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    गोदाम न दुकान, वेंडर ले रहे करोड़ों का भुगतान,यहां मनरेगा में मची है लूट,अधिकारियों ने दे रखी है छूट

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 04:14 PM (IST)

    गुमला जिले में मनरेगा योजना के नाम पर खुलेआम भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है। दर्जनों वेंडरों का धरातल पर न दुकान न गोदाम और न ही कोई प्रतिष्ठान है। फिर भी कागज पर सप्लायर बनकर करोड़ों का भुगतान प्राप्त कर रहे हैं। इन वेंडरों को प्रखंड के पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है।

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    गुमला में मनरेगा में सामग्री आपूर्ति के नाम पर करोड़ों का खेल चल रहा है।

    संतोष कुमार, गुमला।  जिले में मनरेगा योजना के नाम पर खुलेआम भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है। दर्जनों वेंडरों का धरातल पर न दुकान, न गोदाम और न ही कोई प्रतिष्ठान है। फिर भी कागज पर सप्लायर बनकर करोड़ों का भुगतान प्राप्त कर रहे हैं।

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    इन वेंडरों को प्रखंड के पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। जिले के सभी 12 प्रखंडों के प्रखंड विकास पदाधिकारी को उप विकास आयुक्त सह समन्वयक दिलेश्वर महतो ने पत्र प्रेषित कर वेंडरों के दुकानों का भौतिक प्रतिवेदन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

    केवल तीन प्रखंडों से ही प्रतिवेदन उपलब्ध कराए गए

    लेकिन जिले के केवल तीन प्रखंड से ही प्रतिवेदन प्राप्त हुआ। उप विकास आयुक्त ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 18 सितंबर को 2025 को प्रखंड विकास पदाधिकारियों को पत्र प्रेषित कर 72 घंटे के भीतर विहित पत्र में वांछित प्रतिवेदन उपलब्ध कराने का कड़ा निर्देश दिया है।

     साथ ही  नहीं दिए जाने पर वेतन अवरुद्ध करने की चेतावनी दी है। लेकिन इस पत्र का भी अधिकारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। केवल तीन प्रखंडों से ही प्रतिवेदन उपलब्ध कराए गए।

    प्रतिष्ठानों के भौतिक सत्यापन को लेकर वेंडरों के अलावा प्रखंड विकास पदाधिकारियों के बीच हड़कंप मचा है। जानकारी के अनुसार कुछ प्रखंडों में अधिकांश वेंडर का कोई प्रतिष्ठान नहीं है।

    यही कारण है कि वेंडरों द्वारा प्रतिष्ठान खोलने का काम जोरों से किया जा रहा है। प्रतिष्ठान खोले जाने के बाद संभवत: प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा जांच कर प्रतिवेदन उपलब्ध कराया जाएगा।

    बहरहाल तीन प्रखंड गुमला, घाघरा और कामडारा से जिले को रिपोर्ट उपलब्ध कराया गया है। प्रतिवेदन के अनुसार मेसर्स राम साहू, मेसर्स जेजे ट्रेडर्स, मेसर्स भुवनेश्वर साहू, मेसर्स नरेंद्र साहू, मेसर्स माधुरी सेल्स एंड सप्लायर्स, मेसर्स महबूब आलम और मेसर्स शंभू इंटरप्राइजेज का कोई प्रतिष्ठान नहीं है।

    इसके बाद भी इनके द्वारा आपूर्ति का काम कराया जा रहा है। इनमें से कई वेंडर के द्वारा अलग अलग वित्तीय वर्ष में लाखाे रुपये प्राप्त किए गए हैं। वेंडर मेसर्स भुनेश्वर साहू द्वारा 2023-24 में आपूर्ति के विरुद्ध 71,65,240 रुपये की राशि भी प्राप्त की गई है।

    वहीं वर्ष 2024-25 में 39,06,096 रुपये प्राप्त किया है । वेंडर नरेंद्र साहू 2023-24 में 10,37,077 रुपये, वर्ष 2024-25 में 3,82,446 रुपये आपूर्ति के एवज में प्राप्त किया। माधुरी सेल्स एंड सप्लायर्स ने भी आपूर्ति के एवज में 375014 रुपये प्राप्त किया।

