पारसनाथ शिखरजी की यात्रा पर निकले दो जैन संतों का हुआ मिलन
गिरिडीह जैनियों की प्रसिद्ध तीर्थस्थली पारसनाथ शिखर की तलहटी पर शनिवार को दो जैन संत आचा

गिरिडीह : जैनियों की प्रसिद्ध तीर्थस्थली पारसनाथ शिखर की तलहटी पर शनिवार को दो जैन संत आचार्य विशुद्ध सागर व मुनि प्रमाण सागर का संसघ मिलन हुआ। दोनों संत मधुबन में अलग-अलग स्थानों पर चातुर्मास पर रह रहे हैं। इसी क्रम में शनिवार सुबह दोनों अपने सेवकों के साथ शिखर जी की यात्रा पर निकले थे, तभी दोनों का ससंघ मिलन हुआ। इसमें दोनों ने एक-दूसरे का अभिवादन किया। आचार्य विशुद्ध सागर तेरहपंथी कोठी, जबकि मुनि प्रमाण सागर गुणायतन में पिछले कई महीनों से चातुर्मास पर हैं। ससंघ मिलन के बाद आचार्य विशुद्ध सागर ने श्रावक संस्कार संयम शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि जिस वस्तु से प्राण की रक्षा हो लेकिन यश का नाश हो जाए तो ऐसा कार्य कभी नहीं करना चाहिए। इस लोक में सबसे अधिक मूल्यवान कोई वस्तु है तो वह यश है। यश के बिना सर्व संपति व बाहुल भी व्यर्थ हैं। कहा कि यशस्वी जीवन जियो, यही जीवन का आत्म सुख व आनंद का जीवन है। जीवन पर्यंत यशस्वी जीवन वही जी सकता है जिसका चरित्र निर्मल है। मन के वश में व्यक्ति अपने यश को समाप्त कर देता है। मान महाविष रूप है। नाग के डंसने पर आदमी बच सकता है लेकिन मान विष के वश हुआ मानव नरक-निर्यंच गति में गिरकर अनंत दुखों को प्राप्त करता है। कहा कि मान के अभाव में मार्दव धर्म का उदय होता है। मार्दव धर्म से युक्त मानव ऋजु परिणामी होता है। परिणामों की निर्मलता, विशुद्धता, सरल स्वभाव, सदाचरण जैसे गुण सच्चे मानव की पहचान है।
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