झारखंड: खौफनाक नरसंहार के गवाह रहे इन क्षेत्रों में खींची जा रही विकास की लकीर, महिला सशक्तिकरण का चढ़ रहा रंग
हजारीबाग जिले के लगभग 50 किलोमीटर की परिधि में अवस्थित केरेडारी व बड़कागांव और चतरा जिले का टंडवा प्रखंड कभी नक्सलियों के आतंक से थर्राता था। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार के प्रयास से आज यहां की धरती काला सोना उगल रही है।

विकास कुमार, हजारीबाग: हजारीबाग जिले के लगभग 50 किलोमीटर की परिधि में अवस्थित केरेडारी व बड़कागांव और चतरा जिले का टंडवा प्रखंड कभी नक्सलियों के आतंक से थर्राता था। लाल सलाम के नारों की गूंज के बीच महीने-दो महीने के अंतराल पर गोलियों की तड़तड़ाहट, लेवी नहीं देने पर खनन कंपनियों की गाड़ियों को आग के हवाले कर देना, खननकर्मियों के साथ मारपीट और हत्या जैसी वारदातों को लेकर शासन-प्रशासन तक के पांव उस क्षेत्र में जाने से पहले ही फूल जाते थे।
यह हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड का ही बेलतू क्षेत्र है, जो झारखंड के सबसे खौफनाक नरसंहार का गवाह रहा है। 2001 में यहां एक साथ 14 लोगों की सिर काट कर हत्या कर दी गई थी। टंडवा में बीडीओ कार्यालय को बम से उड़ा दिया गया था तो 2009 में केरेडारी के अंचलाधिकारी को माओवादी उठाकर ले गए थे।
कहना गलत नहीं होगा कि 1990 से 2010 के बीच यह क्षेत्र पूरी तरह से नक्सलियों के नियंत्रण में था। हालांकि, अब परिस्थितियां बदलीं हैं। केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल पर नक्सलियों पर शिकंजा कसा तो कुछ मारे गए और कईयों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
स्थानीय शासन-प्रशासन ने सुरक्षा की गारंटी दी तो एनटीपीसी ने बड़कागांव क्षेत्र में 2016 से खनन कार्य शुरू किया। इसके बाद इस कड़ी में त्रिवेणी सैनिक, मां अंबे, रित्विक, चंद्रगुप्त कोल माइंस, अदानी ग्रुप, जेवीके, रोहने, बिहार स्टील, आम्रपाली ग्रुप, हिंडाल्को जैसी कंपनियों के नाम जुड़ते चले गए।
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कंपनियां आईं तो जंगल-झाड़, नदी-नाले और पहाड़ों से आच्छादित यह क्षेत्र अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के बीच गुलजार हो गया। नक्सलियों की विध्वंसक कार्रवाई से रक्तरंजित हुई यहां की धरती अब काला सोना उगल रही है। इससे घोर नक्सल प्रभावित इन इलाकों की तस्वीर बदल गई है।
हर हाथ में काम होने से बेरोजगारी से जूझ रहे यहां के युवाओं का अब नक्सली संगठनों के प्रति मोहभंग हो चुका है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 20 हजार हाथों को रोजगार मिला तो नक्सली और आपराधिक घटनाओं में भी अपेक्षाकृत काफी कमी आई। आज यह क्षेत्र झारखंड के शहरों में ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र, बिहार, असम समेत देश की कई बिजली परियोजनाओं के मातहत काले सोने (कोयला) की चमक बिखेर रहा है।

एनटीपीसी की इस परियोजना में 52 लाख टन कोयले का भंडार
सिर्फ एनटीपीसी की बात करें तो यह बड़कागांव क्षेत्र में 2016 से खनन कार्य कर रही है। यह क्षेत्र की पहली परियोजना थी, जिसे 49 वर्ष के पर्यावरण क्लीयरेंस पर लीज प्राप्त हुआ है। खनन क्षेत्र के लगभग 4600 हेक्टेयर भूभाग में से कंपनी वर्तमान में महज 30 प्रतिशत हिस्से पर ही खनन कर रही है।
पिछले वर्ष की बात करें तो 13.22 हजार टन कोयला यहां से उत्पादित कर दूसरे राज्यों में भेजा गया। और तो और रिकार्ड 358 रैक कोयला देश के 23 पावर स्टेशनों में भेजे गए। इसी तरह 2016 में शुरू हुई केरेडारी चट्टी बरियातू एनटीपीसी कोल परियोजना 2215 हेक्टेयर जमीन पर खनन कार्य कर रही है। इस परियोजना में 52 लाख टन कोयले का भंडार है।
देश का सबसे लंबा कन्वेयर बेल्ट, बिछ रहीं रेल की पटरियां भी
कोयला खनन के मामले में यह क्षेत्र कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बड़कागांव के पकरीबरवाडीह कोयला परियोजना के लिए यहां देश का सबसे लंबे कन्वेयर बेल्ट का निर्माण कराया गया, इसकी लंबाई 14 किलोमीटर है। इसी तर्ज पर केरेडारी में एलएंडटी कंपनी भी कन्वेयर बेल्ट का निर्माण करा रही है। इससे इतर कोयले की ट्रांसपोर्टिंग के लिए कटकमदाग में अतिरिक्त रेल पटरियां बिछाई जा रही हैं।
टेंपू चलाने वाली महिलाएं चला रहीं 100 टन क्षमता वाला ट्रक
परियोजना क्षेत्र में नारी सशक्तीकरण की भी बानगी देखने को मिलती है। यहां 100 टन कोयला ढोने वाले होल पैक तक का संचालन महिलाएं कर रही हैं। इन इलाकों में बदलाव कुछ ऐसा कि आटो रिक्शा चलाने वाली महिलाएं भी होलपैक ट्रक चला रही हैं।
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रांची में टेंपू चलाने वाली सलोनी एक्का बताती हैं कि यहां काम मिलने से उनका जीवन बदल गया है। कभी सोचा भी नही था कि 100 टन की क्षमता वाली ट्रक का संचालन भी कर पाऊंगी। लेकिन, मेरी जैसी ऐसी 30 महिलाओं यहां यह काम कर रही हैं। पारिवारिक जिम्मेदारियों को आसानी से निभा पा रही हूं।
इन्हीं में से एक वीरजी देवी के अनुसार, 2013 से ही मैं आटो रिक्शा चला रही थी, जब यहां काम मिला तो एक बार सोचने को विवश हो गई कि क्या इतनी भारी मशीन का भी संचालन कर सकूंगी, लेकिन एनटीपीसी के सौजन्य से ही यह संभव हो सका है। इस कार्य के आज चार वर्ष पूरे हो गए।
वे कहती हैं कि पहले दो जून की रोटी के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी, जब से यह काम कर रही हूं, कंपनी ने नई राह दिखा दी। हम पहले जहां पैसे-पैसे के लिए मोहताज थे, आज न केवल आसानी से अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हूं बल्कि बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा भी रही हूं।

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