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    बारकोप दुर्गा मंदिर, जहां आज भी जीवित है पौराणिक परंपरा

    By Edited By:
    Updated: Fri, 16 Sep 2011 07:15 PM (IST)

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    पथरगामा, संवाद सूत्र : बारकोप के दुर्गा मंदिर में पिछले आठ सौ वषोर्ें से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। 12वीं सदी के पूर्व बारकोप स्टेट में नट राजा का शासन था। उस वक्त मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था, परन्तु देवी की पूजा-अर्चना धूम-धाम से की जाती थी। नट राजा के शासनकाल के बाद खेतोरी राजा का शासन हुआ और तत्कालीन समय में ही मंदिर का निर्माण किया गया। यहां नट राजाओं ने परम्परा के अनुसार पूजा अर्चना की तत्पश्चात खेतोरी राजा ने मां दुर्गा को कुलदेवी बनाया। मुगल काल तथा ब्रिटिश काल के अंतिम चरण तक बारकोप स्टेट की दुर्गा का दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते थे जहां मन्नतें पूरा होती थीं।

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    इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां तांत्रिक व वैदिक पद्धति से मां दुर्गा की पूजा होती है।

    मां दुर्गा के आगमन की तैयारी कृष्णाष्टमी से ही शुरू होती है। भगवान श्रीकृष्ण को पंचगव्य से कराये गये स्नान के अवशेष को मां दुर्गा की मूर्ति के लिए लाई गई मिट्टी में मिलाया जाता है।

    ज्ञात हो कि पौराणिक एवं गौरवशाली राज्यों में बारकोप स्टेट को भी गिना जाता था। बदलते परिवेश में सब कुछ बदला लेकिन यहां की पूजा पद्धति नहीं बदली।

    विशिष्ट पूजा पद्धति के कारण यहां मा दुर्गा के सिर के भाग का निर्माण जितिया को पूर्ण कर दिया जाता है। सिर को गांव में घुमाने की परम्परा है। इस दौरान औरतें पंचोपचार पूजा कर अक्षत, सिंदूर, रोली आदि से चुमाती है। यहां दुर्गा का आसन यंत्र पर निर्मित है। आधुनिक युग व महंगाई की मार भी पूजा की परम्परा को प्रभावित नहीं कर सकी। पूजा की व्यवस्था राज परिवार के उत्तराधिकारी अपनी खर्च से करते है। चंदा या सहयोग नहीं लिया जाता। प्रथम पूजा से ही एक छाग की बलि प्रतिदिन राज परिवार की ओर दी जाती है। सप्तमी के दिन चार बलि दी जाती है तथा दशमी को चार बलि देकर मां को विदाई दी जाती है। पहली से नवमी पूजा तक राज परिवार तथा परम्परा के अनुसार पुजारी, फुलधरिया एवं बलिदानी द्वारा बलि दी जाती है। वहीं दशमी पूजा को सार्वजनिक बलि की परम्परा है। राजा द्वारा ब्रिटिश काल में ही मंदिर के पुजारी, पंडा, फुलधरिया व मूर्ति कलाकार को भरण-पोषण के लिए जमीन बन्दोबस्त की गयी है।

    यहां की दुर्गा उपासना पद्धति पूर्ण रूपेण तांत्रिक है। पूजा की विशेषता है कि दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक की प्रतिमा के अलावा क्षेत्रपाल, दिकपाल, पंचलोकपाल, षोड्ष मातृका, योगिनी, अष्टभैरव आदि की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है।

    सबसे अद्भुत दृश्य होता है मां दुर्गा के आगमन के वक्त का, जब हजारों की संख्या में जुटी महिलाएं दूध, सिंदूर, गंगाजल आदि का छर्रा देकर उनकी अगुवानी करती है। इसी दौरान बेलभरण पूजा भी की जाती है। प्रतिमा का विसर्जन राजमाता पोखर में किया जाता है जो बावन बीघा का है। विसर्जन के बाद पोखर में डुबकी लगाकर मन्नतें मांगी जाती है।

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