1885 में महाजनी प्रथा के खिलाफ बैजल बाबा ने छेड़ी थी मुहिम
फोटो - 23 24 25 - गीत संगीत के प्रेमी सजायाफ्ता बैजल बाबा से जेलर की बेटी को हो गया था प्यार - मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता सेनानी बैजल बाबा के वंशज को किया मंच पर सम्मानित विधु विनोद गोड्डा गोड्डा जिला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर सुंदरपहाड़ी प्रखंड के बड़ा कल्हाजार गांव में बैजल बाबा की प्रतिमा पर सीएम रघुवर दास ने माल्यार्पण कर स्वतंत्रता सेनानी के प्रति सम्मानभाव प्रदर्शित किया। वहीं जन चौपाल में मंच पर बैजल बाबा की पांचवीं पीढ़ी के वंशज बैजल सोरेन (55)
गोड्डा : गोड्डा जिला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर सुंदरपहाड़ी प्रखंड के बड़ा कल्हाजार गांव में बैजल बाबा की प्रतिमा पर सीएम रघुवर दास ने माल्यार्पण कर स्वतंत्रता सेनानी के प्रति सम्मानभाव प्रदर्शित किया। वहीं जन चौपाल में मंच पर बैजल बाबा की पांचवीं पीढ़ी के वंशज बैजल सोरेन (55) को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। बैजल बाबा संताल परगना के बड़े स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं लेकिन इतिहास में इनकी कृतियों को जगह नहीं मिल पाई है। झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि ने निकले पूर्व मंत्री हेमलाल मुर्मू ने बैजल बाबा के संबंध में जो कुछ बताया, वह नई पीढ़ी के लिए कौतुहल पैदा करने वाला है। मुर्मू कहते हैं कि संताल विद्रोह के बाद 1885 में बैजल बाबा ने साहूकारों और महाजनी प्रथा के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। वे देखने में काफी खूबसूरत थे और गीत संगीत का नशा उनपर सिर चढ़कर बोलता था। उनकी इसी अदा पर अंग्रेज जेलर की बेटी का दिल उनपर आ गया था और सजा के बाद भी बैजल बाबा को जेलर की बेटी ने अपने साथ इंग्लैंड ले गई थी। बाद में दोनों ने शादी भी रचा ली। उनके बच्चे भी हुए। करीब डेढ़ दशक पूर्व बैजल बाबा के अंग्रेज वंशज यहां आए भी थे।
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तंबोली का सिर कलम कर दिया था : मुर्मू बताते हैं कि बैजल बाबा ने एक तंबोली (साहूकार) से कर्ज लिया था। कर्ज का पैसा वे हर माह चुकाते थे लेकिन हिसाब कभी चुकता होता ही नहीं था। तंबोली ने कर्ज वसूली के लिए बैजल बाबा के घर की एक दुधारू गाय को उसे देने की पेशकश कर दी। वे इसके लिए तैयार भी हो गए लेकिन तंबोली ने गायों को चुनने की शर्त रख दी। इससे खिन्न बैजल बाबा ने तंबोली का सिर कलम कर दिया। बाद में उन्हें मृत्युदंड की सजा दी गई। अंग्रेजी हुकूमत ने उसे (सिउड़ी जेल मुर्सिदाबाद, बंगाल) भेज दिया। सुंदरपहाड़ी से सिउड़ी जेल की दूरी करीब 150 किमी है, बैजल बाबा ने पैदल ही नाचते गाते जेल जाने का निर्णय लिया। वे इससे महाजनी प्रथा के खिलाफ व्यापक जन विरोध को हवा देना चाहते थे। बैजल बाबा पैर में पाजेब और बांसुरी के साथ अनोखे अंदाज में रहते थे। जेलर की बेटी का दिल आ गया : मुर्मू बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत ने तंबोली की हत्या के जुर्म में बैजल बाबा को मृत्युदंड की सजा दी थी। बावजूद इसके बैजल बाबा सिउड़ी जेल में नाचते गाते रहते थे। उनकी इस अदा से जेलर की बेटी का दिल उनपर आ गया। बाद में सजायाफ्ता बैजल बाबा को जेलर की बेटी अपने साथ इंग्लैंड ले गई। दोनों ने शादी भी की। उनके बच्चे भी हुए। करीब डेढ़ दशक पूर्व बैजल बाबा के अंग्रेज वंशज कल्हाजोर गांव भी आए थे। इधर बैजल बाबा के परिजनों को उनकी कोई खोज खबर भी अंग्रेजों ने नहीं लेने दी थी।
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