पांच बच्चों से शुरू हुआ सफर, आज बनाया बड़ा नाम; पढ़ें दुमका में शिक्षा की लौ जलाने वाली 90 वर्षीय डोली मुखर्जी की कहानी
डोली मुखर्जी ने शिक्षा को हथियार बनाकर समाज में एक सशक्त महिला के रूप में पहचान बनाई। उन्होंने दुमका में शिशु निकेतन स्कूल की शुरुआत की जो आज सिदो-कान्हू उच्च विद्यालय के नाम से जाना जाता है। 1966 में मात्र पांच बच्चों के साथ शुरू हुआ यह स्कूल आज शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संस्थान बन गया है।

राजीव, जागरण, दुमका। एक प्रचलित कहावत है कि शिक्षा में हथियारों से भी ज्यादा शक्ति है। इसमें व्यक्ति व समाज को बदलने की क्षमता है। शिक्षा के माध्यम से लोग ज्ञान, कौशल और मूल्य प्राप्त करते हैं। सोच-समझकर निर्णय लेने, समस्याओं के समाधान करने और समुदायों का विकास शिक्षा से ही संभव है।
शायद यही कारण है कि देश की आजादी से पहले जन्मीं 90 वर्षीय डोली मुखर्जी शिक्षा को हथियार बनाकर समाज में एक सशक्त महिला के तौर पर स्थापित हैं। अनगिनत बच्चों को शिक्षा प्रदान कर न सिर्फ उन्हें सुयोग्य बनाया बल्कि समाज को भी नई दिशा देने में सफल रही हैं।
उस दौर में जब महिलाओं के लिए घर की दहलीज लांघना भी सहज नहीं था तब डोली मुखर्जी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर दुमका में शिक्षा की लौ जलाने की बुनियाद रखी थीं। मात्र पांच बच्चों के साथ दुमका में शिशु निकेतन स्कूल की शुरुआत की थीं, जो आज सिदो-कान्हू उच्च विद्यालय के नाम से जाना जाता है।
दुमका में डोली मुखर्जी की पहचान कई मायने में विशिष्ट है। देश की आजादी के बाद दुमका संसदीय सीट के लिए जब पहली बार 1957 में लोकसभा का चुनाव हुआ, तो इनके बड़े पिताजी सुरेश चंद्र चौधरी यहां से पहले सांसद चुने गए थे। पिता शैलेष चंद्र चौधरी उस जमाने में पीटीआइ के पत्रकार थे। इनका पूरा परिवार शिक्षित था।
डाेली बताती हैं कि दुमका के ही प्रशांत मुखर्जी से उनकी शादी 1962 में हुई थी। ससुराल आकर उन्होंने स्नातक की पढ़ाई संताल परगना कालेज से पूरा की थीं। पति स्व. प्रशांत मुखर्जी वामपंथी विचारधारा से जुड़े थे और शादी से पहले ही वह रूस की यात्रा कर वापस लौट आए थे।
तब महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा इतना सहज नहीं था, लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने में मायके और ससुराल दोनों पक्ष का भरपूर सहयोग मिला और यही वजह है कि आज वह समाज में अपनी अलग व विशिष्ट पहचान बना पाईं हैं।
शिशु निकेतन की शुरुआत पांच बच्चों के नामांकन से
डाेली बताती हैं कि वर्ष 1966 में पति प्रशांत मुखर्जी के सहयोग मात्र पांच बच्चों का नामांकन कर शिशु निकेतन स्कूल की बुनियाद रखीं थीं। उन पांच बच्चों का नाम अब तक डोली को याद है। कहती हैं कि शैलेश सिंह, राेजी मुखर्जी, अरुंधति राय, पाली दास एवं जाली दास यही पांच बच्चे थे। तब स्कूल चलाना काफी कठिन व संघर्षपूर्ण था।
अधिकांश अभिभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते थे। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए घर-घर जाकर काफी समझाना पड़ता था कहती हैं कि भलाई व बुराई दोनों समाज में व्याप्त है, लेकिन अच्छे कार्यों में अच्छे लोगों की मदद जरूर मिलती है।
उन्हें भी कई मददगार मिले जिनके दम पर शिशु निकेतन अब सिदो-कान्हू उच्च विद्यालय बन चुका है। इसकी तीन अलग-अलग शाखाएं संचालित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में छह अन्य सरकारी प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं। वर्ष 1999 में सिदो-कान्हू उच्च विद्यालय दुमका में सीबीएसई बोर्ड से मान्यता हासिल करने वाला पहला स्कूल बना।
पति का मिला भरपूर सहयोग तो बन पाई ताकतवर
डाेली मुखर्जी कहती हैं कि उनके पति के विचार काफी खुले थे। उन्हें हर कदम पर पति का भरपूर सहयोग मिला। संघर्ष के समय वह पूरी ताकत बनकर साथ रहते थे। 13 मार्च 1997 में उनकी निधन के बाद थोड़ी घबड़ाहट जरूर हुई थी, लेकिन फिर उन्हीं के बताए रास्ते पर आगे बढ़ते चली गई।
अभी पुत्र वधु सुनीता मुखर्जी स्कूल की निर्देशिका और पौत्री रोदोशी स्कूल प्रबंधक व पुत्र प्रदीप्त मुखर्जी सचिव बनकर उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, तो काफी सुकून मिल रहा है।
शिक्षा सबके लिए जरूरी है। शिक्षा से जुड़कर ही हर क्षेत्र में सशक्त बना जा सकता है। खासकर महिलाएं शिक्षा को हथियार बनाकर अपने हक व अधिकारों को लेना सीखें। - डोली मुखर्जी, संस्थापिका, सिदो-कान्हू उच्च विद्यालय, दुमका।
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