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    Jharkhand Tourism: अजगैबीनाथ से तारापीठ वाया बैद्यनाथधाम से बासुकीनाथ, दुमका में धार्मिक पर्यटन की भारी संभावनाएं

    इस लेख में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है विशेषकर झारखंड के दुमका जिले में। बिहार और पश्चिम बंगाल के साथ मिलकर एक धार्मिक पर्यटन सर्किट बनाने की बात की गई है जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पलायन कम होगा। दुमका और इसके आसपास के धार्मिक स्थलों का वर्णन है।

    By Rajeev Ranjan Edited By: Krishna Parihar Updated: Mon, 25 Aug 2025 09:18 PM (IST)
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    दुमका में धार्मिक पर्यटन की भारी संभावनाएं

    राजीव, दुमका। धर्म, सभ्यता और संस्कृति के साथ अर्थव्यवस्था का गणित सीधे तौर पर जुड़ा है। खास कर झारखंड जैसे राज्य में तो धार्मिक पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं।

    खास बात यह भी कि बिहार से अलग हुए झारखंड के पड़ोसी राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल भी धार्मिक पर्यटन के मामले में काफी अहम है। बिहार में धार्मिक पर्यटन के समग्र विकास को ध्यान में रखकर बौद्ध सर्किट का निर्माण किया गया है।

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    बौद्ध सर्किट में बोध गया, राजगीर, नालंदा, वैशाली और पूर्वी चंपारण के धार्मिक, पर्यटन और ऐतिहासिक स्थलों को शामिल किया गया है। यह सर्किट बुद्ध के जीवन, आध्यात्मिक जागृति और नेपाल के लुंबिनी में उनके जन्म स्थल से लेकर बिहार में उनके ज्ञान और शिक्षा की यात्रा कराता है।

    ढ़ाई दशक पूर्व हुए झारखंड गठन के बाद ऐसी उम्मीद थी कि यहां भी धर्म-पर्यटन को बढ़ावा देकर इसे उद्योग व रोजगार का जरिया बनाया जाएगा लेकिन अभी इस दिशा में समन्वित प्रयास होना शेष है।

    बात अगर सिर्फ झारखंड के एक प्रमंडल संताल परगना की ही करें तो सभी छह जिले देवघर, दुमका, पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा और जामताड़ा में धार्मिक पर्यटन को विकसित करने की असीम संभावनाएं हैं।

    अगर इस प्रमंडल के साथ बिहार के अजगैबीनाथ (सुल्तानगंज) और पश्चिम बंगाल के तारापीठ को जोड़ कर तीनों राज्यों की सरकारें समन्वित प्रयास करे तो इस अंतरराज्यीय सर्किट से धन की वर्षा होने लगेगी और इस पूरे इलाके में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

    सिर्फ सावन के महीने में अजगैबीनाथ से तारापीठ तक होती है करोड़ों की आमद

    प्रत्येक वर्ष सिर्फ सावन के महीने में लगने वाले श्रावणी मेला के दौरान बिहार के अजगैबीनाथ से लेकर झारखंड के बैद्यनाथ धाम, बासुकीनाथ, मसानजोर, मलूटी और पश्चिम बंगाल के तारापीठ तक करोड़ों रुपये का कारोबार होता है।

    श्रावणी मेला के दौरान यहां विभिन्न स्रोतों से एक-एक व्यक्ति लाखों में कमाई करता है और फिर पूरे साल भर ठाट से जीता है। इस महीने में देश ही नहीं विदेशों से भी शिव-भक्त श्रद्धालुओं का आगमन होता है और इनकी गिनती लाखों में होती है।

    अगर तीनों राज्यों की सरकारें चाह ले तो पर्यटन और धर्म से जुड़े लोगों की आवक व आमद से प्राप्त होने वाले राजस्व की राशि से इस क्षेत्र का समग्र विकास हो सकता है और रोजगार के अवसर सृजित कर पलायन पर अंकुश लगाया जा सकता है।

    अजगैबीनाथ से तारापीठ तक बन सकता है धार्मिक-पर्यटन कारीडोर

    बिहार में गंगा तट पर बसे धार्मिक स्थल अजगैबीनाथ (सुल्तानगंज) से झारखंड के बैद्यनाथ धाम (देवघर) की दूरी 105 किलोमीटर है। सावन के महीने में कांवरियों के लिए देवघर पहला पड़ाव है। यहां से 40 किलोमीटर दूर बासुकीनाथ (दुमका) में शिव का फौजदारी दरबार है।

