोष्ठी का शुभारंभ रागिनी भूषण की सरस्वती वंदना से हुआ। सभी साहित्यकारों ने वर्षा और पावस के बूंदों से नहाए हुए शब्दों से मंच को सराबोर कर दिया।

जमशेदपुर, जासं। अंगना के मंच से बहुभाषीय पावस काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन हुआ, जिसमे 11 भाषाओं की कविताएं प्रस्तुत की गईं। गोष्ठी का शुभारंभ रागिनी भूषण की सरस्वती वंदना से हुआ। सभी साहित्यकारों ने वर्षा और पावस के बूंदों से नहाए हुए शब्दों से मंच को सराबोर कर दिया। वर्षा के बहाने सामाजिक सरोकार की जमकर आवाज उठी।
इस गोष्ठी में संथाली में लखाई बास्के ने "हहड़ा रे धर्मो जगूड़ी..." से प्रकृति की स्तुति की। अशोक शुभदर्शी ने कविता "मेला पढ़ा" थकलो हारलो लोग, आरो ई मेला, खाली जेब, आरो ई मेला/ ई पार हम्म, ऊ पार मेला," डा. रागिनी भूषण ने "पुलकिता कुसुमिता/ कामना प्रतीक्षिता।।" संस्कृत कविता तो बसुधारा ने अंग्रेज़ी में "स्टिचिंग द होम" की पंक्तियां "home is not arrival/not a place, not even hope or dream/ It is the union of time and mind के साथ वाहवाही लूटी। उर्दू के शायर गौहर अज़ीज़ ने सुंदर शेर कहे "तहज़ीब जो हमारी है बाकी रहे सदा /गंगा में तुम नहाओ तो मैं भी वज़ू करूं" मैथिली में श्यामल सुमन की कविता "सब सखियन के साजन आयल, सभहक घर मे बाजय पायल/हंसी मुंह पर ओढ़ि लेने छी, लेकिन भीतर सं छी घायल।" सराही गई।
इन्होंने भी भरे कविता के रंग
वीणा पांडेय ने भोजपुरी में गीत गाकर वर्षा को बुलाया तो नीता सागर ने बंगला भाषा में सबका दिल लुभाया। वरुण प्रभात अपनी हिंदी कविता "इन रास्तों का अंत नही होता/और रोटी की भूख तुम्हें थकने नहीं देती" के साथ रोटी के सरोकार से थे, तो लक्ष्मण प्रसाद ने मगही की कविता "उठल देगा के ज़ब ड़गर रोक ले, तोप तलवार के नजर रोक ले, मत माने पर एहे सांच हे यादव जेकर ज़ी जहर घोल दे" के साथ रंग जमाया। अंत मे डा. संध्या सूफी ने बादल को धरती का बेटा के नवीन बिम्ब के साथ कविता "सावन की बूंदों को मैंने आंखों से झरते देखा है" पंक्तियों के साथ गाया। बहुभाषीय पावस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डा. रागिनी भूषण ने किया, जबकि संचालन डा. संध्या सिन्हा और धन्यवाद ज्ञापन वीणा पांडेय ने किया।
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