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    दूषित चारा-पानी से फैल रहा संक्रमण, 24-48 घंटे में जानलेवा साबित होता है पाश्चुरेला, समय पर टीकाकरण ही बचाव

    Updated: Sun, 07 Dec 2025 07:59 PM (IST)

    टाटा स्टील जूलोजिकल पार्क में पाश्चुरेला संक्रमण से 10 ब्लैकबक की मौत हो गई। यह बीमारी, जिसे गलघोंटू भी कहते हैं, दूषित चारे-पानी से फैलती है और श्वसन ...और पढ़ें

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    फाइल फोटो।

    जासं, जमशेदपुर। टाटा स्टील जूलोजिकल पार्क में महज छह दिनों के भीतर 10 ब्लैकबक (कृष्णमृग) की आकस्मिक मौत ने जिस पाश्चुरेला बैक्टीरिया को चर्चा के केंद्र में ला दिया है, वह पशु चिकित्सा विज्ञान में एक साइलेंट किलर के रूप में जाना जाता है।

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    आम बोलचाल में गलघोंटू के नाम से जानी जाने वाली यह बीमारी इतनी घातक है कि संक्रमण के बाद जानवरों को संभलने का मौका तक नहीं मिलता। अक्सर लक्षण दिखने के 24 से 48 घंटों के भीतर उसकी मौत हो जाती है।

    रांची वेटनरी कॉलेज के विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लैकबक की मौत की मुख्य वजह हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया मानी जा रही है, जो सीधे तौर पर पाश्चुरेला मल्टीसिडा नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है।

    सांस नली पर सीधा हमला और दम घुटने से मौत

    चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, यह बैक्टीरिया जानवर के शरीर में प्रवेश करते ही सबसे पहले श्वसन तंत्र पर हमला बोलता है। यह फेफड़ों को पूरी तरह से जकड़ लेता है, जिससे जानवर की सांस नली अवरुद्ध हो जाती है।

    फेफड़ों में संक्रमण इतना तीव्र होता है कि जानवर को सांस लेने में असहनीय पीड़ा होती है और अंततः दम घुटने से उसकी मृत्यु हो जाती है। टाटा जू में हुई मौतों की तीव्र गति इस बैक्टीरिया की आक्रामकता को स्पष्ट करती है।

    गर्दन में सूजन है सबसे बड़ी पहचान

    इस बीमारी के लक्षण बेहद तेजी से उभरते हैं, जिस कारण इलाज का समय बहुत कम मिल पाता है। संक्रमित होते ही जानवर का शरीर तेज बुखार से तपने लगता है।

    इसका सबसे प्रमुख और खतरनाक लक्षण गले के नीचे आने वाली भारी सूजन है। इसी सूजन के कारण जानवर न तो कुछ निगल पाता है और न ही ठीक से सांस ले पाता है, इसीलिए हिंदी में इसे गलघोंटू कहा जाता है।

    इसके अतिरिक्त, मुंह से लगातार लार गिरना और पेट खराब होना या डायरिया भी इस संक्रमण के स्पष्ट संकेत हैं जो जानवर को तेजी से कमजोर कर देते हैं।

    दूषित चारे-पानी से जंगल की आग की तरह फैलता है संक्रमण

    टाटा जू में एक के बाद एक 10 हिरणों की मौत इस बात का प्रमाण है कि यह बीमारी अत्यधिक संक्रामक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बैक्टीरिया मुख्य रूप से दूषित चारे और पानी के जरिए फैलता है।

    यदि बाड़े में एक भी जानवर संक्रमित हो जाए, तो उसके संपर्क में आने वाले अन्य जानवरों में यह हवा, झूठे चारे या पानी के माध्यम से तेजी से फैल जाता है।

    यही कारण है कि समूह में रहने वाले हिरण जैसे जानवरों के लिए यह बीमारी किसी महामारी से कम नहीं होती। टाटा जू में रहने वाले ब्‍लैक बक इसकी जद में आ गया है।

    टीकाकरण और सफाई ही एकमात्र बचाव

    पशु चिकित्सकों का स्पष्ट मानना है कि इस जानलेवा बीमारी से बचाव का सबसे कारगर और एकमात्र तरीका समय पर टीकाकरण ही है। एक बार संक्रमण फैलने पर बाड़ों में व्यापक स्तर पर साफ-सफाई और ब्लीचिंग पाउडर का नियमित छिड़काव ही इसे रोक सकता है।

    एंटी-बैक्टीरियल दवाओं का उपयोग और बीमार जानवर को स्वस्थ समूह से तत्काल अलग करना ही इस प्रकोप को थामने का वैज्ञानिक उपाय है। जिसे अब टाटा जू प्रबंधन द्वारा सख्ती से लागू किया जा रहा है।