झारखंड में बुजुर्गों ने पेंशन के पैसे से बना डाला भव्य मंदिर, कई ने छोड़ी शराब
गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड में लगभग 300 सेवानिवृत्त लोगों ने अपनी पेंशन से 3.5 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया। मंदिर बनाने के लिए कई लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया। 29 अप्रैल से 9 मई तक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया था।

ज्ञान ज्योति, गिरिडीह। गिरिडीह जिले में बगोदर प्रखंड की बेको पूर्वी और पश्चिमी पंचायत के करीब 300 सेवानिवृत्तों ने अनोखी पहल करते हुए धर्म-अध्यात्म के प्रति अपनी अटूट आस्था का परिचय दिया है। इन बुजुर्गों ने अपनी पेंशन की राशि से भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया है, जिसके निर्माण में साढ़े तीन करोड़ रुपये से अधिक की लागत आई है।
आसपास के लोग इन बुजुर्गों की सराहना कर रहे हैं। मंदिर का निर्माण इसी साल पूरा हुआ है। निर्माण पूर्ण होने के बाद यहां इसी वर्ष 29 अप्रैल से 9 मई तक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव सह यज्ञ का आयोजन किया गया। इसके बाद मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया।
मंदिर निर्माण में सहयोग करने वाले बुजुर्ग रेलवे, बीसीसीएल आदि विभागों मे विभिन्न पदों पर कार्यरत थे। कुछ शिक्षक भी थे। अब यह सभी खुद को भगवान का सेवक कहलाना पसंद करते हैं। यह न केवल बगोदर प्रखंड बल्कि आसपास के क्षेत्र में साढ़े तीन करोड़ की लागत से बनने वाला पहला मंदिर है।

खास बात यह है कि मंदिर निर्माण के पावन उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई बुजुर्गों ने अपनी आदतों में बदलाव किया और शराब समेत अन्य बुरी लत छोड़ कर उसमें खर्च होने वाली राशि मंदिर के निर्माण में लगाई। अब ये बुजुर्ग आसपास के अन्य लोगों से भी शराब, जुआ व अन्य बुरी लत छोड़ने की अपील करते रहते हैं।
इनका सपना है कि मंदिर के माध्यम से क्षेत्र में सुख-शांति और सद्भावना फैले। मंदिर निर्माण में सहयोग करने वाले 15-20 बुजुर्ग दिवंगत भी हो चुके हैं। गांव व परिवार के लोग कहते हैं कि आज उनकी आत्मा को शांति मिल रही होगी कि उन्होंने जो संकल्प लिया था, वह पूरा हो गया।

गांव का मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया तो पंच शिव मंदिर निर्माण का लिया संकल्प
बात वर्ष 2012 की है। बेको गांव में एक मंदिर था तो जीर्ण-शीर्ण हो गया था। इसे देखते हुए बुजुर्गों के मन में मंदिर का जीर्णोद्धार करने का ख्याल आया। शुरुआत चारदीवारी से की। मंदिर परिसर की घेराबंदी की और पेड़-पौधे लगाए। इतने भर से उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। इसके बाद बुजुर्गो ने वहां एक भव्य पंच शिव मंदिर बनाने और इस स्थल को नई पहचान दिलाने का संकल्प लिया।
इसके लिए सभी ने अपनी पेंशन के पैसे से हर महीने एक निशअचित रकम निकालकर मंदिर निर्माण के लिए पूंजी इकट्ठा करने का निर्णय लिया। किसी ने एक हजार तो किसी ने 500 रुपये हर महीने सहयोग राशि देनी शुरू की। आरंभ में 50 लोग आगे आए। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 300 तक पहुंच गई। बुजुर्गों के नियमित अंशदान से मंदिर निर्माण के लिए अच्छी-खासी रकम जमा हुई। इसके बाद निर्माण का काम शुरू करा दिया गया। बीच में जितनी भी राशि की जरूरत पड़ी इन 300 लोगों ने आपसी सहयोग से पुनः अंशदान कर इकट्ठा कर लिए।
पैसे कम पड़े तो श्रद्धालुओं से मांगा सहयोग
मंदिर निर्माण में अपनी पेंशन की रकम लगाने के बाद भी पैसे कम पड़े तो इन बुजुर्गों ने अन्य श्रद्धालुओं से भी आर्थिक सहयोग लेकर काम को आगे बढ़ाया। ये बुजुर्ग प्रतिदिन प्रखंड के एक अन्य धार्मिकस्थल सोनापहाड़ी जाते थे। वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। दिनभर उस मंदिर परिसर में रहकर ये बुजुर्ग वहां आने-जाने वाले श्रद्धालुओं से मंदिर निर्माण के लिए सहयोग करने की अपील करते थे।
इस क्रम में लोग यथाशक्ति सहयोग राशि देते थे। बुजुर्गों की सोच को धरातल पर उतारने में स्थानीय ग्रामीणों और आसपास के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर सहयोग किया और धीरे-धीरे भव्य मंदिर तैयार हो गया। अभी मंदिर संचालन को लेकर कोई समिति नहीं बनी है। शादी-विवाह से होने वाली आय और श्रद्धालुओं के चढावा से फिलहाल मंदिर का संचालन हो रहा है। मंदिर निर्माण में प्रशासन या फिर जनप्रतिनिधियों का सहयोग भी प्राप्त नहीं हुआ। केवल पूर्व मुखिया ने आर्थिक सहयोग किया।
बुजुर्गों ने मंदिर निर्माण कराकर सराहनीय कार्य किया है। जो काम युवाओं को करना चाहिए था, उसे बुजुर्गों ने किया। इनके इस योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। - टेकलाल चौधरी, पूर्व मुखिया
सेवानिवृत्तों ने मंदिर बनाने का संकल्प लिया था, जो पूरा हो गया। इसके लिए कई लोगों ने शराब पीना भी छोड़ दिया और मंदिर निर्माण में सहयोग किया। - दशरथ महतो, मंदिर निर्माण में सहयोगकर्ता
मंदिर बनाना हम बुजुर्गों का ध्येय था। इसके लिए सभी ने नियमित रूप से तन, मन, धन से सहयोग किया है। हमने जो संकल्प लिया था, वह पूरा हो गया। - तिलक साव, मंदिर निर्माण में सहयोगकर्ता

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