पालकोट का बूढ़ा महादेव मंदिर
गुमला जिला का पालकोट धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। बूढ़ा महादेव मंदिर के कारण आस्था क

गुमला जिला का पालकोट धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। बूढ़ा महादेव मंदिर के कारण आस्था का केंद्र बन गया है। सावन माह में शिवोपासना की जाती है। दूर-दूर से लोग आते है। ऊं नम: शिवाय के मंत्र जाप से बूढ़ा महादेव मंदिर ही नहीं पूरा इलाका महीने भर गूंजते रहता है।
मंदिर का इतिहास
पालकोट नागवंशी राजाओं की उप राजधानी भी रही है। नागवंशी राजा जन्मजात शिव के उपासक रहे हैं। शिव उनके अराध्य देव माने जाते हैं। यहां की प्रजा भी शिवोपासक थे। वर्ष 1935 में पालकोट में बूढ़ा महादेव मंदिर का निर्माण किया गया था। पालकोट के तत्कालीन नागवंशी राजा बड़लाल मृत्युंजय नाथ शाहदेव ने अपने अराध्य देव शिव की पूजा अर्चना करने के लिए बिहार के औरंगाबाद जिला के मायर शमसेर नगर से पुरोहितों के एक दल को पालकोट बुलाया था और बसाया भी था। उन्हीं पुरोहितों में से एक नारायण दास का इस मंदिर की स्थापना में अहम योगदान माना जाता हे। नारायण दास पालकोट के गुफा में कंद मूल खाकर जीवन यापन करते थे। एक दिन जब नारायण दास गुफा से निकल रहे थे तब उनसे बड़लाल मृत्युंजय लाल शाहदेव ने अपने यहां रहने का आग्रह किया था। बाबा रहने को तैयार तो हो गए लेकिन उनका मन वहां लग नहीं रहा था। तब उन्होंने बड़लाल से एकांत में रहने की बात कही। बड़लाल ने पंडित राम रक्षा मिश्र को बुलाकर उनसे बात की और नारायण दास को वर्तमान मंदिर के समीप रहने के लिए तैयार कराया। वहीं झोपड़ी बना दी गई और वहीं बाबा नारायण दास पूजा करते थे। उसी झोपड़ी में बाबा नारायण दास से 1935 ईसवी में समाधि ली। उसी के बगल में मंदिर का निर्माण कराया गया। 135 किलोमीटर दूरी तय कर राउरकेला से कांवरियां यहां आते हैं।
क्या कहते हैं पुजारी
मंदिर के पुजारी रवीन्द्र बिहारी मिश्र का कहना है कि आठ दशक से यहां लोग सावन माह ही नहीं सालोभर पूजा करने आते हैं। लोगों की यहां मनोकामना पूरी होती है।

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