आस्था का केंद्र बना टेल्को का भुवनेश्वरी मंदिर
अरविंद श्रीवास्तव, जमशेदपुर : टेल्को का भुवनेश्वरी मंदिर आज आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां दूरदराज से भक्त आते हैं, उनकी मुरादें भी पूरी होती हैं। हालांकि यहां प्रतिदिन सुबह-शाम मां भगवती की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन नवरात्र में इसका नजारा देखते ही बनता है।
नवरात्र के पहले दिन से ही पूजा - अर्चना व मां का श्रृंगार शुरू हो जाता है। नवरात्र के दिन 1008 कलश से मां का जलाभिषेक कराया जाता है। उस दिन देर रात तक भंडारा का आयोजन चलता है। 1008 सहस्त्रनाम पाठ के साथ मां को कुमकुम व सिंदूर अर्पित किया जाता है। महाभिषेक में भक्तों की काफी भीड़ जमा हो जाती है। टेल्को पहाड़ी स्थित मंदिर का कार्यक्रम काफी मनोरम व अनोखा होता है।
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मंदिर का इतिहास
मंदिर के संस्थापक गुरुदेव स्वामी रंगराजन जी महाराज मां भगवती के उपासक थे। आध्यात्मिक विचार से ओतप्रोत रंगराजन महाराज के दादा भी मां काली के उपासक व साधक थे। बिल्कुल अपने दादा के चरित्र पर चलने वाले रंगराजन महाराज ने एक बार मां दुर्गा का महाअनुष्ठान कराया। उस रात मां भुवनेश्वरी ने स्वप्न में उन्हें साक्षात दर्शन दिया। विराट रूप धारण कर मां ने उन्हें अनुभूति करायी कि पिछले जन्म की तुम्हारी लालसा इस जन्म में पूरी होगी। तुम माध्यम बनोगे, लोगों के लिए मंदिर निर्माण करो। इसके लिए उन्होंने स्थान भी बता दिया, टेल्को क्षेत्र के किनारे एक पहाड़ी पर भगवान शिव का एक प्राकृतिक लिंग है, जिससे बगल में मंदिर बनाना होगा। वह स्वयं निर्मित शिवलिंग आज भी विद्यमान हैं, जिसपर भक्त जलाभिषेक करते हैं।
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मंदिर की वास्तुकला
दक्षित भारतीय पद्धति पर मंदिर का वास्तुकला तैयार किया गया है। जगह व वास्तु की दृष्टि से यहां साधना व उपासना सभी सार्थक होते हैं। लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नामकरण : मां भुवनेश्वरी की इच्छा से 1976 में एक छोटे से जगह में मंदिर का निर्माण हुआ, जो आज भव्य रूप में है। भगवती के आदेश से मंदिर बनाया गया, इसी कारण इसका नाम भुवनेश्वरी मंदिर पड़ा।
नवरात्र का आयोजन- नवरात्र में आदिशक्ति जगदंबा की विशेष पूजा अर्चना होती है। अधिष्ठात्री देवी की पूजा के बाद भक्त हवन व महाभिषेक करते हैं। मंदिर का आकर्षण नवरात्र में बढ़ जाता है।
तीन यज्ञपीठों में एक : पूरे देश में तीन यज्ञपीठ हैं, एक गुजरात, दूसरा तमिलनाडु व तीसरा झारखंड स्थित जमशेदपुर का यह प्रधान यज्ञपीठ है। जहां मंदिर में आदिशक्ति भवानी की पूजा की जाती है व यज्ञ होते हैं।
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2007 में रंगाराजन जी महाराज के निधन के बाद 2008 में आचार्य श्री गोविंदराज जी ने उनका भार संभाला। तब से अब तक वे पीठाधीश महंत बनकर मां की सेवा करते हैं। 1985 में मंदिर को भव्य रूप देने का काम शुरू हुआ तथा पांच साल बाद 1990 में यह वृहद रूप में तैयार हो गया।
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कोट
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यह मंदिर धर्म व आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां जो भी सच्चे दिल से आकर मां की पूजा करते हैं, उनसे कुछ मांगते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। नवरात्र में मां के दर्शन को काफी भीड़ होती है।
पीठाधीश महंत (आचार्य) श्री गोविंद राज।
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