    बासुकीनाथ से भाया दुमका पश्चिम बंगाल के तारापीठ की दूरी 105 किलोमीटर है। कुल मिलाकर यह दूरी 210 किलोमीटर लंबी है। इसके बीच में दुमका से 35 किलोमीटर आगे बढ़ने पर ऐतिहासिक मसानजोर डैम है।

    दुमका से 50 किलोमीटर की दूरी पर शिकारीपाड़ा प्रखंड में 108 मंदिरों का गांव मलूटी है जिसकी पहचान देश-विदेश में पुरातात्विक महत्व को लेकर कायम है। इस मुख्य सर्किट के अलावा ब्रांच सर्किट बनाकर पूरे संताल परगना को इससे जोड़ा जा सकता है।

    संताल परगना के कण-कण में है धर्म व संस्कृति

    उद्योग-धंधों से महरूम संताल परगना के कण-कण में धर्म व संस्कृति का वास है। अगर दुमका को केंद्र में रखकर पाकुड़ जिले की ओर रुख करें तो तकरीबन 100 किलोमीटर दूर इस जिले की पहचान पत्थर उद्योग के अलावा राजबाड़ी में स्थापित काली मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, लिट्टीपाड़ा में कचंनगढ़ गुफा और यहां स्थापित शिवलिंग, हिरणपुर में धरणी पहाड़ पर स्थित शिवलिंग, चटकम में गर्म पानी का झरना, पाकुड़िया के तलवा सीतपुर में गर्म पानी का झरना प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल है।

    दुमका से साहिबगंज की दूरी तकरीबन 150 किलोमीटर है। गंगा के तट पर बसे इस जिले में धार्मिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक स्थलों की भरमार है।

    बरहेट के भाेगनाडीह में स्वतंत्रता सेनानी सिदो-कान्हु की जन्मस्थली, शिवगादी मंदिर, तेलियागढ़, राजमहल की पहाड़ियां, मोती झरना, उधवा पक्षी सेंचुरी, जामा मस्जिद, कन्हैया स्थान, फांसीघर, टक्साल, बारह द्वारी, कटघर, संगी दलान समेत कई धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल है।

    दुमका से गोड्डा की दूरी 75 किलोमीटर है। यहां योगिनी स्थान, मनोकामना नाथ महादेव, गढ़सिंहला मैदान, बाबा खटनई का मजार, बारकोप इ-स्टेट, चिहारीथान, सिंहेश्वरनाथ धाम, रत्नेश्वर धाम, लीला बाबा मंदिर एवं धनेश्वरनाथ मंदिर प्रसिद्ध है।

    दुमका से जामताड़ा की दूरी 85 किलोमीटर है और यहां के करमाटांड से ईश्वरचंद विद्यासागर की यादें जुड़ी हैं। दुमका से देवघर 64 किलोमीटर है और देवघर में तपोवन, बावन बीघा, नौलखा, त्रिकुट पहाड़, हरलाजोड़ी मंदिर, रोहिणी, मधुपुर में पथरौल काली मंदिर दर्शनीय है।

    दुमका के कण-कण में शिव विराजमान हैं। जरमुंडी प्रखंड में बासुकीनाथ, पांडेश्वरनाथ, नीमानाथ, जामा में सिरसानाथ, चूटोनाथ, सरैयाहाट में शुंभेश्वर नाथ, काठीकुंड में दानीनाथ, दुमका में शिवपहाड़नाथ, शिकारीपाड़ा के मलूटी में स्थापित शिव के 75 मंदिर हैं। सरकार को गंभीरता से पहल कर इस इलाके में धार्मिक-पर्यटन सर्किट विकसित कर रोजगार का अवसर सृजित करना चाहिए। -कुंदन झा, पुरोहित, बासुकीनाथ

    झारखंड सरकार की मंशा है कि राज्य में धर्म व पर्यटन को बढ़ावा देकर यहां रोजगार का अवसर सृजित किया जाए। सोच यह भी कि पर्यटन को उद्योग के तौर पर स्थापित कर राजस्व में बढ़ोत्तरी की जाए। इसके लिए दुमका में कई गंभीर प्रयास हुए हैं और भविष्य में भी कई योजनाएं पाइपलाइन में है।मसानजोर में इको काटेज के निर्माण के बाद अब दुमका में बर्ड सेंचुरी बनाने की स्वीकृति सरकार ने दी है। यहां का सेल्फी ब्रीज आकर्षण का केंद्र है। दुमका में म्यूजियम का निर्माण हो रहा है। धार्मिक स्थलों पर आधारभूत संरचनाएं भी मजबूत किया जा रहा है। दुमका- बासुकीनाथ पथ फोर लेन बनेगा जिसकी जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। -अभिजित सिन्हा, उपायुक्त, दुमका