यहां हर घर विभूति बाबू के उपन्यास के नाम पर
घाटशिला स्थित विभूति स्मृति संसद परिसर स्थित हर घर महान साहित्यकार विभूति बाबू के उपन्यास के नाम पर है। ...और पढ़ें

विकास श्रीवास्तव, जमशेदपुर। महान बांग्ला साहित्यकार विभूति भूषण बंदोपाध्याय की कर्मभूमि घाटशिला में उनकी यादों को सहेजने के कई प्रयास किए गए। सोच अच्छी थी। कुछ प्रयास परवान चढ़े तो कुछ शुरुआती उत्साह के बाद दम तोड़ने लगे। घाटशिला में कॉलेज रोड स्थित एक बड़े से परिसर में बंगलानुमा भवन इनमें से एक है। भवन के ऊपरी हिस्से में लिखा है- विभूति स्मृति संस्कृति संसद।' इस भवन के इर्द-गिर्द जितने भी घर हैं, उनके नाम विभूति बाबू के उपन्यास के नाम पर हैं। अरण्यक, अपूर्व पथ, चंद्रप्रहर, इच्छामति सहित करीब एक दर्जन कृतियां इन भवनो के अस्तित्व के साथ जुड़ी रहेंगी।
फिल्म, कला-साहित्य से जुड़ी हस्तियों ने किए थे प्रयास
विभूति स्मृति संस्कृति संसद व उसके आसपास उपन्यासों के नाम पर रखे गए भवन के नाम जानने की कोशिश पर उस शख्स के बारे में जानकारी हुई। नाम प्रो. शीतल भट्टाचार्जी। पश्चिम बंगाल के रघुनाथपुर में कॉलेज के प्रोफेसर थे। विभूति बाबू के जीवन काल में घाटशिला में होने वाली साहित्यिक गतिविधियों में आना-जाना लगा रहता था। 1950 में विभूति बाबू के निधन में बाद घाटशिला में उनकी स्मृतियों को सहेजने की पहल हुई। प्रो. शीतल भट्टाचार्जी ने इसके लिए घाटशिला से कोलकाता तक कई लोगों से मिलकर प्रस्ताव रखा। वह समय था जब बंगाल के साहित्य, कला व फिल्म जगत से जुड़ी हस्तियां यहां से खुद को जोड़े रखने में फख्र महसूस करती थीं।
बांग्ला-हिंदी फिल्मों के सौमित्र चटर्जी, उत्तम कुमार सहित कई बड़े नाम आगे आए और आर्थिक सहयोग किया। मौजूद भवन सहित आसपास को मिलाकर बड़ी जमीन खरीद विभूति स्मृति संस्कृति संसद नाम से ट्रस्ट का गठन किया गया। उद्देश्य था भवन में विभूति बाबू के नाम पर सामाजिक-साहित्यिक गतिविधियों का संचालन किया जाएगा और इसमें ट्रस्ट के सदस्य योगदान देंगे। ट्रस्ट की ओर से सदस्यों को भूखंड आवंटित किए गए। समय के साथ उत्साह में कमी आई और कई सदस्यों ने बिचौलियों के हाथों अपने भूखंड हस्तांतरित कर दिए। प्रो. शीतल भट्टाचार्जी के निधन के बाद रहा-सहा उत्साह भी जाता रहा। इतना जरूर है कि जिन लोगों ने यहां घर बनाए उन्होंने विभूति बाबू के उपन्यास के नाम पर अपने घरों के नाम रखे। पांच-छह घरों में लॉज भी बने हैं जहां पर्यटक आकर ठहरते भी हैं।
स्मृति भवन में ताले, यादें ही शेष
विभूति स्मृति संसद के हर कमरे में अब ताले लटके हैं। समय के साथ भवन जीर्ण-शीर्ण होने लगा है। पीछे की ओर झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। प्रांगण में लगी मूर्ति ही इस बात की तस्दीक कर रही है कि विभूति बाबू की स्मृतियों को सहेजने के प्रयास हुए थे।

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