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    Jharkhand Election Result 2024: 'जितने मुंह उतनी बातें...', चुनाव परिणाम को लेकर NDA में माथापच्ची

    Updated: Sat, 23 Nov 2024 07:07 PM (IST)

    शनिवार का दिन चुनावी हलचल से भरा रहा। दो चरणों में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 (Jharkhand Election Result 2024) के नतीजे आ गए। सियासी उठक-पटक के बीच चुनावों में हेमंत सरकार की शानदार वापसी हुई है। वहीं भाजपा के एनडीए गठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा। नतीजों के सामने आने के बाद अब पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच चुनाव नतीजों के कारण पर बहस छिड़ गई है।

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    कार्यकर्ताओं ने बताए एनडीए की हार के कारण

    जागरण संवाददाता, गुमला। दो चरणों में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 (Jharkhand Election Result 2024) के नतीजे आज जारी हुए। दिनभर जारी वोटों की गिनती के बाद अब अंतिम नतीजे सामने आने लगे हैं। नतीजों से साफ है कि राज्य में सोरेन सरकार की शानदान वापसी हुई है।

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    नतीजों के साथ ही चुनाव और चुनाव परिणाम (Jharkhand Vidhan Sabha Eletion Result 2024) को लेकर हो रही चर्चा पर भले ही विराम लग गया है, लेकिन चुनाव परिणाम के कारणों को लेकर एनडीए गठबंधन में माथापच्ची अभी कुछ दिन जारी रहेगी।

    उम्मीद के प्रतिकूल चुनाव परिणाम आने के कारण मतगणना केंद्र के बाहर से लेकर शहर तक, शहर से गांव तक और तो और इंटरनेट मीडिया में जितनी मुंह उतनी बातें हो रही है। किसी ने चुनाव परिणाम का कारण टिकट बंटवारे में गलती करने के लिए केंद्रीय व राज्य स्तरीय टीम को दोषी ठहरा रहे हैं तो कोई लंबे दिनों से भाजपा का झंडा ढोने वाले नेता कार्यकर्ताओं के ऊपर पहरेदारी की परंपरा को कारण मान रहे हैं।

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    चुनाव परिणाम के लिए जिम्मेदार कारण

    चुनाव परिणाम में भारी अंतर के लिए प्रत्याशियों के जनता व कार्यकर्ताओं से दूरी को मान रहे हैं तो कोई भाजपा के वोट लेने के केंद्रीय मुद्दा को कारण मान रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि झारखंड में हेमंत सोरेन का मइया योजना कारगर साबित हुआ है। हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने पूरे झारखंड में इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार किया जबकि भाजपा के प्रचार के लिए देश भर के आधा दर्जन से अधिक राज्यों से एक दर्जन से अधिक नेता पहुंचे थे।

    कार्यकर्ताओं ने गिनाई कमियां

    भाजपा कार्यकर्ताओं ने कहा कि झारखंड की वस्तु स्थिति अन्य राज्य के नेता नहीं जानेंगे। यहां की स्थिति यहीं के नेता समझ पाएंगे। भाजपा के कैडर वोट अपना वोट डालने तक सीमित रह गए और उम्मीदवार आदिवासी वोट को साधने में असफल रहे। एक कार्यकर्ता ने कहा कि अब गुमला का भी डेमोग्राफी चेंज हो गया है। यही स्थिति रही तो गुमला में भाजपा कभी नहीं जीत पाएगी।

    इसके अलावा भाजपा के खराब प्रदर्शन पर कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी मानना है कि अगर पार्टी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सहयोग नहीं मिलता, तो उनकी हालत इससे भी खराब हो सकती थी। कार्यकर्ताओं के मुताबिक RSS ने प्रचार से लेकर वोटिंग तक में पार्टी की मदद की है। अगर ऐसा न होता तो, भाजपा अकेले 15 सीटें भी नहीं ला पाती।

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