बरही में 1906 से हो रही दुर्गा पूजा
बरही : बरही की शारदीय दुर्गा पूजा का इतिहास दशकों पुराना रहा है। बरही बाजार धनबाद रोड स्थित पुराने द
बरही : बरही की शारदीय दुर्गा पूजा का इतिहास दशकों पुराना रहा है। बरही बाजार धनबाद रोड स्थित पुराने दुर्गा मंदिर में अंग्रेज के जमाने में ही सन 1906 से दुर्गा पूजा हो रही है। इसकी शुरुआत बरही के पहले प्रमुख स्व. बासुदेव कतरियार के पिता स्व. रघुनंदन सहाय और उनके परिजनों ने की थी। जहां पहले एक मिट्टी एवं खपरैल पूस से निर्मित छोटे से एक मंडप में माता का पूजा शुरू की गई थी। बाद में उसे सार्वजनिक कर दिया गया। इसके बाद पांच दशक के पूर्व 150 मीटर की दूरी पर बरही बाजार धनबाद रोड में ही नया दुर्गा मंदिर का स्थापना धूमधाम से की गई। नया दुर्गा मंदिर निर्माण में गणपत साव, कारू साव, रामचरण साव, महावीर साव, लगन साव, रघुनाथ साव, सरयू साव, बंशी साव आदि बरही बाजार व आस पास के हमारे पूर्वज रहे माता भक्तों ने अहम योगदान दिया था।
अटूट हुई दो समितियां : धनबाद रोड का पुराना व नया दुर्गा मंदिर की समिति भले ही अलग-अलग शुरू में की गई। लेकिन बाद में दोनों समिति एक हो गई। 1964 से दोनों मंदिरों की पूजा सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति, बरही के बैनर तले शुरू हो गई। बरही के अलावा चौपारण, बरकट्ठा, पदमा, चंदवारा आदि प्रखंडों से लोग यहां पूजा, भव्य मेला और कार्यक्रम देखने पहुंचने लगते हैं। बरही में कलश स्थापना के साथ ही श्रद्धालुओं का आवागमन जारी हो जाता है। सप्तमी से मेला शुरू हो जाता है। दशमी को भव्य मेला लगता है। सप्तमी से नवमी तक हर दिन नया दुर्गा मंदिर में पूड़ी व पुराना दुर्गा मंदिर में खिचड़ी का भोग का वितरण पूजा पंडाल के पास किया जाता है। रावण दहन कार्यक्रम प्रखंड मैदान में बरही सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति के बैनर तले किया जाता है।
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