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    जमशेदपुर में एनीमिया की चपेट में हर दूसरी गर्भवती, आज से चलेगा विशेष अभियान

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 12:16 PM (IST)

    जमशेदपुर में एनीमिया (Anaemia) गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर समस्या है, जहां लगभग 55-60% महिलाएं इससे पीड़ित हैं। राज्य सरकार ने 15 से 21 दिसंबर तक 'एन ...और पढ़ें

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    तेजी से बढ़ रही एनीमिया की समस्या। (जागरण)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया झारखंड के लिए लगातार गंभीर होती जा रही स्वास्थ्य समस्या है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–5 के अनुसार पूर्वी सिंहभूम जिले में 55 से 60 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।

    यानी जिले में हर दूसरी गर्भवती महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी पाई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि एनीमिया न केवल महिला के स्वास्थ्य को कमजोर करता है, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के जीवन और भविष्य पर भी गहरा असर डालता है।

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    इसी चुनौती को देखते हुए राज्य सरकार ने 15 से 21 दिसंबर तक ‘एनीमिया मुक्त झारखंड सप्ताह’ चलाने का निर्णय लिया है। इस विशेष अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं की पहचान, जांच, उपचार और जागरूकता को प्राथमिकता दी जाएगी।

    क्या है एनीमिया और क्यों है यह खतरनाक

    सिविल सर्जन डॉ. साहिर पाल ने बताया कि एनीमिया तब होता है जब शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम हो जाता है। गर्भावस्था के दौरान यह स्थिति और खतरनाक हो जाती है। एनीमिक महिलाओं में अत्यधिक थकान, सिर चकराना, सांस फूलना, बार-बार संक्रमण और प्रसव के समय अधिक रक्तस्राव की आशंका रहती है।

    कई मामलों में यह स्थिति मातृ मृत्यु का कारण भी बन सकती है। समय पर जांच और इलाज न होने से एनीमिया गंभीर रूप ले लेता है।

    गर्भ में पल रहे नवजात पर सीधा असर

    स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार एनीमिक गर्भवती महिला से जन्म लेने वाले बच्चों में जन्म के समय कम वजन, समय से पहले प्रसव, शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा और नवजात मृत्यु का खतरा अधिक रहता है।

    इसके अलावा ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, जिससे वे बचपन में बार-बार बीमार पड़ते हैं।

    जन्म के बाद भी नहीं खत्म होती समस्या

    यदि गर्भावस्था के दौरान एनीमिया का समुचित इलाज नहीं किया गया, तो प्रसव के बाद मां में प्रसवोत्तर एनीमिया, अत्यधिक कमजोरी और स्तनपान के लिए दूध की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसका सीधा असर शिशु के पोषण और विकास पर पड़ता है।

    एनीमिया मुक्त सप्ताह से जगी उम्मीद

    15 से 21 दिसंबर तक चलने वाले अभियान के दौरान गर्भवती महिलाओं की हीमोग्लोबिन जांच, आयरन-फोलिक एसिड गोलियों का वितरण, पहले से चिह्नित महिलाओं का फालोअप और एएमबी टी-4 मोबाइल अनुप्रयोग तथा यू-विन प्रणाली के माध्यम से निगरानी की जाएगी।

    स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि समय पर जांच और सही उपचार से एनीमिया पर नियंत्रण पाया जा सकता है और स्वस्थ मां-स्वस्थ शिशु का लक्ष्य साकार किया जा सकता है।