झारखंड में सांप काटने के हर साल होती है 4 हजार मौत, बचाव और जागरूकता ही इलाज
निर्मल प्रसाद के अनुसार सांप किसानों के मित्र हैं और चूहों से फसलों को बचाते हैं फिर भी भारत में हर साल सर्पदंश से लगभग 50000 लोग मरते हैं। झारखंड में हर वर्ष लगभग 4000 मौतें होती हैं जिनमें से पूर्वी सिंहभूम में 60 मौतें होती हैं। जागरूकता की कमी और अंधविश्वास के कारण मौतें अधिक होती हैं।

निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर। सांप हमारा मित्र होता है जो भूमि संरक्षण में बहुत सहयोग का काम करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में चूहे से फसलों को बर्बाद होने से सांप ही बचाते हैं। इसके बावजूद देश में सर्पदंश से हर साल 50 हजार लोगों की मौत होती है। झारखंड में वर्ष 2024-25 में यह आंकड़ा 4000 जबकि पूर्वी सिंहभूम जिले में औसतन 60 मौतें है।
सांप 15 जुलाई से 15 सितंबर के बीच सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। इसका मुख्य कारण है मानसून। सांप अधिकतर मिट्टी के बिल, नमी वाले जगहों, जलाशयों के आसपास और पुराने कबाड़ रखने वाले जगहों, पुआल व लकड़ी रखने वाले स्थानों पर घर बनाकर रहते हैं।
मानसून में जब इनके बिलों में पानी भरता है तो भोजन और नए आवास की तलाश में ये बाहर निकलते हैं। कभी भोजन समझकर तो कभी खुद के बचाव के लिए ये हमलावर हो जाते हैं।
इसलिए सांपों को लेकर जागरूकता जरूरी है ताकि जरूरतमंदों को बचाया जा सके। क्योंकि झारखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी, खराब निगरानी सिस्टम और ग्रामीण इलाकों में झाड़-फूंक, अंधविश्वास व जागरूकता की कमी के कारण सबसे अधिक मौतें होती है।
देश में हर साल 50 हजार होती है मौत
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल 50 हजार लोगों की सर्पदंश से मौत होती है। इसमें प्रतिवर्ष 1000 की बढ़ोतरी हो रही है। इसकी रोकथाम के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय से सभी राज्यों के सचिवों को पत्र भेजकर स्वास्थ्य केंद्रों में एंटी वेनम दवा की उपलब्धता रखने का निर्देश दिया है ताकि वर्ष 2030 तक सर्पदंश के आंकड़ों को आधा किया जा सके।
झारखंड में पाए जाते हैं ये चार प्रजाति के विषैले सांप
करैत : यह चार रंगों में काले में पीला धारी, काले में सफेद धारी, चमकीले भूरे में सफेद धारी व भूरे में सफेद धारी में होती है। यह एक बार में छह मिलीग्राम विष छोड़ता है। करैत अक्सर सोए हुए व्यक्ति के पास जाकर छिप जाता है और उसके हिलने में काटता है लेकिन इसके काटने पर दर्द नहीं होता। यह न्यूरो टाक्सिक विष छोड़ता है जिससे मस्तिष्क के तंत्रिका तंत्र प्रभावित करता है।
रसेल वाइपर : यह भूरे रंग का चित्तेदार सांप होता है जो झारखंड के सभी जिलों में सबसे ज्यादा पाए जाते हैं और झारखंड में कुल मौत के आंकड़ों में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी इस सांप के काटने से होती है। यह एक बार में आठ मिलीग्राम विष छोड़ता है। यह सांप हिस..स की आवाज के साथ अटैक करता है और आठ का आकार की तरह भागता है। यह हेमो-टाक्सिक विष छोड़ता है जो हमारे खून में मौजूद प्लाज्मा को नष्ट कर देता है।
