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    घर की चकिया कोई न पूजे जेका पीसा खाय

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    Updated: Sun, 03 Jun 2012 08:52 AM (IST)

    संवाददाता, जमशेदपुर : 'पाथर पूजे हरि मिलें तो मैं पूजू पहाड़, घर की चकिया कोई न पूजे जेका पीसा खाय' । कबीर दास ने इन वाक्यों के माध्यम से समाज व्याप्त कुरीतियों और रूढि़यों को दूर करने का पूरा प्रयास किया। वे जीवन भर सामाजिक बुराई को दूर करते रहे। उन्होंने हर वर्ग की रूढि़यों पर प्रहार किया। समाज को जागृत किया और संदेश दिया रूढि़यों से ऊपर उठकर और मन को पवित्र करके ही परमात्मा को पाया जा सकता है।

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    उपरोक्त बातें करीम सिटी कॉलेज के पूर्व आचार्य प्रो. सीएस प्रसाद ने कहीं। श्री प्रसाद सीपी कबीरपंथी धर्मदास भजन मंदिर, सोनारी में आयोजित सद्गुरु कबीर प्रगटोत्सव को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। विशिष्ट अतिथि आचार्य कृष्ण देव व समाजसेवी मानिक लाल साहू ने भी कबीर के जीवन व उनके कृत्यों पर प्रकाश डाला। दामाखेड़ा छत्तीसगढ़ से आई साध्वी सुशीला व गोमती ने कबीर पंथ के बारे में विस्तार से बताया।

    इसके पूर्व सुबह प्रभातफेरी निकाली गई। प्रभातफेरी सोनारी के अनेक क्षेत्रों का भ्रमण करके पुन: मंदिर पहुंची। इसमें लगभग 200 कबीर पंथी शामिल हुए। कार्यक्रम के आयोजन में पारस दास, सुकृत दास, राम बिलास दास, कुंज बिहारी दास, चंद्रिका प्रसाद, चेतन दास, केशव दास, विष्णु दास मानिकपुरी व पुहूप दास आदि सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

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