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    राम, कृष्ण और महिषाषुर मर्दिनी की गाथाएं समेटे मंदिरों वाला गांव

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Sun, 17 Apr 2022 07:37 PM (IST)

    देश दुनिया ने तब मंदिरों के इस गांव के इतिहास के बारे में जाना। राम कृष्ण और महिषासुर मर्दिनी की गाथाओं को समेटे यहां के मंदिर टेराकोटा स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना हैं। सभी सनातन संस्कृति के अप्रतिम इतिहास की कहानी कह रहे।

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    झारखंड मलूटी में हैैं तीन सौ वर्ष से अधिक पुराने 72 मंदिर, विश्व की सर्वाधिक लुप्तप्राय 12 धरोहरों में शामिल।

    दुमका [राजीव]। झारखंड के दुमका का एक गांव मलूटी। वर्ष 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में कई शताब्दियों के साक्षी 108 मंदिरों के इस गांव की झांकी पेश की गई। झांकी को दूसरा स्थान मिला था। देश दुनिया ने तब मंदिरों के इस गांव के इतिहास के बारे में जाना। राम, कृष्ण और महिषासुर मर्दिनी की गाथाओं को समेटे यहां के मंदिर टेराकोटा स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना हैं। सभी सनातन संस्कृति के अप्रतिम इतिहास की कहानी कह रहे। बीते दो अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुमका आए, उन्होंने मलूटी के मंदिरों का जीर्णोद्धार कर ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने की घोषणा की। इसके बाद चार करोड़ रुपये की लागत से मलूटी के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ।

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    टेराकोटा कला की मिसाल:

    कुछ मंदिरों पर निर्माण का वर्ष अंकित है। इसके अनुसार अभी मौजूद सबसे पुराने मंदिर को साल 1680 में राजा बाज बसंत ने बनवाया। एक मंदिर में 1719 निर्माण वर्ष दर्ज है, इसे उनके वंशज राजा राखर चंद्र्र ने बनवाया था। इस मंदिर पर अंकित तिथि के मुताबिक इसका निर्माण जेठ (हिंदी माह) में शुरू हुआ और अगहन में इसे पूरी तरह बना लिया गया। गांव के कुमुदवरण राय बताते हैं कि मलूटी के राजा व इनके वंशजों ने यहां 108 मंदिर और उतने ही तालाब बनाए। इनमें से सबसे ऊंचा मंदिर 60 फीट और सबसे छोटा 15 फीट का है। इनमें 30 मंदिर टेराकोटा शैली के हैैं।

    1680 से 1854 के बीच बने मंदिर:

    मलूटी पर पुस्तक लिखने वाले सिदो-कान्हू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व इतिहासकार डा. सुरेंद्र झा कहते हैं कि मलूटी के मंदिर 1680 से 1854 के बीच बने। यह पूरे विश्व की धरोहर हैं। हेरिटेज पर काम कर रही संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड ने वर्ष 2010 में मलूटी के मंदिरों को विश्व की 12 सर्वाधिक लुप्तप्राय धरोहरों की सूची में शामिल किया था। इस सूची में भारत से शामिल होने वाली यह एकमात्र धरोहर है। अब झारखंड सरकार ने भी मलूटी को यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने का प्रयास शुरू किया है। लगभग तीस वर्ष पहले दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक सुरभि ने इस गांव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी।

    भगवान शिव व महामाया को समर्पित:

    72 मंदिरों में से 58 शिव मंदिर हैं। देवी काली, भगवान विष्णु व मां मौलिक्षा समेत अन्य देवों के 14 मंदिर भी हैं। यहां चाला शैली वाले शिखर मंदिर हैं तो समतल छत वाले व रास मंच के आकार वाले मंदिर भी। ओडिशा में प्रचलित रेखा मंदिर और बंगाल की शैली पर बने मंदिर भी यहां हैैं। सभी मंदिरों के प्रवेश द्वार बहुत छोटे है। लगभग सभी मंदिर मेें सामने की तरफ टेराकोटा के पैनल बने हैं जो आज भी वैसे ही हैं। इन्हें बहुत बारीकी से जोड़ा गया है। इन टेराकोटा पैनल में धार्मिक व ऐतिहासिक दृश्यों को बेहद बारीकी से उकेरा गया है। राम-रावण युद्ध के दृश्य कई मंदिरों में दिखते हैं। कहीं सीता हरण, मारीच वध, जटायु प्रसंग तो कहीं कृष्ण लीला, माखन चोरी, गिरि गोवर्धन प्रसंग और मां अंबे द्वारा महिषासुर मर्दन के प्रसंग भी बखूबी दर्शाए गए हैं। बंगाल सीमा पर बसा मलूटी झारखंड के दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में स्थित है। मलूटी के मंदिरों पर लंबे समय तक शोध करने वाले स्व. गोपालदास मुखर्जी यहां के मंदिरों के जीर्णोद्धार में भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) की भागीदारी के लिए जीवनपर्यंत प्रयासरत रहे।