कोबरा (नाग) : यह तालाब, नदी किनारे या नमी वाले क्षेत्रों में मेढ़क, मछली या छोटे सांपों के बच्चों को खाने के लिए रहता है। यह झारखंड में बंगाल के सीमावर्ती इलाकों जैसे साहिबगंज, पाकुड, झारग्राम, चाकुलिया, धालभूमगढ़ जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है। यह एक बार में सबसे ज्यादा 15 मिलीग्राम न्यूरोटॉक्सिक विष छोड़ता है।
इंडियन शाे स्केल वाइपर : ये उत्तरी बिहार, चंपारण व मधुबनी के सीमावर्ती क्षेत्रों के अलावा झारखंड के सभी जिलों में पाया जाता है। यह भी पत्थर, पुआल के ढ़ेर, पुरानी लकड़ी के आसपास रहता है। यह एक बार में 40 मिलीग्राम तक विष छोड़ सकता है।
ये हैं विषहीन सांप
धामन, अजगर, राजस्थानी बोआ व दोमुंहा जैसा सांप। धामन सांप के काटने से काटे हुए स्थान पर जलन होती है लेकिन यह विषहीन सर्प की श्रेणी में आता है। जंगलों की कटाई और नए कल-करखानों खुलने के कारण ज्यादातर अजगर, धामिन व राजस्थानी बोआ (काले में सफेद धारी व काले रंग में चितकबरा) सांप भोजन की तलाश में आ जाते हैं। राजस्थानी बोआ छोटे आकार में एक से डेढ़ फीट का मोटा सांप रहता है। इसके सर्पदंश घबराने की जरूरत नहीं सिर्फ निगरानी की जरूरत है।
कैसे जानेंगे कि सांप विषैला या विषहीन है
ग्रामीण क्षेत्रों में या रात के समय सांप ने यदि काटा तो काटे हुए स्थान पर उसके दांतों के आकार से हम पहचान सकते हैं कि सांप विषैला था या विषहीन जैसे : काटे वाली जगह पर छोटे-छोटे कई दांतों का दाग है तो वह विषहीन सांप है।
छोटे दांतों के बीच दो मोटे दांतों का दाग है तो वह विषैला सांप है। काटे वाले स्थान पर फफोला होना, जलन, लालिमा होना लक्षण विषैला सांप, साथ में तेज दर्द की शिकायत होगी।
सांप की आंखें यदि इलिप्स की तरह है तो विषैला है, यदि पूरा गोल है तो विषहीन है। सिर यदि चौड़ा और त्रिकोण आकार में है तो वह विषैला है। यदि गोलाकार आकार में होता है तो विषहीन होता है।
सांप का विष जब तक काटे गए व्यक्ति के खून में या शरीर के अंदर नहीं मिलता है, तब तक व्यक्ति को नुकसान नहीं होता है इसलिए कई बार ग्रामीण सांप को काटने पर उसे मार देते हैं। ऐसी स्थिति में मरे हुए सांप को लेकर डॉक्टर के पास जाए ताकि इलाज करने में आसानी हो।
डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले किस तरह का करें इलाज
यदि टाइट कपड़े पहने हैं तो उसे खोल दें। सांप द्वारा काटा हुआ हिस्सा को हृदय की ऊंचाई से नीचे रखे। काटे हुए स्थान को कभी भी कपड़े से टाइट नहीं बांधना है। घायल व्यक्ति को शांत रखते हुए उसे सांत्वना दे कि कुछ नहीं हुआ ताकि शरीर का रक्तचाप नहीं बढ़े और उसकी इम्यून सिस्टम बेहतर रहे। घायल व्यक्ति को सोने नहीं देना है।
चार घंटे के अंदर एंटी वेनम का इंजेक्शन लगवाना अनिवार्य है। फिल्मों की तरह जहर को चूस कर निकालने या काटे गए स्थान पर चीरा नहीं लगाना है। घायल व्यक्ति को चाय-कॉफी या दर्द निवारक दवा नहीं देना है। ठंडा या गर्म की सिकाई नहीं करना है और न ही कोई क्रीम लगाना है। कटे हुए स्थान पर हल्का बैंडेज बांधने के बाद स्प्लिंट (कमानी देकर) बांधना है ताकि उस हिस्से का मूवमेंट ज्यादा न हो।
जागरूकता की कमी के कारण हर साल सर्पदंश में मौत के सबसे ज्यादा मामले आते हैं इसलिए स्वास्थ्य विभाग के निर्देश पर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत एएनएम, सहिया दीदीयों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। - संतोष कुमार, प्रशिक्षक सह इंस्पेक्टर, रेल सिविल डिफेंस
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