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    'आध्यात्मिक होने का अर्थ स्वामित्व भाव का त्याग'

    By Edited By:
    Updated: Tue, 08 Dec 2015 01:03 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आत्मीय वैभव विकास केंद्र में कठोपनिषद पर चल रहे प्रवचन में सोमवार को स्व

    जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आत्मीय वैभव विकास केंद्र में कठोपनिषद पर चल रहे प्रवचन में सोमवार को स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने कहा कि धार्मिक व आध्यात्मिक होने में अंतर है। धार्मिक व्यक्ति का भगवान उससे दूर आकाश में कहीं रहता है। वह उनकी पूजा द्रव्यों द्वारा करता है। यह कार्य वह अपनी इच्छा की पूर्ति या किसी कष्ट से निवृत्ति के लिए करता है। इस प्रक्रिया में बहुत दिनों के बाद जब वह जानना चाहता है कि भगवान क्या है, कहां है, तब वह आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता है। आध्यात्मिक होने का अर्थ स्वामित्व भाव को त्यागना है। आध्यात्मिक व्यक्ति मानता है ईश्वर सबके हृदय में रहते हैं और सर्वव्यापी हैं। इस सोच से उसका हृदय विशाल होता है और वह सबके प्रति समभाव रखता है। उसकी साधना मन को शुद्ध करने में रहती है। ऐसा व्यक्ति पक्षपात से रहित रहता है। उसे न कहीं आसक्ति रहती है और न ही किसी से घृणा। किसी भी परिस्थिति में अप्रभावित रहना आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक व्यक्ति की संपत्ति आंतरिक होती है, बाहरी नहीं। उसकी प्रमुख शक्तियां विवेक व वैराग्य हैं, जो परस्पर एक-दूसरे की सहायक हैं। किसी भी परिस्थिति से आप यदि पहले से कम प्रभावित होते हैं तो आपकी आध्यात्मिकता बढ़ी है। आयोजन में डॉ. एनके दास, आरएस तिवारी, डॉ. आलोक सेनगुप्ता, डॉ. सुनील नंदवानी आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।

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