Jharkhand: अब झारखंड में भी खेला होबे! राज्य में माय, माटी और मानुष के आसरे राजनीतिक जमीन तलाश रही टीएमसी
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राजीव, दुमका। Jharkhand News: झारखंड में मिशन 2024 और फिर लगे हाथ विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछने लगी है। सभी दल अपने हिसाब से गोटियां सेट करने की तैयारी में हैं। तीन सितंबर को दुमका में झारखंड बंगाली समिति का सेमिनार होने जा रहा है। इस सेमिनार के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मायने बड़े हैं। सभी राजनीतिक दलों की इस पर पैनी निगाह है।
झारखंड में राजनीतिक जमीन तलाश रही टीएमसी
दरअसल, भद्रजनों की गोलबंदी भले ही सरसरी तौर पर सामाजिक और शैक्षणिक अधिकारों को लेकर हो रही है, लेकिन झारखंड की राजनीतिक फलक पर इसके कई मायने हैं। खासकर पश्चिम बंगाल के रास्ते झारखंड में भी ममता दीदी को यहां माय, माटी और मानुष के आसरे राजनीतिक जमीन की तलाश है।
तृणमूल कांग्रेस झारखंड में अपने सांगठनिक विस्तार को लेकर पहले से ही कवायद में लगी है। झारखंड के कई सीटों पर बीते चुनाव में तृणमूल कांग्रेस भी प्रत्याशी उतार चुकी है।
झारखंड बंगाली समिति जिन मुद्दों को धार देकर हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने के लिए आगे बढ़ रही है कमोबेश इन्हीं मुद्दों पर तृणमूल कांग्रेस माय, माटी और मानुष की राजनीति कर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज है।
जानकार बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार अबकी झारखंड में भी माय, माटी और मानुष पर खेला करने की ताक में हैं।
चार जोन में बांट मांगों को धार दे रही झारखंड बंगाली समिति
झारखंड बंगाल समिति अपने संगठन को चार जोन में बांट कर गांव-गांव में संगठन खड़ा कर रही है। खास बात यह कि झारखंड बंगाल समिति ने अपना सेंट्रल जोन कमेटी जामताड़ा जिले के करमाटांड को बनाया है।
करमाटांड की पहचान ईश्वरचंद्र विद्यासागर से जुड़ी है, जहां सालभर में दो बार पूरे राज्य के बंगाली समुदाय के लोगों का जुटान होता है। इसी धरती से बंग भाषी अपने हक-अधिकार को हासिल करने की रणनीति तय करते हैं।
करमाटांड जोन में सिर्फ जामताड़ा और नाला को शामिल किया गया है। जबकि दुमका जोन में दुमका, देवघर, पाकुड़, साहिबगंज व गोड्डा है।
रामगढ़ जाेन में रांची, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, बोकारो, रामगढ़, गुमला, पलामू लोहरदग्गा को रखा गया है। जबकि पश्चिम सिंहभूम जोन में जमशेदपुर, चाइबासा, घाटशिला समेत कई हिस्सों को रखा गया है।
पूरे राज्य में 42 प्रतिशत से अधिक हैं बंग भाषा-भाषी
अखंड बिहार के जमाने से ही शिक्षा के क्षेत्र में बांग्ला और ओड़िया को अल्पसंख्यक की सूची में रखा गया है, लेकिन अलग झारखंड गठन के बाद इनका दायरा पश्चिमी सिंहभूम से लेकर साहिबगंज तक है। राज्य में बंग भाषियों की तादाद तकरीबन 42 प्रतिशत से अधिक है। झारखंड में बांग्ला बोलने वाले लोग हर जाति में हैं।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और उनकी पत्नी मीरा मुंडा, केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी, जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो, झारखंड के विधानसभा स्पीकर रविंद्रनाथ महतो, मंत्री आलमगीर आलम, दीपांकर भट्टाचार्य, अर्पणा सेन गुप्ता ही नहीं बल्कि कई ऐसे नेता व विधायक हैं जो बांग्ला भाषी-भाषी हैं।
बांग्ला भाषियों की जड़ें देवघर में ठाकुर अनुकुलचंद्र आश्रम में गहरी है। यही वजह है कि जब त्रिपुरा में चुनाव था तब देश के गृहमंत्री अमित शाह वहां के वोटरों को साधने के लिए देवघर आकर ठाकुर अनुकूलचंद्र आश्रम जाना नहीं भूले थे।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का भी इस आश्रम से गहरा लगाव है। इधर, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की राजनीति कद को बड़ा करने में स्व.एके राय की भूमिका भी जगजाहिर है।
ऐसे में सभी दल बंग भाषियों को अब तक अपने-अपने हिसाब से साध कर राजनीतिक नफा-नुकसान की भरपाई करते आ रहे हैं, लेकिन चुनावों के ठीक पहले झारखंड बंगाली समिति के गांव-गांव में सांगठनिक ढांचा खड़ा करने की कवायद पर सभी दलों की निगाहें हैं।
बंग भाषियों की उपेक्षा अनुचित है। समिति झारखंड के विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई शुरु कराने की मांग कर रही है। भाषा, शिक्षा और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने की चुनौती समिति के समक्ष है। प्रथम वर्ग से द्वादश वर्ग तक प्रत्येक प्रखंड में पश्चिम बंगाल बोर्ड के पाठ्यक्रम के अनुसार बंगाल बोर्ड की किताबें उपलब्ध होनी चाहिए। हमारी मंशा राजनीति करने की नहीं बल्कि हक व अधिकार हासिल करने की है। समिति इस बार हर मुद्दे पर सोच-समझ कर निर्णय जरूर लेगी यह तय है- विमल भूषण गुहा, अध्यक्ष, झारखंड बंगाली समिति, दुमका।

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