परहित सरिस धर्म न¨ह भाई..
परोपकार शब्द सुनते ही हमारे मन में तुलसीदास की बातें याद आती हैं 'परहित सरिस धर्म नहिं भाई..।' मनुष्
परोपकार शब्द सुनते ही हमारे मन में तुलसीदास की बातें याद आती हैं 'परहित सरिस धर्म नहिं भाई..।' मनुष्य को परोपकारी होना चाहिए, क्योंकि परहित के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है। अर्थात परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। इसलिए मैथिली शरण गुप्त जी कहते हैं- 'वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे, यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे।'
क्या है परोपकार : नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई करना ही परोपकार है। परोपकार एक सामाजिक भावना है। इसी के सहारे हमारा सामाजिक जीवन सुखी और सुरक्षित रहता है। परोपकार की भावना से ही व्यक्ति मित्रों, साथियों, परिचितों और अपरिचितों की निष्काम सहायता करता है। इसलिए पवित्र बाइबल कहता है कि आप अपने मित्र के लिए अपना प्राण न्योछावर करते हैं तो इससे बड़ा परोपकार या प्यार इस दुनिया में और हो ही नहीं सकता है।
'परोपकार' दो शब्दों के मेल से बना है। पर और उपकार। इसका अर्थ है, दूसरों की भलाई करना। प्रकृति का अणु-अणु हमें परोपकार की शिक्षा देता है। परोपकार के लिए ही बादल बरसते हैं तथा जल धरती को हरा भरा बनाकर हमारी खेती को लहलहा देता है। सूर्य तपता है और रोशनी देता है। हवा बहती हुई जीवन देती है। चन्द्रमा अपनी चांदनी से शीतलता प्रदान करता है। वृक्ष फलों से लदे होते हैं, किन्तु वे स्वंय फल नहीं खाते। नदियां जल से भरी होती हैं, किन्तु स्वयं जल नहीं पीती। पृथ्वी हमारे लिए अपने प्राणों का रस निचोड़ती है।
क्यों जरूरी है परोपकार
कोई भी मानव अकेले स्वयं की भलाई नहीं कर सकता। वो अकेले पूर्ण प्रयास करने के बावजूद भी कुछ हासिल नहीं कर सकता। इसके लिए दूसरों की सहायता अवश्य मिलनी चाहिए। यदि हम अकेले ही सब कुछ कर सकते तो आज कोई भी इंसान दुखी नहीं होता। सभी लोग धनवान, वर्चस्वशाली होने की कामना अवश्य करते हैं, परन्तु यह सब अकेले संभव नहीं हो सकता। बिना किसी की सहायता व सहयोग के कोई भी व्यक्ति अपने को औसत स्तर से ऊपर कभी नहीं उठा सकता। अगर हम स्वयं के लिए ही कोई आविष्कार करें, तो वह आविष्कार तब तक व्यर्थ है जब तक इस आविष्कार से समाज की उन्नति एवं विकास नहीं होता।
क्या कहती है भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति में सदैव मानव कल्याण पर जोर दिया जाता है। परोपकार से आत्मा को जो संतोष मिलता है, वह कितना भी धन खर्च करने पर भी खरीदा नहीं जा सकता। इसलिए हमारी संस्कृति सदा परामर्श देती है कि स्वयं के लिए जीना छोड़कर ईश्वर द्वारा दिए गए साधनों और अपनी क्षमताओं का एक अंश सदा परोपकार में लगाना चाहिए। सिर्फ दान-पुण्य, पूजा-पाठ, भण्डारे आदि से परोपकार नहीं किया जाता। यह सब दिखावा एवं भ्रम मात्र है। जो नि:स्वार्थ सेवा एवं करुणा का सहारा लेते हुए सबका भला करते हैं, वही समाज को प्राणवान और जीवंत बनाते हैं। महात्मा गांधी, स्वामी दयानंद, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस आदि आधुनिक काल में लोकहित की प्रेरणा देते हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा उपेक्षित कुष्ट रोगियों की सेवा करने के कारण ही वंदनीय हैं।
परोपकार से मिलता क्या है
परोपकार करने से आत्मा को सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। दूसरे का कल्याण करने से परोपकारी की आत्मा विस्तृत हो जाती है। उसे अलौकिक आनंद मिलता है। उस आनंद की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। ईसा मसीह ने अपने शिष्यों से कहा था- स्वार्थी बाहरी रूप से भले ही सुखी दिखाई पड़ता है, परन्तु उसका मन दुखी और चिंतित रहता है। सच्चा आनंद तो परोपकारियों को प्राप्त होता है। परोपकार शुद्ध भावना है। इसमें अपने-पराए का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जो अपनों को देखकर दया या उपकार करता है, वही शुद्ध मानव नहीं है। वह विभक्त मानव है। सूरज कभी भेदभाव नहीं करता। चन्द्रमा, नदी, तारे, झरने कभी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते। परोपकारी मनुष्यों को भी चाहिए कि सबको प्रेम लुटाएं।
