सोशल मीडिया ने छीनें वो ग्रीटिंग कार्ड वाले दिन: नवंबर से सजता था बाजार, कहीं शायरी तो कहीं म्यूजिक वाली चिट्ठी का क्रेज
सोशल मीडिया के प्रसार ने ग्रीटिंग कार्ड की संस्कृति को कम कर दिया है। कभी नवंबर से ही बाजार ग्रीटिंग कार्ड से सज जाते थे, जिनमें शायरी और म्यूजिक वाले ...और पढ़ें

गोड्डा के दुकानदार, जो कभी ग्रीटिंग बेचते थे। फोटो जागरण
जागरण संवाददाता, गोड्डा। एक जमाना था जब नववर्ष के आगमन को लेकर शहर के बाजारों में ग्रीटिंग कार्ड की दुकानें सजती थीं। लोगों को नववर्ष आने का अहसास होने लगता था। खासकर नवम्बर के अंतिम सप्ताह से दिसंबर तक यह दौरा चलता था, लेकिन समय के साथ ग्रीटिंग कार्ड भेजने की परंपरा अब लगभग समाप्त हो चुकी है।
बाजारों से ग्रीटिंग कार्ड भी अब गायब हो चुके हैं। डिजिटल क्रांति कहें या फिर इंटरनेट मीडिया का दौर, यह परंपरा अब खत्म हो चुकी है। अब इसकी जगह लोग इंटरनेट मीडिया में इमोजी भेजकर कर रहे हैं।
ग्रीटिंग कार्ड का दौर वर्ष 2000 के आते-आते गोड्डा शहर से खत्म होने लगा था और 2005 या इसके पहले लगभग समाप्त हो गया है, इस बात को स्टेशनरी दुकान से जुड़े लोग बताते हैं जो इस कारोबार में जुड़े हुए थे।
नववर्ष के आगमन को लेकर शहर के बाजार में ग्रीटिंग कार्ड की बिक्री व चहलकदमी लेने वाली बढ़ जाती थी व कार्ड से स्टेशनरी सहित कई दुकानें गुलजार हो जाते थे. लेकिन अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है।
इसमें सबसे ज्यादा रुचि युवाओं व छात्रों में देखी जाती थी, जहां ये छात्र कार्ड चुनने में काफी समय लगा देते थे। कोई म्यूजिक तो कोई शायरी तो कोई बधाई संदेश का कार्ड चुनते थे, लेकिन मोबाइल व इंटरनेट के दौर में अब ग्रीटिंग कार्ड दुकानों से करीब दो दशक पूर्व खत्म हो चुकी है। दुकानदारों ने भी इस कारोबार से अपने को अलग कर लिया है।
नवंबर से शुरू हो जाती थी ग्रीटिंग की बिक्री
इस बाबत शहीद स्तंभ स्थित किताब घर के प्रोपराइटर प्रियव्रत परमेश उर्फ छोटू जी का कहना है कि वर्ष दो हजार के आसपास से ग्रीटिंग कार्ड बिकना कम होने लगा और वर्ष दो हजार तीन आते-आते यह लगभग समाप्त हो लगा। उस समय मोबाइल का दौर आ चुका था और लोग उस वक्त संदेश एसएमएस से भेजने लगे थे।
उन्होंने बताया कि नवम्बर माह के अंतिम सप्ताह से ग्रीटिंग कार्ड की बिक्री शुरू हो जाती थी, जिसमें सबसे अधिक युवा व छात्र ही आते थे। एक-एक दिन एक से दो हजार कार्ड बिक जाते थे।
छोटूजी ने बताया कि उन्होंने दस रुपये से लेकर वर्ष 2000 के आसपास 350 रुपये तक ग्रीटिंग कार्ड बेचा था और जब दौर खत्म होने लगा तो बोरा में भरकर कार्ड को घर में रखना पड़ा।
कालक्रम में लोग अब ग्रीटिंग कार्ड की चर्चा तक नहीं करते हैं जबकि दिसंबर माह चल रहा है। इसकी जगह अब व्हाट्सएप, फेसबुक, मैसेंजर, ट्विटर, इंस्टाग्राम ले चुका है।
वहीं, सिनेमाहाल चौक के विद्यासागर पुस्तक भंडार के प्रोपराइटर नीरज चौधरी कहते हैं कि 1990 के दशक में ग्रीटिंग कार्ड का दौर खूब चला। एक सीजन में दस हजार तक ग्रीटिंग कार्ड उन्होंने बेचा है, लेकिन वर्ष 2000 आते-आते यह दौर समाप्त हो गया और इस कारोबार से दुकानदारों ने किनारा कर लिया और ग्राहक नहीं आते हैं।
हालांकि कई दुकानदारों ने ग्रीटिंग कार्ड की जगह अब समय के साथ खुद को ढाला है जहां कार्ड की जगह गिफ्ट आइटम, सजावटी सामान, केक टॉपर आदि बिक रहे हैं।
दिसंबर माह में डाकघर में अब नहीं व्यस्तता
दिसंबर माह में डाकघरों में ग्रीटिंग कार्ड भेजने के लिए व्यवस्था रहती थी और विभाग का प्रयास रहता था कि समय पर कार्ड पहुंच जाएं लेकिन अब डाकघरों में डिजिटल क्रांति के दौर में यह सब कुछ समाप्त हो चुका है।
इस बाबत डाक निरीक्षक विक्की श्रीवास्तव कहते हैं कि कार्ड भेजने के संसाधन आज भी मौजूद हैं व लोग भेज सकते हैं लेकिन अब ग्रीटिंग कार्ड दिसंबर माह में नहीं के बराबर डाकघर में आते हैं। यह स्थिति में बदलाव वर्ष 2000 के बाद सबसे ज्यादा आया है।

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