Gumla News: ऐसे तो आसानी से बच जाएंगे आरोपी, नवजात शिशु के खरीद-फरोख्त में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धाराएं ही गायब
गुमला जिले में नवजात शिशु के खरीद-फरोख्त के मामले में बाल कल्याण समिति द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धाराओं की कमी पाई गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कानूनी कार्रवाई कमजोर हो रही है और दोषियों को लाभ मिल सकता है। मामले में लापरवाही के चलते अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, जिससे जांच प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।

रायडीह प्रखंड में नवजात शिशु के खरीद-फरोख्त में प्रशासनिक व्यवस्था की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है।
संतोष कुमार, गुमला। जिले के रायडीह प्रखंड में नवजात शिशु के खरीद-फरोख्त के प्रकरण ने प्रशासनिक व्यवस्था की गंभीर लापरवाही को एक बार फिर उजागर कर दिया है। बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी की शुरुआती जांच में ही कई खामियां सामने आई हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, एफआइआर में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट से संबंधित एक भी धारा शामिल नहीं की गई है, जबकि मामला सीधे तौर पर एक नवजात की खरीद-फरोख्त और आर्थिक लेन-देन से जुड़ा है। यह चूक न केवल कानूनी कार्रवाई को कमजोर कर रही है, बल्कि दोषियों तक पहुंचने की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर रही है।
नवजात को लेकर रुपये के लेन-देन के पुख्ता सबूत मिल चुके हैं, लेकिन प्रक्रिया की कमजोर नींव के कारण अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। मामले की जांच भी अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ पा रही है। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि यदि शुरुआत से ही जुवेनाइल एक्ट की उचित धाराएं जोड़ी जातीं, तो जांच में तेजी आती।
इससे आरोपितों पर तुरंत कार्रवाई हो सकती थी। विशेषज्ञों ने भी इस मामले में गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत बच्चे की खरीद-फरोख्त, अवैध दत्तक प्रक्रिया और मानव तस्करी जैसे मामलों में सख्त प्रविधान हैं।
एफआइआर में इन धाराओं को शामिल नहीं किए जाने के कारण मामला कमजोर पड़ गया प्रतीत हो रहा है, इससे दोषियों को कानूनी लाभ मिलने की आशंका बढ़ गई है। उनका कहना है कि ऐसी चूक न केवल इस मामले को प्रभावित कर रही है, बल्कि भविष्य में भी ऐसे अपराधों पर रोक लगाने की कोशिशों को कमजोर करेगी।
विशेषज्ञों ने भी स्पष्ट कहा है कि यदि जल्द सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला एक और कागजी औपचारिकता बनकर रह जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में लापरवाही समाज और कानून व्यवस्था दोनों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।
अक्टूबर 2025 को मामला आया था प्रकाश में
अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में यह मामला प्रकाश में आया था। इसमें दो नवजात को बेचे जाने की बात सामने आई थी। इसमें एक सीएचओ, एएनएम और सहिया की भूमिका अहम थी। उपायुक्त के निर्देशन में सिविल सर्जन की जांच रिपोर्ट में मामला सही पाया गया और तत्काल प्रभाव से तीनों को सेवा मुक्त कर दिया गया।
बाल कल्याण समिति की पहल के बाद दोनों नवजात को भी सकुशल बरामद कर लिया गया। इसके उपरांत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। अब दो माह होने वाला है। लेकिन मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
क्या कहते हैं जांच अधिकारी
मामले की जांच की जा रही है। वरीय अधिकारी को सूचना दी जा चुकी है। प्राथमिकी के दौरान खरीदने वाला का नाम नहीं आया था। सुपरविजन में नाम आने के बाद उन पर भी कार्रवाई की जाएगी। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धाराएं भी लगाई जाएगी।
-विनय कुमार, एसआइ, जांच पदाधिकारी , रायडीह थाना
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और जांच में सुस्ती का स्पष्ट उदाहरण है। नवजात की खरीद-फरोख्त जैसे संवेदनशील अपराधों में प्रारंभिक एफआइआर में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की उपयुक्त धाराओं का शामिल न होना गंभीर कानूनी चूक है, जिससे दोषियों को अनावश्यक लाभ मिलने का खतरा बनता है। मामले में आवश्यक धाराएं जोड़कर दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।
-अरुण कुमार, अधिवक्ता गुमला

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