देश को एक सूत्र में बांधने में हिंदी ही समर्थ
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए हिंदी सबसे समर्थ भाषा है। सरकारी कार्यालयों में वर्ष भर हिंदी में काम भले ही न होता हो पर हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़ा में इन सरकारी कार्यालयों में ऐसा वातावरण बनता है, जिसमें कर्मचारी व अधिकारी हिंदी के साथ अपने कार्यालय के माहौल में जीने की कोशिश करते हैं। ऐसे आयोजन गैर हिंदी भाषी लोगों को हिंदी से जोड़ते हैं और हमारी राष्ट्र भाषा के प्रति उनमें रुचि और सम्मान बढ़ाते हैं।
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हिंदी की आत्मा संस्कृत में बसती है। हिंदी अपनी आत्मा से ही तालमेल बिठाकर नहीं चल पा रही है। हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़ा जैसे आयोजन हिंदी के विस्तार के नाम पर हिंदी को व्याकरण से दूर कर रहे हैं। व्याकरण से दूरी हिंदी के लिए अहितकर है। ऐसे आयोजनों में इसका विशेष ध्यान रखते हुए हिंदी का विस्तार किया जाना चाहिए।
-डॉ. प्रसून दत्त सिंह, विभागाध्यक्ष, संस्कृत, वर्कर्स कॉलेज
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हिंदी हमारी राजभाषा है और राजभाषा का सम्मान सबसे पहले है। हिंदी दिवस या हिंदी पखवाड़ा जैसे आयोजन गैर हिंदी भाषियों को इस भाषा से जोड़ने के लिए किए जाते हैं। इसमें देखने वाली बात ये है कि ऐसे आयोजनों में कितनी ईमानदारी होती है। ऐसे आयोजनों से हम कितने प्रभावित होते हैं और हिंदी को कितना अंगीकार करते हैं।
-प्रो. चंद्रकांत शुक्ल
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हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा है। हिंदी की तमाम उप भाषाएं भी हैं। स्थान के हिसाब से हिंदी में बदलाव हो जाता है। भारत लोकतांत्रिक देश है और इसमें कई राज्य व कई भाषाएं हैं। यदि हम ऐसे राज्यों में हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं जहां हिंदी नहीं बोली जाती है तो हम हिंदी का विस्तार करते हैं। लोगों में हिंदी बोलने और हिंदी में काम करने की जिज्ञासा बढ़ती है।
-प्रो. गंगाधर पंडा, कुलपति, पुरी संस्कृत विश्वविद्यालय
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भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए सबसे समर्थ भाषा हिंदी है। आचार्य विनोबा भावे का जो नागरी प्रचार चल रहा था और आज भी चल रहा है, वो हर प्रांत की लिपि नागरी करने के लिए ही है। सभी प्रांतो की लिपि नागरी हो जाने से हिंदी सभी प्रांतों में ग्राह्य हो जाएगी। इसीलिए नागरी लिपि का प्रचार होने से हिंदी अपने आप मजबूत हो जाएगी।
-प्रो. गोपाल कृष्ण दास
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केंद्र सरकार के कार्यालयों में काम करने वाले सभी कर्मचारी जरूरी नहीं है कि हिंदी भाषा भाषी हों। ये विभिन्न प्रांतों के होते हैं। जब हम हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं तो ऐसे कर्मचारी भी अंग्रेजी को छोड़कर हिंदी में काम करने का प्रयास करते हैं। इससे उनमें भी हिंदी के प्रति रुचि और सम्मान बढ़ता है तथा हमारी राष्ट्र भाषा का विस्तार होता है।
-बीएन सिंह, महाप्रबंधक, बीएसएनएल जमशेदपुर
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मानव स्वभाव है कि जब तक कुछ चीजों को बार-बार याद न दिलाया जाए तब तक हम उसके प्रति उदासीन होने लगते हैं और उसका महत्व भूलने लगते हैं। हिंदी पखवाड़ा मनाने से सरकारी कार्यालयों में ऐसा वातावरण बनता है, जिसमें हम हिंदी के साथ अपने कार्यालय के माहौल में जीने की कोशिश करते हैं।
-जय कुमार, क्षेत्रीय आयुक्त, कर्मचारी भविष्य निधि, कोल्हान प्रमंडल
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