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    मानगढ में है झारखंड का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 19 Feb 2021 08:53 PM (IST)

    शशि शेखर चौपारण(हजारीबाग) झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित चौपारण प्रखंड बौद्ध अवशेषो

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    मानगढ में है झारखंड का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप

    शशि शेखर, चौपारण(हजारीबाग) : झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित चौपारण प्रखंड बौद्ध अवशेषों से अटा पड़ा है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुध के बोधगया के साथ आत्मिक संबंध के प्रमाणों की तरह ही इस क्षेत्र में अनेक ऐसे प्रमाण बिखरे पड़े हैं, जिन्हें संरक्षित कर इलाके को बौद्ध धर्म स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। बौद्ध धर्म के अवशेषों में मानगढ़ में राज्य के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की पहचान हुई है। वहीं दैहर व सोहरा में बौद्ध धर्म की प्रमुख देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं। इन मूर्तियों को सनातन धर्मावलंबी कमला माता व समोखर माता के नामा से पूजा करते हैं। इसकी पुष्टि दैनिक जागरण के प्रयास से क्षेत्र में आए कई इतिहासकार, विश्लेषक और बौद्ध भिक्षु ने पूर्व में किया है ।

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    कमला माता हैं तारा देवी :

    दैहर में 1950 में ग्रामीणों द्वारा किए गए खनन में बरामद मूर्तियों में देवी की मूर्ति को कमला माता का नाम से पूजन किया जाता है। दैनिक जागरण के माध्यम से मामले को संज्ञान में लाने के बाद आए इतिहासकार ने पाया कि कमला माता वास्तव में बौद्ध धर्म की मारीचि देवी की प्रतिमा है, जिसकी लोग पूजा कर रहे हैं। जबकि बौद्ध धर्म के प्रमुख देवी तारा की प्रतिमा सोहरा में स्थापित व प्रचलित समोखर माता की प्रतिमा से मिलती है। इस प्रतिमा को भी उत्खनन में बरामद किया गया था।

    मानगढ में है बौद्ध स्तूप :

    मानगढ में राज्य के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की खुलासा तत्कालीन पुरातात्विक अधीक्षक एमजी निकोसे द्वारा की गई थी। दैनिक जागरण के प्रयास से स्थल पर पहुंचे निकोसे ने लगभग एक एकड़ में फैले ऐतिहासिक धरोहर को बौद्ध धर्म के लिए एक वरदान करार दिया था । यहां से नालंदा विश्वविद्यालय के प्रख्यात इतिहासकार डा. विश्वजीत कुमार व डाक्टर रूबी कुमारी ने एनबीपीडब्ल्यू उत्तरी कृष्ण मित्र भांड , लाल व काले मृदभांड, समवर्ती मृदभांड, ब्लैक स्लिपवेयर आदि बरामद किए थे ।

    इतिहासकार, पुरातात्ति्वक विश्लेषक, बौद्ध भिक्षुयों का हो चुका है आगमन

    बीते लंबे समय से क्षेत्र में कई इतिहासकार, विश्लेषक यहां पहुंचे हैं। इनमें नालंदा विश्वविद्यालय के डा. विश्वजीत कुमार,डा. रूबी कुमारी , कला साहित्य विभाग के डॉक्टर नरेंद्र सिन्हा, बौद्ध भंते तिस्सोवरे , हजारीबाग से डा. मिहिर, मृत्युंजय कुमार शामिल हैं। वहीं बंगाल सहित अन्य राज्यों से भी पुरातत्वविदों का यहां आगमन हो चुका है। विशेषज्ञों की माने तो दैहर , सोहरा, मानगढ , हथिदर गांव में वृहद पैमाने पर खुदाई की आवश्यकता है। अब तक इन इलाकों में खुदाई से बरामद सभी मूर्तियां पाल काल के हैं । इससे यहां समृद्ध परंपरा व बडी आबादी का तथ्य साबित होता है।

    बौद्ध सर्किट से जोड़कर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र बन सकता है क्षेत्र

    यदि सही मायने में प्रयास किया जाए तो यह पूरा इलाका बौद्ध सर्किट से जुड़कर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है । बोधगया से नजदीकी, जीटी रोड से सुगमता, इटखोरी से नजदीकी के इसके बडे बौद्ध पर्यटन केंद्र बनने में सहायक सिद्ध होगा।