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    बच्चे के गले में फंसा सिक्का नहीं निकाल सका दुमका मेडिकल कॉलेज, एम्स रेफर

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 09:59 AM (IST)

    दुमका के गोपीकांदर में चार साल के राम मड़ैया के गले में सिक्का फंस गया। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया लेकिन ओसोफिलोस्कोप की कमी से सिक्का नहीं निकला। बच्चे को एम्स/रिम्स रेफर किया गया। तीन साल से यंत्र की मांग के बावजूद अस्पताल प्रबंधन नाकाम मरीज परेशान।

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    गले से सिक्का निकालने में उपराजधानी के अस्पताल बेबस।

    जागरण संवाददाता, दुमका: दुमका के गोपीकांदर प्रखंड के रांगा मिशन गांव में चार साल के राम मड़ैया के साथ सोमवार को एक दर्दनाक हादसा हुआ। मासूम ने खेल-खेल में एक सिक्का निगल लिया, जो उसके गले में फंस गया।

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    उल्टियां शुरू होने पर परिजन उसे तुरंत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, लेकिन वहां से मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया। मंगलवार को नाक, कान, गला विशेषज्ञ डॉ. आलोक कुमार ने सिक्का निकालने की कोशिश की, मगर अस्पताल में जरूरी यंत्र (ओसोफिलोस्कोप) न होने के कारण वे नाकाम रहे। मजबूरी में बच्चे को एम्स या रिम्स रेफर करना पड़ा।

    सिक्का गले में काफी नीचे फंसा

    यह घटना दुमका मेडिकल कॉलेज की बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलती है। हर सुविधा होने का दावा करने वाला यह अस्पताल एक छोटे से यंत्र के अभाव में बच्चे का इलाज नहीं कर सका।

    डॉ. आलोक ने बताया कि सिक्का गले में काफी नीचे फंस गया था। ओसोफिलोस्कोप के बिना सिक्के का सटीक स्थान पता करना और उसे निकालना असंभव था। यंत्र की कमी के कारण मरीज को रेफर करना पड़ा।

    दो साल पहले गई मशीन, नहीं हुई पूर्ति 

    दो साल पहले एक एसआर (सीनियर रेजिडेंट) ने अपने निजी ओसोफिलोस्कोप से मरीजों का इलाज किया था।

    31 जुलाई को उनके तबादले के बाद वे मशीन साथ ले गए। तब से अस्पताल में गले में फंसी वस्तु निकालने की सुविधा ठप है। मरीजों को सीधे रेफर किया जा रहा है। 

    तीन साल से यंत्र की मांग, नहीं मिला समाधान

    चिकित्सक पिछले तीन साल से ओसोफिलोस्कोप की मांग कर रहे हैं। कई बार अस्पताल अधीक्षक को लिखित अनुरोध दिया गया, लेकिन प्रबंधन ने इस छोटे से यंत्र को खरीदने में कोई रुचि नहीं दिखाई। नतीजा, मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

    यह स्थिति न केवल अस्पताल की लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को भी उजागर करती है। सवाल यह है कि कब तक मरीजों को बुनियादी सुविधाओं के लिए बड़े शहरों की ओर दौड़ना पड़ेगा?