कभी था इनके नाम का दहशत, आज डर से इनामी माओवादी के शव लेने भी आगे नहीं आ रहे परिजन
कभी था इनके नाम का दहशत आज भय वश उनके शव लेने परिवार वाले भी आगे नहीं आ रहे हैं। मुठभेड़ में मारे गए तीन माओवादी कमांडरों में से एक का शव लेने उनके परिजन अस्पताल पहुंचे। वह भी बहुत समझाने बुझाने पर। जबकि दो माओवादियों के शव अब भी अस्पताल में लावारिस पड़ा है।

संस, हजारीबाग । कभी था इनके नाम का दहशत, आज भय वश उनके शव लेने परिवार वाले भी आगे नहीं आ रहे हैं। मुठभेड़ में मारे गए तीन माओवादी कमांडरों में से एक का शव लेने उनके परिजन अस्पताल पहुंचे। वह भी बहुत समझाने बुझाने पर। जबकि दो माओवादियों के शव अब भी अस्पताल में लावारिस पड़ा है।
Hazaribagh जिले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए तीन माओवादियों के शव मेडिकल कालेज अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस में रखा था।
इनमें से एक लाख का इनामी Maoist कमांडर प्रवेश दा उर्फ सहदेव सोरेन का शव उसकी पत्नी, भाई और बड़ा बेटा पोस्टमार्टम के बाद लेने पहुंचा। जबकि अन्य दो नक्सलियों के शव अब तक लावारिस हालत में हैं।
निर्धारित 72 घंटे की अवधि पूरी होने के बाद प्रशासन की देखरेख में उनका अंतिम संस्कार खिरगांव में किया जाएगा। पुलिस के मुताबिक उत्तरी छोटानागपुर जोन में सक्रिय प्रवेश के पूरे दस्ते का लगभग सफाया हो गया है।
मुठभेड़ के बाद गोरहर थाने में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। थाना प्रभारी के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया गया है। पुलिस आगे की कार्रवाई कर रही है।
पत्नी बोली- फोन पर घर लौट आने को कहा था ...
प्रवेश का शव लेने आई पत्नी पार्वती देवी ने बताया कि उसका पति पिछले 18 साल से घर नहीं आया था। उसने कहा, अगर वह घर लौटता तो हम समझाते। बताया कि फोन पर बातचीत हुई थी तो घर लौट आने को कहा था।
लेकिन बात नहीं मानी। बताया कि परिवार का भरण-पोषण खेती-किसानी और मजदूरी से होता है। बेटे के बड़ा होने तक हमने खुद ही परिवार का पालन-पोषण किया। एक बेटा आश्रम विद्यालय में पढ़ाई कर रहा है, जबकि दूसरा रांची में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है।
छोटे भाई टेकलाल सोरेन ने बताया कि सहदेव कुछ साल पहले घर छोड़कर नक्सली संगठन से जुड़ गया था। पुलिस की लगातार खोजबीन के कारण हमें जानकारी मिली कि वह कई बड़ी घटनाओं में शामिल था।
उसकी गिरफ्तारी या मारने पर सरकार ने 1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। बताया कि डर के कारण ही परिवार को मुखिया के साथ आकर ही पोस्टमार्टम हाउस तक जाना पड़ा।
परिजनों का डर और लावारिस शव
शव लेने आए परिवार के सदस्यों ने बताया कि उन्हें डर था कि पुलिस उन पर भी कोई कार्रवाई न कर दे। काफी समझाने-बुझाने के बाद ही परिजन शव लेने आए और उसे गांव ले गए।
प्रवेश के शव को छोड़कर अन्य दो नक्सलियों के शव को लेने कोई परिजन नहीं आया। रघुनाथ और बिरसेन का शव अब भी परिजनों का इंतजार कर रहा है।
पुलिस ने स्पष्ट किया कि नियमों के अनुसार 72 घंटे तक शव सुरक्षित रखा जाएगा। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार प्रशासन की देखरेख में खिरगांव में किया जाएगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।