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    Garhwa crime news: सावधान! ग्रामीण क्षेत्रों में डालडा और रिफाइंड मिलाकर बनाया जा रहा घी, इसका उपयोग खतरनाक

    By Pradeep Choubey Edited By: Kanchan Singh
    Updated: Wed, 22 Oct 2025 04:11 PM (IST)

    गढ़वा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में डालडा और रिफाइंड तेल मिलाकर नकली घी बनाया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस नकली घी का सेवन हृदय रोगों और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ाता है। लोगों को घी खरीदते समय सावधान रहने और मिलावटी घी से बचने की सलाह दी जाती है। स्वास्थ्य विभाग को इस पर सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

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     भवनाथपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में डालडा और रिफाइंड तेल से “घी” बना का धंधा खूब फल फूल रहा है। 

    संवाद सूत्र, भवनाथपुर (गढ़वा)। भवनाथपुर बाजार और ग्रामीण क्षेत्रों में कई जगहों पर डालडा (वनस्पति घी) और रिफाइंड तेल से “घी” बनाकर बेचने का धंधा खूब फल फूल रहा है। दीपावली एवं छठ पूजा के समय यह धंधा और चल पड़ता है। 

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    बिहार के डिहरी से आई आधा दर्जन महिलाएं इसे तैयार कर बेच रही हैं। बढ़ती महंगाई और असली देसी घी के ऊंचे दामों के बीच यह मिश्रण लोगों को सस्ता विकल्प तो दे रहा है, लेकिन स्वास्थ्य के लिहाज से यह बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता है।

    क्या है डालडा और रिफाइंड का मिश्रण

    डालडा एक प्रकार का वनस्पति घी होता है, जिसे वनस्पति तेलों से हाइड्रोजनेशन प्रक्रिया द्वारा आग पर गर्म कर तैयार किया जाता है। वहीं रिफाइंड तेल वनस्पति तेल को रासायनिक प्रक्रिया से साफ कर तैयार किया जाता है।

    दोनों को मिलाने से एक ऐसा पदार्थ बनता है जो दिखने में देसी घी जैसा लगता है और सस्ता पड़ता है। यही वजह है कि कई जगह दुकानदार इसे “घी” के नाम से बेच रहे हैं और लोगों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। 

    पैसे की बचत लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक

    डालडा और रिफाइंड तेल के मिश्रण से तैयार यह नकली घी बाजार में असली घी की तुलना में लगभग 40 से 60 प्रतिशत तक सस्ता होता है। आम उपभोक्ता के लिए यह तुरंत उपलब्ध और जेब पर हल्का विकल्प बन जाता है।

    मिठाई दुकानों और छोटे रेस्टोरेंट में भी इसका इस्तेमाल बढ़ा है क्योंकि इसकी उत्पादन लागत कम होती है और मुनाफा अधिक।

    भवनाथपुर सीएचसी डॉ दिनेश सिंह ने बताया कि स्वास्थ्य के अनुसार, डालडा में मौजूद ट्रांस फैट और रिफाइंड तेल में मौजूद रासायनिक अवशेष शरीर में धीरे-धीरे जमा होकर दिल की बीमारियां, मोटापा, ब्लड प्रेशर और मधुमेह जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। लंबे समय तक इसका सेवन लीवर और पाचन तंत्र को भी प्रभावित कर सकता है।

    असली घी की पहचान जरूरी

    विशेषज्ञ बताते हैं कि असली देसी घी की खुशबू प्राकृतिक होती है और यह हल्के ताप पर तुरंत पिघल जाता है। वहीं नकली या मिलावटी घी परतदार जमता है और फ्रिज में रखने पर उसमें धब्बे दिखाई देते हैं। उपभोक्ताओं को खरीदारी करते समय लेबल, ब्रांड और एफएसएसएआइ मार्क की जांच अवश्य करनी चाहिए।

    सरकार और उपभोक्ता विभाग की भूमिका

    खाद्य सुरक्षा विभाग समय-समय पर नमूना जांच करता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में निगरानी की कमी के कारण यह मिलावट का धंधा तेजी से फैल रहा है।

    खास कर दीपावली और छठ पूजा में इसकी मांग ज्यादा हो जाती है। उपभोक्ताओं से अपील की गई है कि वे संदिग्ध घी की जानकारी स्थानीय खाद्य निरीक्षक या जिला प्रशासन को दें, ताकि मिलावटखोरों पर कार्रवाई की जा सके।