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    बेटे अनूप की माओवादी हत्या में मरांडी को नहीं मिला इंसाफ

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 27 Oct 2021 01:18 AM (IST)

    दिलीप सिन्हा गिरिडीह आज चिलखारी नरसंहार की बरसी है। 14 साल बाद भी बेटा अनूप मरांडी की माओ

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    बेटे अनूप की माओवादी हत्या में मरांडी को नहीं मिला इंसाफ

    दिलीप सिन्हा, गिरिडीह :आज चिलखारी नरसंहार की बरसी है। 14 साल बाद भी बेटा अनूप मरांडी की माओवादी हत्या में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को न्याय नहीं मिला है। और भी परिवार है जिन्हें इंसाफ का इंतजार है। दरअसल, चिलखारी नरसंहार के मुकदमे की नींव ही कमजोर थी। मरांडी के अनुज नुनूलाल मरांडी इस कांड के चश्मदीद थे। उन्हें मुकदमे में गवाह नहीं बनाया गया। पुलिस ने न प्राथमिकी में इस बात का उल्लेख किया, न ही अनुसंधान में यह बात डाली। कमजोर अनुसंधान एवं गवाहों के अदालत में टूटने का फायदा इस कांड के आरोपितों को मिला। अदालत में 30 लोगों की गवाही दिलाने के बावजूद 14 साल बाद भी पुलिस इस कांड को अंजाम देने वाले माओवादियों में से एक को भी सजा नहीं दिला सकी है। न्यायालय में यह साबित नहीं हो सका है कि किसने इस नरसंहार को अंजाम दिया था। पुलिस का अनुसंधान आज भी अधूरा है। यद्यपि, अभी तक आधा दर्जन आरोप पत्र पुलिस अदालत को सौंप चुकी है। इस मामले में पुलिस अभी तक 18 लोगों को जेल भेज चुकी है। तीन आरोपित रमेश मंडल, बशीर दां एवं सत्य नारायण साव अभी गिरिडीह और कुछ दिन पहले सरेंडर किए सुरंग यादव जमुई जेल में हैं। चार नामजद आरोपित 14 साल बाद भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। ::: यह था मामला ::: 26 अक्टूबर 2007 की मध्य रात्रि बिहार सीमा से सटे गिरिडीह के चिलखारी फुटबाल मैदान में संथाली जात्रा चल रहा था। माओवादियों ने बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनुप मरांडी समेत 20 लोगों की गोलियों से मार कर हत्या कर दी थी। संथाली जात्रा के दौरान हथियारबंद माओवादियों ने माइक से घोषणा की थी कि वे यहां नुनूलाल की तलाश में आए हैं। वहां नुनूलाल मौजूद थे। सौभाग्य से वे बच गए थे।

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    एक दर्जन माओवादियों के खिलाफ मुकदमा विचाराधीन : चिलखारी नरसंहार को अंजाम देने के आरोप में पुलिस 18 माओवादियों को जेल भेज चुकी है। फिलहाल एक दर्जन से अधिक माओवादियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा विचाराधीन है। इनमें जमुई जेल में बंद सुरंग यादव, गिरिडीह जेल में बंद रमेश मंडल, सत्य नारायण साह, बशीर दा, कोल्हा यादव, निमियाघाट निवासी जीतन मरांडी, नरेश यादव आदि प्रमुख हैं।

    न्यायालय में गवाहों ने आरोपितों को पहचान नहीं की : चिलखारी नरसंहार में बचाव पक्ष से अदालत में पैरवी करने वाले मुस्लिम अंसारी की मानें तो कांड के सूचक व अनुसंधानकर्ता देवरी के तत्कालीन थानेदार सुमन आनंद थे। उन्होंने नुनूलाल को गवाह नहीं बनाकर भूल की थी। पुलिस ने जिन 30 लोगों की अदालत में गवाही दिलाई, सभी टूट गए। कई गवाह पुलिस अधिकारी व जवान थे। गवाहों ने घटना का तो समर्थन किया लेकिन आरोपितों की पहचान नहीं की। अलग-अलग बातें गवाही में कही। पुलिस ने प्राथमिकी में जिन दस लोगों को नामजद आरोपित बनाया था, सभी सभी स्थानीय थे। इसके बावजूद गवाहों ने उन्हें नहीं पहचाना। किसी ने कहा कि माओवादियों ने बत्ती बुझा दी तो किसी ने कहा कि वो बेहोश हो गया था और उसे गिरिडीह के नवजीवन नर्सिंग होम में पहुंचने पर होश आया था। इससे बचाव पक्ष यह साबित करने में सफल रहा कि हत्यारे बाहर के थे। स्थानीय होते तो गवाह उन्हें जरूर पहचानते। निचली अदालत से फांसी, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी :

    चिलखारी नरसंहार में गिरिडीह की अदालत ने पीरटांड़ के रहने वाले झारखंड एवेन के सचिव व रंगकर्मी पीरटांड़ के निवासी चार लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। जीतन समेत चारों ने झारखंड हाईकोर्ट में अपील की थी। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने चारों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।

    सीआरपीएफ ने किया आन द स्पाट फैसला: चिलखारी नरसंहार का मास्टर माइंड 25 लाख रुपये के इनामी चिराग दा था। सीआरपीएफ एवं जमुई पुलिस ने 2016 में जमुई के जंगल में उसे मुठभेड़ में मारा गिराया था। इस कांड के दूसरे मुख्य आरोपित सिधो कोड़ा की जमुई पुलिस की कस्टडी में मौत हो गई थी। कुछ माओवादी गायब हो गए थे जिनका कभी कुछ पता नहीं चल सका है।