    जिले में मनरेगा सामग्री की आपूर्ति केवल फाइलों में पूरी हो रही है। असलियत में न तो दुकानें हैं और न ही सप्लाई। यह सिर्फ अफसरों और बिचौलियों की मिलीभगत करोड़ों का घोटाला है।

    अब देखना होगा कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार इस पर सिर्फ कागजी कार्रवाई करती है या फिर सचमुच दोषियों पर शिकंजा कसती है।

    विभाग से की कार्रवाई की अनुशंसा

    डीडीसी ने मामले को गंभीरता से लिया है। उन्होंने मेसर्स राम साहू, मेसर्स जेजे ट्रेडर्स, मेसर्स भुवनेश्वर साहू, मेसर्स नरेंद्र साहू, मेसर्स माधुरी सेल्स एंड सप्लायर्स, मेसर्स महबूब आलम और मेसर्स शंभू इंटरप्राइजेज के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुशंसा ग्रामीण विकास विभाग के अपर सचिव से की है।

    पत्र में कहा है कि मनरेगा आपूर्तिकर्ताओं का प्रतिष्ठान नहीं होना अनियमितता और गंभीर बात है। आपूर्तिकर्ताओं के द्वारा सरकारी राजस्व का भुगतान समय पर नहीं किया जाता है। खोज करने पर प्रतिष्ठान धरातल पर नहीं पाए जाते हैं। इसके कारण विधि सम्मत कार्रवाई करने में कठिनाई होती है।

    प्रतिवेदन देने में बीडीओ नहीं ले रहे रुचि

    सबसे बड़ी बात यह है कि प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) इस खेल में मूकदर्शक बने हैं। उप विकास आयुक्त (डीडीसी) ने सभी बीडीओ को 72 घंटे में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। 

    साथ ही चेतावनी दी थी कि देरी पर वेतन रोक दिया जाएगा। वरीय अधिकारी के आदेश को भी प्रखंड विकास पदाधिकारियों ने धत्ता बता दिया है।

    अधिकारियों की कार्यशैली पर ही उठ रहे सवाल

    मनरेगा में आपूर्ति का कार्य करने वाले वेंडरों को लाईसेंस तब निर्गत किया जाता है जब जांच में यह पुष्टि हो जाती है कि जिन सामग्रियों का आपूर्ति किया जाना है उससे संबंधित उनकी प्रतिष्ठान है।

    प्रखंड विकास पदाधिकारी को भी इसकी जांच की जानी है। बगैर प्रतिष्ठान के ही सामग्रियों की आपूर्ति से सवाल खड़े हाे रहे हैं।

    बिचौलियों का दबदबा

    वेंडर के रुप में आपूर्ति करने वाले अधिकांश व्यापारी कम और बिचौलिए ज्यादा सक्रिय हैं। यही कारण है कि वेंडर न केवल सामग्री आपूर्ति तक तक कार्य सीमित है बल्कि अधिकारियों के बीच उनकी पैठ इस कदर है कि इनके इशारे और सहभागिता से ही कार्य पूरे होते हैं।

    अधिकारी और कर्मचारी इनके इशारे पर काम करते हैं। नतीजा यह होता है कि असली दुकानदार और ग्रामीणों का हक छिन जाता है और फर्जी सप्लायर लाखों-करोड़ों की कमाई कर लेते हैं।

    अधिकारियों का निर्देश है कि जिले की सभी पंचायतों से वेंडर का चुनाव किया जाए। ताकि सामग्री की आपूर्ति में सुविधा हो और उनका एकाधिकार न रहे। हर पंचायत में वेंडर होने से कार्य में सुगमता के साथ साथ संबंधित पंचायत के लोगों को काफी सुविधाएं मिलती।

    वेंडर के प्रतिष्ठान का भौतिक सत्यापन कराने का आदेश दिया गया था। कुछ प्रखंडों से ही प्रतिवेदन प्राप्त हुआ है। प्राप्त प्रतिवेदन विभाग को कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है। जिन प्रखंडों से प्रतिवेदन अप्राप्त है उन प्रखंड के बीडीओ और संबंधित अधिकारियों का वेतन अगले आदेश तक के लिए रोक दिया गया है।

    दिलेश्वर महतो, उप विकास आयुक्त सह समन्वयक गुमला।