रोहू मछली को अब नहीं लगेगा रोग! VBU ने पौधों से विकसित की एक खास दवा
हजारीबाग के विनोबा भावे विश्वविद्यालय की शोधार्थी आकृति गुप्ता ने झारखंड में पाए जाने वाले पारंपरिक पौधों से रोहू मछली में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा का सफल परीक्षण किया है। भेलवा पौधे के अर्क से तैयार इस दवा ने बीमार मछलियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाई है। यह शोध मत्स्य पालन उद्योग को एक प्राकृतिक और टिकाऊ समाधान प्रदान कर सकता है।

जागरण संवाददाता, हजारीबाग। विनोबा भावे विश्वविद्यालय (विभावि) के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में एक महत्वपूर्ण शोध उपलब्धि हासिल की गई है। विभाग की शोधार्थी आकृति गुप्ता ने झारखंड में पाए जाने वाले पारंपरिक पौधों से रोहू (रेहु) मछली में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली प्रभावी दवा का सफल परीक्षण किया है।
जंतु विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ किशोर कुमार गुप्ता ने मंगलवार को जानकारी दी कि रोहू, जिसे रुई या कारपो के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर और मध्य भारत की सबसे लोकप्रिय मीठे पानी की मछली है।
यह न सिर्फ पोषण के लिए अहम है, बल्कि मत्स्य पालन की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाल के वर्षों में बढ़ते प्रदूषण और रसायनिक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से इस प्रजाति पर विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
भेलवा पौधे से तैयार हुआ औषधीय फार्मूला
आकृति गुप्ता ने अपने शोध के दौरान झारखंड के पारंपरिक पौधों में से भेलवा पर वैज्ञानिक परीक्षण किया। इस पौधे के अर्क को फफूंद और बैक्टीरिया से ग्रसित रोहू मछलियों पर दवा के रूप में उपयोग किया गया।
परिणामस्वरूप, बीमार मछलियों में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ी और उनके प्रतिरोधी जीन अधिक सक्रिय पाए गए। यह शोध डॉ पीके मिश्रा और भारतीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी संस्थान रांची के वैज्ञानिक डॉ एसके गुप्ता के मार्गदर्शन में पूरा हुआ।
शोध का मूल्यांकन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. एनके दूबे ने किया और आकृति को पीएचडी की उपाधि के लिए उपयुक्त घोषित किया।
शोध का व्यापक महत्व
आकृति के शोध का विषय था झारखंड के जनजातीय पौधों से रोग प्रतिरोधक दवा बनाकर लेबियो रोहिता (रोहू) मछली पर इसका प्रयोग और परीक्षण। इस अध्ययन से मत्स्य पालन उद्योग को एक प्राकृतिक और टिकाऊ समाधान मिल सकता है, जिससे महंगी और हानिकारक रसायनिक दवाओं पर निर्भरता कम होगी। आकृति गुप्ता ने सीएसआइआर, गेट, आइआइटी जैम की परीक्षा भी उतीर्ण की है। उनके शोध का साइटेशन भी 72 है
उन्होंने आठ शोध पत्र और चार पुस्तक-अध्याय प्रकाशित किए हैं। हाल ही में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. चंद्र भूषण शर्मा ने उन्हें बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में सदस्य के रूप में नामित किया है।
आकृति डीएवी पब्लिक स्कूल हजारीबाग, अन्नदा महाविद्यालय और वनस्थली विद्यापीठ की छात्रा रही हैं। उनके इस शोध से न सिर्फ विश्वविद्यालय का मान बढ़ा है, बल्कि झारखंड के स्थानीय संसाधनों पर आधारित विज्ञान की संभावनाओं को भी नई दिशा मिली है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।