झारखंड की उपराजधानी दुमका बनी 'क्राइम कैपिटल', जघन्य अपराधों की लंबी फेहरिस्त; क्या पुलिस की पकड़ कमजोर?
झारखंड की उपराजधानी दुमका में मार्च से अगस्त के बीच हत्या सामूहिक दुष्कर्म और दुष्कर्म के बाद हत्या जैसी एक दर्जन से अधिक वीभत्स वारदातें हुई हैं। इन घटनाओं ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं और आम लोगों में दहशत पैदा कर दी है। पुलिस की त्वरित कार्रवाई के बावजूद अपराधों में कमी नहीं आ रही है।
राजीव, जागरण दुमका। झारखंड की उपराजधानी दुमका में पिछले छह महीनों से आपराधिक घटनाओं ने आम लोगों को दहशत में डाल दिया है। मार्च से अगस्त 2025 के बीच हत्या, सामूहिक दुष्कर्म और दुष्कर्म के बाद हत्या जैसी वीभत्स वारदातों ने न सिर्फ क्रूरता की हदें पार कर दी हैं, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पुलिस की त्वरित कार्रवाई के बावजूद इन घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या दुमका अब अपराधियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है?
बुधवार को ही अल सुबह गोपीकांदर थाना क्षेत्र के टेसाफुली गांव में खून से लथपथ एक शादीशुदा युवती खुशबू कुमारी पर चाकू से गर्दन व गाल पर जानलेवा हमला करने की खबर सामने आई। फिलहाल खुशबू दुमका के फूलोझानो मेडिकल कालेज व अस्पताल में इलाजरत है। अब तक जानकारी के मुताबिक खुशबू अपने पति वीरेन महतो के साथ जंगल में घूमने गई थी। अपराधी पकड़े नहीं जा सके हैं।
मार्च से अगस्त तक: वारदातों का वीभत्स सिलसिला
- 25 अगस्त: काठीकुंड थाना क्षेत्र में एक 17 वर्षीय पहाड़िया युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म।
- 3 मार्च: काठीकुंड थाना क्षेत्र में एक 40 वर्षीय महिला की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या।
- 11 मई: गोपीकांदर थाना क्षेत्र में पत्नी के ससुराल नहीं जाने पर पति ने चाकू मारकर कर दी हत्या।
- 14 अप्रैल: गोपीकांदर थाना क्षेत्र के रांगा पहाड़पुर गांव में पति-पत्नी की धारदार हथियार से हत्या।
- 7 मई: शिकारीपाड़ा में पारिवारिक विवाद में छोटे भाई ने बड़े भाई की चाकू गोदकर हत्या कर दी।
- 18 मई और 16 जून: मुफस्सिल थाना क्षेत्र में दो अलग-अलग मामलों में सामूहिक दुष्कर्म की घटना, जिसमें पीड़ित आदिवासी युवतियां थीं।
समाजशास्त्रीय पहलू: क्यों बढ़ रही है ऐसी क्रूरता?
सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान संकाय के व्याख्याता डॉ. स्वतंत्र कुमार सिंह के अनुसार, "ये घटनाएं हमारे सामाजिक ताने-बाने में बिखराव और असंतोष का परिणाम हैं। रचनात्मक बातों की जगह नकारात्मकता और तीव्र प्रतिक्रिया देने की प्रवृत्ति हिंसक वारदातों का कारण बन रही है।" यह बयान बताता है कि दुमका में सिर्फ आपराधिक समस्या नहीं, बल्कि गहरी सामाजिक समस्या भी पनप रही है।
पुलिस का पक्ष बनाम जनता का डर
पुलिस का दावा है कि अधिकांश मामलों में उन्होंने त्वरित कार्रवाई करते हुए अपराधियों को गिरफ्तार किया है। हालांकि पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष अमिता रक्षित का कहना है कि महिला हिंसा खासकर आदिवासी और पहाड़िया महिलाओं के साथ होने वाली घटनाएं चिंता का विषय हैं। वे इन मामलों में स्पीडी ट्रायल चलाकर दोषियों को जल्द सजा दिलाने की मांग करती हैं।
यह स्थिति दुमका की आम जनता में भय का माहौल बना रही है। एक तरफ पुलिस गिरफ्तारी का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ अपराधों की क्रूरता और संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। सवाल यह है कि क्या दुमका अपनी उपराजधानी वाली पहचान खोकर 'क्राइम कैपिटल' बनने की राह पर है?
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