जीवन को सार्थक बनाता है परोपकार
परोपकार मनुष्य जीवन को सार्थक बनाता है। आज तक जितने भी मनुष्य महापुरुष कहलाने योग्य हुए हैं, जिनके चित्र हम अपने घरों में लगाते हैं या जिनकी हम पूजा करते हैं वे सब परोपकरी थे। उनकी इसी परोपकार भावना ने उन्हें ऊंचा बनाया, महान बनाया। वास्तव में परोपकार मानवता की पहचान है। मनुष्य का आभूषण परोपकार है। इसकी महत्ता सर्वत्र है।
वर्तमान समय में: आज परोपकार करने वालों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। अधिकाश लोग अपने स्वार्थ में लगे हैं। शोषण अपनी चरम सीमा पर है। अब किसी को दुख में तड़पते देखकर किसी का हृदय द्रवित नहीं होता। भूखों की करुण पुकार सुनकर किसी को दया नहीं आती। ठंड से कांपते याचकों की कांपती हड्डियों को देखकर आंखें नम नहीं होतीं। जेम्स एलन ने कहा है- स्वार्थ के कारण मनुष्य सुख से दूर होता जा रहा है। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि हम परोपकार से मुख न मोड़ें, क्योंकि परहित साधना ही मानवता है। परोपकार ही महातीर्थ है, महाव्रत है। परोपकारी से ईश्वर सदा प्रसन्न रहते हैं, इसलिए दीन दुखियों की सदैव सहायता करनी चाहिए। राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह के विचार में कंगाल ही कलियुग का कल्कि अवतार है। नर ही नारायण है। दरिद्र ही दाता है। गरीबों की सेवा करना ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। सभी धर्मो ने परोपकार के महत्व को स्वीकारा है।
-फादर जॉनी पी देवासिया, प्राचार्य, संत रॉबर्ट उच्च विद्यालय, परसुडीह
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संस्कारों के बीज रोप रहा जागरण
आज कल की पीढ़ी में संस्कारों की समझ और उनका महत्व समाप्त सा होता जा रहा है। घरों से बच्चों को संस्कार मिलते हैं। इसके लिए घर का वातावरण इसके अनुकूल होना चाहिए। माता-पिता का आचरण भी इसके अनुकूल होना चाहिए। इसके लिए लोगों को जागरूक होना जरूरी है। बच्चों को शिक्षित होने के साथ-साथ संस्कारी होना परम आवश्यक है। ऐसे परिवेश में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित जागरण संस्कारशाला न सिर्फ बच्चों में संस्कारों के बीज रोप रहा है, बल्कि पूरे परिवार को इससे लाभान्वित करा रहा है। इस श्रृंखला के अंतर्गत छप रहे लेख ज्ञानवर्द्धक तो हैं ही, इसके संदेश दैनिक जीवन में लागू करने से सभी लाभान्वित हो सकते हैं।
-किरण चड़े, सचिव, ब्लू बेल्स इंग्लिश स्कूल
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प्रमाण पत्र पाकर चहके ब्लू बेल्स के छात्र
दैनिक जागरण की ओर से आयोजित होने वाले जागरण संस्कारशाला-2014-15 में भाग लेने वाले ब्लू बेल्स स्कूल के छात्र-छात्राओं को स्कूल परिसर में सोमवार को प्रमाण पत्र दिए गए। इनमें स्कूल स्तर पर हर वर्ग से टॉप थ्री के साथ ही वे तमाम छात्र शामिल थे जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लिया। स्कूल की सचिव किरण चड़े को भी प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।
ये रहे टॉप थ्री
श्रेणी-1 : भूमि शर्मा, पार्थो दास, मो. अबूताहा
श्रेणी-2 : करीना परवीन ताज, मुस्कान कुमारी, अदिति पांडेय
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सेंट रॉबर्ट स्कूल के छात्रों को मिले प्रमाण पत्र
दैनिक जागरण की ओर से आयोजित होने वाले जागरण संस्कारशाला-2014-15 में भाग लेने वाले सेंट रॉबर्ट स्कूल परसुडीह के छात्र-छात्राओं को स्कूल परिसर में सोमवार को प्रमाण पत्र दिए गए। इनमें स्कूल स्तर पर हर वर्ग से टॉप थ्री के साथ ही वे तमाम छात्र शामिल थे जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लिया। स्कूल के प्राचार्य फादर जॉनी पी देवासिया को भी प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया।
ये रहे टॉप थ्री
श्रेणी-1 : आयुष प्रधान, एंजल लकड़ा, रॉबिन वर्मन
श्रेणी-2 : संजीव नायक, सिंगरेन आइंद, विशाखा मार्डी
श्रेणी-3 : मो. वसीम, मृणाल कुमार साह, सुधांशु कुमार
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