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    दुमका के मलूटी में काली पूजा की धूम, 14 तरह की साग का लगता है भोग

    Updated: Fri, 17 Oct 2025 04:21 AM (IST)

    दुमका जिले के मलूटी गांव में काली पूजा की धूम है। इस अवसर पर 14 प्रकार की साग का विशेष भोग लगाया जाता है। यह पूजा मलूटी के ग्रामीणों के लिए बहुत महत्व रखती है, जिसमें वे श्रद्धापूर्वक भाग लेते हैं। साग का भोग इस पूजा को और भी खास बनाता है, जो स्थानीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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    मलूटी में मां काली को 14 तरह के साग का लगता है भोग। फोटो जागरण

    राजीव, जागरण, दुमका। दुमका के ऐतिहासिक मंदिरों का गांव मलूटी में मंत्र ही नहीं तंत्र के साथ कालीपूजा की परंपरा अनूठी है। खास बात यह कि काली पूजा में यहां 14 अंक का खास महत्व है।

    यह भी कि तारापीठ की मां तारा की बड़ी बहन मौलीक्षा से आदेश लेने के बाद ही मलूटीवासी दीपावली के दिन काली पूजा का अनुष्ठान शुरु किया जाता है। मलूटी गांव के आठ मंडपों में काली की प्रतिमा पूरे विधि-विधान से स्थापित की जाती है।

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    इसमें राजार बाड़ी में दो, मध्यम बाड़ी में एक, सिकीड़ बाडी में दो, छय तरफ में एक, चौठी बाड़ी में एक और श्मशान में एक काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है। काली पूजा के दौरान तारापीठ समेत कई क्षेत्रों से तांत्रिक व साधक यहां साधना के लिए पहुंचते हैं। अधिकांश तांत्रिकों का जमावड़ा श्मशान काली मंदिर में ही होता है।

    एओजा अनुष्ठान के बाद होती है आतिशबाजी

    परंपरा के मुताबिक काली पूजा के दिन व्रतधारी व मलूटी गांव के ग्रामीण ढोल-ढाक के साथ शाम होते ही मां मौलीक्षा की मंदिर में पहुंचकर एओजा पूजन अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान के जरिए ग्रामीण मां मौलीक्षा से काली पूजन की अनुमति ली जाती है।

    इसके बाद मंदिर से सटे काली मंदिर के प्रांगण में जमकर आतिशबाजी की जाती है। आतिशबाजी को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु व ग्रामीणों की भीड़ जुटती है। गांव के सेवानिवृत्त शिक्षक कुमुदवरण राय बताते हैं कि इस वर्ष इस मौके पर तकरीबन डेढ़ लाख रुपये की लागत से आतिशबाजी करने की तैयारी है।

    इस अनुष्ठान के बाद सभी काली मंडपों में मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके उपरांत महानिशा की बेला में काली की पूजा प्रारंभ की जाती है। पूजन के उपरांत बलि देने की परंपरा है। यहां छय तरफ काली मंडप पर भैंसा की बलि आज भी दी जाती है, जबकि शेष हिस्सों में पाठा की बलि पड़ती है।

    दीपावली के अगले सुबह छह बजे विधि-विधान से मां काली का सांकेतिक विसर्जन किया जाता है। इसी दिन शाम में सभी प्रतिमाओं को मां मौलीक्षा के मंदिर के समक्ष लाकर रखा जाता है और फिर श्रद्धा के साथ अपने-अपने तालाबों में इसका विसर्जन किया जाता है।

    14 अंक को माना गया है शुभ

    मलूटी में काली पूजा में 14 अंक को शुभ माना गया है। यही कारण है कि काली पूजा के दिन मंडपों में 14 दीप जलाने की परंपरा है। इसके अलावा 14 प्रकार की साग को एक साथ बनाकर मां को भोग लगाया जाता है।

    इसमें पुनका साग, पालक साग, कुलेखरा साग, कुमड़ा पत्ता का साग, लौकी पत्ता का साग, पूई का साग, हेंचा साग, सहजन का साग खास है। जबकि प्रसाद के रूप में भात, दाल, सब्जी, मछली व मांस समेत 14 तरह के व्यंजनों को शामिल किया जाता है।