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    संयुक्त परिवार के विघटन का बच्चों पर असर

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    Updated: Sun, 27 Sep 2015 01:08 AM (IST)

    पोड़ैयाहाट : अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी संयुक्त परिवार के विघटन का असर नवजात शिशुओं पर परिलक्षित होन

    पोड़ैयाहाट : अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी संयुक्त परिवार के विघटन का असर नवजात शिशुओं पर परिलक्षित होने लगा है। संयुक्त परिवार के बिखराव पर बच्चों के पोषण व संवर्धन समाज के लिए चुनौती बनती जा रही है। परिणामस्वरूप सरकारी एजेंसियों के सजगता के बावजूद भी सामाजिक मूल्यों के कारण इन्हें उसका लाभ नहीं मिल पाता है। आज संयुक्त परिवार के दरकने से वैसे बच्चे जिनके मां बाप बचपन में ही गुजर जाते है या नवजात किसी गंभीर बीमार से ग्रसित हो जाते है तो उस नवजात की देखभाल आज एक समस्या का रूप लेते जा रही है।

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    केस स्टडी एक

    पोड़ैयाहाट प्रखंड के सिंधबांक पंचायत के हथिया पाथर गांव के ठेमका मुर्मू की मौत कुपोषण से 19 अगस्त को रांची में हो गई थी। विडंबना यह है कि ठेमका के जन्म के साथ उसकी मां चल बसी और उसका समुचित देखभाल नहीं हो पाया।

    केस स्टडी दो

    सिधबांक पंचायत के उत्तर टोला रामप्रसाद राय की पत्नी अंजू देवी बच्ची के जन्म के साथ ही मर गई। बच्ची कुपोषित हो गई है। परिवार में कोई अन्य सदस्य नहीं है जो कुपोषण उपचार केन्द्र में लाकर उसका इलाज करा सके। काफी मशक्कत के बाद उसकी नानी तैयार हुई है।

    केस स्टडी तीन

    पोड़ैयाहाट कुपोषण उपचार केंद्र में लुखी हांसदा अपने नवजात बच्चे को लेकर एक दिन चुपचाप गांव चली गयी। पूछने पर बताई कि उसके घर में पति व अन्य बच्चों की देखभाल के लिए कोई नहीं था। ऐसे में घर की देखभाल भी जरूरी है।

    केस स्टडी चार

    सकरी पंचायत के ताबाजोर गांव में सुखलाल हांसदा अनाथ है। कुपोषण व कालाजार जैसे गंभीर बीमारी से ग्रसित है। स्वास्थ्य केन्द्र से जब जांच टीम पहुंची तो उसके साथ जांच कराने के लिए अस्पताल तक चलने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। काफी मुश्किल के बाद एक महिला को तैयार किया गया।