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    प्रद्युम्न जन्म की कथा सुन भाव-विभोर हुए श्रद्धालु

    By Edited By: Updated: Mon, 24 Sep 2012 01:55 AM (IST)

    जागरण प्रतिनिधि, जमशेदपुर : साकची स्थित अग्रसेन भवन में रविवार को भक्ति रस की ऐसी बयार बही कि लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूब गए। श्री श्याम भक्त मंडल, भालूबासा के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में सातवें दिन रायपुर (छत्तीसगढ़) से आए पं. सत्यनारायण शास्त्री कथा को आगे बढ़ाते हुए प्रद्युम्न जन्म का वर्णन किया।

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    शनिवार को जहां उन्होंने रुक्मणी विवाह का वृतांत सुनाया था वहीं रविवार को प्रद्युम्न के जन्म का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि जब भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जन्म हुआ तो द्वारिका नगरी में चहुंओर जश्न मनाया जाने लगा। इसी बीच जरासंध के इशारे पर शंबासुर प्रद्युम्न को उठा ले गया और समुद्र में फेंक दिया। समुद्र के अंदर एक मछली ने जैसे ही मुंह खोला वैसे ही प्रद्युम्न उसके मुंह में प्रवेश कर उदरस्थ हो गए। उस मछली को एक मछवारे ने पकड़ा और फिर उसे शंबासुर को भेंट कर दिया। शंबासुर के रसोइये ने जब मछली को काटा तो उसके अंदर से प्रद्युम्न बाहर निकल आए। यह देखकर शंबासुर ने प्रद्युम्न को विद्यावती नामक सेविका को दे दिया। विद्यावती जो कि पूर्व जन्म में कामदेव की पत्नी रति थी, ने प्रद्युम्न को बेटे की तरह पालने लगी। बाद में देवर्षि नारद ने उसे बताया कि जिसे तुम बेटा बनाकर पाल रही हो वह तुम्हारा पूर्व जन्म का पति कामदेव है। प्रद्युम्न बड़े होने पर विद्यावती के साथ द्वारिका पहुंचे। इसके बाद शास्त्री जी ने भगवान श्रीकृष्ण व जामवंत युद्ध का वर्णन करते हुए कृष्ण व जामवंती के विवाह का व्याख्यान किया।

    भागवत कथा प्रारंभ होने से पूर्व शास्त्री जी के शिष्यों ने भजनों की प्रस्तुति की। इस दौरान उपस्थित श्रद्धालु महिलाएं नाचने लगीं और पुरुष झूमने लगे। सोमवार को पूर्णाहुति के साथ भागवत कथा का समापन होगा। इस दौरान भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाएगा।

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