Jharkhand News: तंगहाली ऐसी कि परिजन का शव नहीं ला सका परिवार, पुतले का ही किया अंतिम संस्कार
गिरिडीह के जमुआ प्रखंड के सीताराम यादव की आगरा में संदिग्ध मौत हो गई। गरीबी के कारण परिवार शव लाने में असमर्थ था। मृतक का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार किया गया। सीताराम आगरा में दिहाड़ी मजदूरी करते थे। परिवार में शोक की लहर है। ग्रामीणों ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है।

संवाद सहयोगी, जमुआ। देश की अर्थव्यवस्था को अपने श्रम से संवारने वाले प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा एक बार फिर सामने आई है। आगरा रेलवे स्टेशन पर एक प्रवासी मजदूर की संदिग्ध हालत में मौत हो गई। मृतक सिताराम यादव (38 वर्ष) झारखंड के गिरिडीह जिले के जमुआ प्रखंड की प्रतापपुर पंचायत के ग्राम अदुवाडीह का निवासी था।
इनके परिवार के साथ विडंबना यह रही कि गरीबी के कारण पीड़ित स्वजन शव नहीं ला पाए। ऐसे में मृतक का पुतला बनाकर उनका अंतिम संस्कार करना पड़ा। सीताराम की मौत शुक्रवार को हुई थी, परिवारजनों को शनिवार को पता चला। जिसके बाद रविवार को पुतला बनाकर दाह संस्कार किया गया।
आगरा में दिहाड़ी मजदूरी करता था सीताराम
वह एक वर्षों से आगरा शहर में दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। रेलवे पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और मामले की जांच जारी है। हालांकि प्रारंभिक जांच में किसी प्रकार की चोट के निशान नहीं मिले हैं, फिर भी मौत के कारणों को लेकर संदेह बना हुआ है।
सीताराम यादव की मौत की सूचना जैसे ही उनके गांव अदुवाडीह पहुंची, परिवार में कोहराम मच गया। पत्नी, बूढ़ी माता और तीन छोटे बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल है। सबसे हृदय विदारक बात यह रही कि परिवार की अत्यंत कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वे शव को आगरा से अपने गांव नहीं ला सके। शव लाने और अंतिम संस्कार की व्यवस्था के लिए पैसे न होने के कारण परिजन असहाय रह गए।
पुतला बनाकर दी अंतिम विदाई
जब आर्थिक तंगी के कारण सीताराम यादव का शव गांव में नहीं लाया जा सका, तो गांव वालों की मदद से स्वजन ने एक पुतला तैयार किया और उसे ही सीताराम यादव का प्रतीक मानकर अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की गई। पुतले को शव की तरह सजाया गया। उस पर फूल चढ़ाए गए और पूरे विधि-विधान के साथ मुखाग्नि दी गई।
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा दृश्य देखा, जहां गरीबी की वजह से शव नहीं ला पाने की स्थिति में पुतले का अंतिम संस्कार किया गया हो। इस पूरे मामले में स्थानीय प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर समय पर प्रशासन मदद करता, तो शव को गांव लाकर पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जा सकता था।
सीताराम को न तो कोई सहायता राशि दी गई और न ही शव लाने के लिए कोई सरकारी वाहन मुहैया कराया गया। घटना के बाद कई सामाजिक संगठनों ने आगे आकर पीड़ित परिवार के लिए सहायता की मांग की है। जन संगठन जनता की आवाज के केंद्रीय अध्यक्ष अजित कुमार ने कहा कि यह सिर्फ एक मौत नहीं, सिस्टम की असंवेदनशीलता का परिणाम है। एक मजदूर, जो देश के निर्माण में अपने खून-पसीने से योगदान देता है, उसकी मौत के बाद शव तक स्वजन को नहीं मिलना शर्मनाक है।
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