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    पर्यटन स्थल के रूप में संवर रहा हिजला मेला परिसर

    दुमका शहर से सटे मयूराक्षी नदी तट व हिजला पहाड़ी के बीचोंबीच स्थित 130 साल पुराने ऐतिहासिक राजकीय जनजातीय हिजला मेला परिसर सिरे से संवारने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।

    By JagranEdited By: Updated: Mon, 27 Sep 2021 09:17 PM (IST)
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    पर्यटन स्थल के रूप में संवर रहा हिजला मेला परिसर

    दुमका शहर से सटे मयूराक्षी नदी तट व हिजला पहाड़ी के बीचोंबीच स्थित 130 साल पुराने ऐतिहासिक राजकीय जनजातीय हिजला मेला परिसर को सिरे से संवारने का कार्य प्रारंभ हो गया है। तकरीबन छह करोड़ रुपये की लागत से यहां कई ऐसी परियोजनाओं को धरातल पर उतारने की पहल हो रही है जो परंपरा, संस्कृति व प्राकृतिक खूबसूरती के बीच आधुनिकता के समावेश का अहसास कराएगा। संभवत: 130 साल के इतिहास में हिजला मेला क्षेत्र में इतनी बड़ी राशि पहली बार खर्च की जा रही है।

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    प्रशासनिक भवन व चांद-भैरव मुर्मू कला मंच का होगा निर्माण

    हिजला मेला परिसर के मध्य में स्थित चांद-भैरव मुर्मू कला मंच का कायाकल्प किया जा रहा है। पुराने मंच को तोड़कर यहां 100 गुणा 60 फीट के आकार का बड़ा मंच बनेगा। मेला परिसर में एक प्रशासनिक स्थल भी है, जहां से मेला के दौरान प्रशासनिक अधिकारी बैठ कर मेला की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। अब इसे स्थायी रूप दिया जाएगा। यहां तमाम सुविधाओं से लैस प्रशासनिक भवन का निर्माण होगा। रोशनी की पुख्ता व्यवस्था और सुरक्षा के मद्देनजर गेट भी लगाया जाएगा। मेला परिसर में क्या होगा खास---

    -यहां एक नया फूड कोर्ट बनाया जाएगा।

    -मैदान में साइकिल ट्रैक का निर्माण

    -पक्का पाथ-वे व आर्क -वे बनेगा।

    -सुरक्षा के मद्देनजर यहां सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे।

    -हिजला पहाड़ी पर अप्रोच पथ बनाकर व्यूइंग डेक बनाया जाएगा, जहां से मेला परिसर और मयूराक्षी नदी के मनोरम दृश्यों को निहारा जा सकता है।

    -बेकार पड़े पंचायत भवन को एक्टिविटी सेंटर में तब्दील किया जाएगा

    -हाइमास्ट लाइट, स्ट्रीट लाइट की मुकम्मल व्यवस्था होगी

    - स्थायी तौर पर साउंड सिस्टम और किचन सामग्रियों की भी व्यवस्था होगी।

    -मेला परिसर के मध्य स्थित दिशोम मरांग बुरु थान को दर्शनीय बनाया जाएगा। इस स्थल को कोटा टाइल्स और अन्य सामग्रियों से सुसज्जित ------------------------

    सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पहचान है हिजला मेला

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    संताल परगना के गौरवपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास में हिजला मेला की अपनी अलग पहचान है. क्षेत्रीय कला, रास, हर्ष, नृत्य और संगीत व सांस्कृतिक विरासत की पहचान है।

    हिजला मेला की शुरुआत 130 साल पूर्व तीन फरवरी 1890 को ब्रिटिश हुकूमत के तत्कालीन उपायुक्त जान आर कास्टेयर्स ने की थी। तब से मेला इस क्षेत्र की संस्कृति को कला, रास-रंग और संगीत के माध्यम से प्रदर्शित करने की परंपरा चली आ रही है। मेला का शुभारंभ किए जाने के बाद क्षेत्र के ग्राम प्रधान, मांझी, परगनैत के साथ ब्रिटिश हुक्मरान बैठकर विचार-विमर्श करते थे। इस कारण यहां बनने वाली नियमावली को अंग्रेजी में हिज ला कहा गया और धीरे-धीरे यह हिजला के नाम से पुकारा जाने लगा।

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    उन्नयन कार्य शुरू होने से ग्रामीणों में हर्ष, दिशोम मारंग बुरु थान में की पूजा-अर्चना

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    राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव के मेला परिसर में उन्नयन कार्य शुरु होने से यहां के ग्रामीण काफी खुश हैं। सोमवार को कार्य सही व सुचारू तरीके से हो इसके लिए सही मेला परिसर में स्थापित दिसोम मरांग बुरू थान में दिसोम मारंग बुरु संताली अरिचली आर लेगचर अखड़ा और ग्रामीणों ने आदिवासी परंपरा के साथ नायकी की अगुआई में पूजा-अर्चना की। इस मौके पर ग्रामीणों ने शिलापट्ट पर अंकित हिजला मेला परिसर को संशोधित कर राजकीय जनजातीय हिजला मेला परिसर किए जाने की भी मांग की। कहा कि जनजातीय शब्द को विलोपित होना ठीक नहीं है। ग्रामीणों ने पूज्य स्थल दिसोम मारंग बुरु थान के पक्कीकरण की भी मांग की। अखड़ा और ग्रामीणों ने इस पर भी आपत्ति जताई है कि जब योजना के उन्नयन कार्य का शिलान्यास किया जा रहा था तब प्रशासन की ओर से पूजा-पाठ के लिए यहां के नायकी को आमंत्रित नहीं किया गया था। जबकि हिजला मेला जनजातीय मेला है और यहां हर शुभ काम के लिए नायकी पूजा कराते हैं। इस मौके पर मांझी बाबा सुनीलाल हांसदा,नायकी सीताराम सोरेन,राजकिशोर सोरेन,लाल हांसदा,दिलीप सोरेन,फुलमुनी सोरेन,सुमि मुर्मू, अनिता टुडू, संगीता सोरेन,सोलोनी हांसदा, मुनी हांसदा, मुनी हेंब्रम, मुनी हांसदा,एमानुएल हेम्ब्रम,अजय हेम्ब्रम,विमल हेम्ब्रम,आनंद हेम्ब्रम,प्रदीप मुर्मू,लखन मुर्मू,राम मुर्मू,राजकुमार सोरेन समेत कई मौजूद थे।

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    वर्जन

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    हिजला मेला परिसर के उन्नयन का कार्य पांच करोड़ 81 लाख 29 हजार 371 रुपये की लागत से हो रहा है। राशि कल्याण विभाग ने उपलब्ध कराई है और कार्य भवन निर्माण निगम के जरिए कराया जा रहा है। शिलान्यास के बाद कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। एक साल के अंदर कार्य को पूरा कर लिया जाएगा।

    बिजेंद्र कुमार कुशवाहा, कार्यपालक अभियंता, भवन निर्माण निगम, दुमका