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    पालकोट में 255 वर्षो से हो रहा नवरात्र का आयोजन

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 20 Oct 2020 05:15 AM (IST)

    अमित केसरी पालकोट (गुमला) नागवंशियों की उप राजधानी पालकोट में 255 वर्षों से नवरात्र का

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    पालकोट में 255 वर्षो से हो रहा नवरात्र का आयोजन

    अमित केसरी, पालकोट (गुमला) : नागवंशियों की उप राजधानी पालकोट में 255 वर्षों से नवरात्र का आयोजन किया जाता रहा है। पालकोट में नागवंशियों का आरंभ से ही शासन होते रहा है। स्वतंत्र भारत में भी नागवंशी अब भी राजा महाराजा तो नहीं कहलाते लेकिन इस वंश के लोग अब भी बड़े और छोटे लाल की पद से विभूषित होते हैं। नागवंशी आरंभ से ही भगवान शिव के उपासक रहे हैं। लेकिन 1765 ई. में इस परिवार में एक महारानी विवाह कर लायी गई थी। महारानी ने नागवंशी राजा के साथ इस शर्त पर विवाह किया था कि वह शक्ति के उपासक हैं। वे अपने ससुराल में शक्ति की उपासना करेंगे। महारानी जब विवाह कर पालकोट लायी गई तो उनके साथ दशभुजी दुर्गा की प्रतिमा भी लेकर आयी थी। पालकोट के लालगढ़ किला में मां दशभुजी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। मंदिर बनाए गए थे और 1765 ईस्वी में नांगवशी महराज यदुनाथ शाहदेव ने आदिशक्ति की उपासना की थी। महराज यदुनाथ शाहदेव द्वारा आदिशक्ति की उपासना की परंपरा इस वंश के लोग करते आ रहे हैं। यदुनाथ शाहदेव के वंशज विश्वनाथ शाहदेव, उदयनाथ शादेव, श्श्याम सुंदन शाहदेव, बलिराम शाहदेव, मुनीनाथ शाहदेव घृतनाथ शादेव, देवनाथ शाहदेव आदि शक्ति की उपासना करते रहे फिलहाल नागवंशी राजा लाल गोविद नाथ शाहदेव और लाल दामोदर शाहदेव इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। आदिशक्ति की पूजा की राजकीय परंपरा अब लोक परंपरा और आस्था का विषय बन गया है। आम लोग भी पालकोट की दशभुजी मंदिर में उपासना के लिए शिरकत करते हैं।

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    पूजा पद्धति में पशु बलि की परंपरा का हुआ अंत

    आरंभ में नवरात्र के दौरान भैंस का बलि देने की परंपरा थी। जब कंदर्प नाथ शाहदेव पालकोट के नागवंशी राजा घोषित किए गए तो पूजा पद्धति में भी बदलाव आ गया। मंदिर के बगल में एक हवन कुंड हुआ करता था वहां कंदर्प लाल शाहदेव हवन करते रहते थे। हवन के ताप से कान के कुंडल लाल हो जाता था। लाल कुंडल पर शीतल पानी पर छींटा मारा जाता था। पूजा पद्धति के उन्हें के कार्यकाल में बदलाव आया और पशु बलि की प्रथा को बंद कर दी गई। मां के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। दिल से मांगी गयी दुआ यहां पूरी होती है। इस मंदिर के गर्भगृह में किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं हैं। पालकोट के रामेश्वर मोदी मंदिर में पान पहुंचाने और नंद किशोर गुप्ता पेड़ा चढ़ाने का काम करते हैं। यहां इस साल भी विधि विधान के साथ नवरात्र का आयोजन किया गया है। देवी के सभी रूपों की यहां पूजा होती है। दशभुजी का मंदिर सिद्ध पीठ माना जाता है। इस लिए यह मंदिर आस्था का केन्द्र है।