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    मयूराक्षी नदी में विदेशी मछलियों का डेरा, देसी के लिए खतरा बनी 'गोल्डन कार्प' और 'तिलापिया'

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 06:07 PM (IST)

    राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के सर्वेक्षण में दुमका की मयूराक्षी नदी में 45 तरह की मछलियां मिली हैं जिनमें दो विदेशी प्रजातियां- नील तिलापिया और गोल्डन कार्प भी शामिल हैं। रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि तिलापिया जैसी विदेशी मछलियां देसी प्रजातियों के लिए खतरा हो सकती हैं। सर्वेक्षण टीम ने देसी मछलियों के संरक्षण और मछुआरों को टिकाऊ तरीकों के लिए प्रशिक्षित करने पर जोर दिया है।

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    मयूराक्षी की कोख में देसी नहीं विदेशी प्रजाति की मछलियां भी।

    राजीवदुमका। दुमका की लाइफलाइन मयूराक्षी की कोख में देसी ही नहीं विदेशी प्रजाति की मछलियां भी पाई जाती हैं। यह जानकारी मयूराक्षी नदी में मानसून सत्र में जल और जैव विविधता विश्लेषण के दौरान सामने आई है।

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    मानसून के मौसम में मयूराक्षी नदी में 45 प्रजातियों की मछलियां पाई गई हैं, जिसमें दो मछली नील तिलापिया और गोल्डन कार्प विदेशी प्रजाति की भी शामिल हैं। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन फेज थ्री के तहत मयूराक्षी नदी में एक व्यापक सर्वेक्षण एवं जैव विविधता नमूना एकत्रीकरण किया गया है।

    यह सर्वेक्षण मयूराक्षी नदी में देवघर और दुमका समेत पश्चिम बंगाल के सूरी, सैंथिया और तालग्राम पश्चिम बंगाल तक किया गया है। सर्वेक्षण में मसानजोर डैम भी शामिल है।

    सर्वेक्षण के उपरांत रविवार को दुमका से वापस लौटने से पूर्व अभियान का नेतृत्व कर रहे कोलकाता स्थित आइसीएआर सेन्ट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट बैरकपुर के निदेशक डा.बसंता कुमार दास कई अहम जानकारियों को दैनिक जागरण के संग साझा किए हैं।

    सर्वेक्षण के दौरान दुमका जिले के हिजला में जल और जैव विविधता विश्लेषण और दुमका के स्थानीय मछली बाजार में मयूराक्षी नदी में पाई जाने वाली मछली प्रजातियों की उपलब्धता सर्वे भी किया गया है।

    मछलियों की प्रजातियों में पाई गई जैव विविधता

    सर्वेक्षण रिपोर्ट में मयूराक्षी नदी व मसानजोर डैम में पाई जाने वाली 45 प्रजाति की मछलियों में जैव विविधता पाई गई है। पोथी मछली, चेलवा, बोआरी, रोहू, मृगल, कतला, कालबासु, बाटा, रेबा बाटा, गुंटिया, बेले, चितला, फोलोई, टेंगरा, पाबादा, मोला, झींगा या इचना, बामी प्रजाति की देसी मछलियां बहुतायत में पाई गई हैं।

    जबकि नील तिलापिया और कामन कार्प जैसी विदेशी मछलियों की प्रजाति भी पाई गई हैं। चिंता की बात यह कि नील तिलापिया प्रजाति की मछलियों से देसी मछलियों को खतरा रहता है।

    आदिवासियों के लिए खाद्य सुरक्षा देसी मछली

    केंद्रीय अंतर स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान सिफरी बैरकपुर की टीम ने दुमका के स्थानीय मछली बाजार और स्थानीय मछुआरों के गांवों में जाकर भी सर्वेक्षण किया है। मयूराक्षी नदी में पाई जाने वाली महत्वपूर्ण मछली प्रजातियों की बाजार में उपलब्धता की जानकारी ली है।

    रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि मछली उत्पादन और आपूर्ति की स्थिति में हरसाल उतार-चढ़ाव होता है। यह मौसम, जलवायु और मछली पकड़ने की तकनीकों की वजह से है। मछली बाजार सर्वेक्षण के दौरान छोटे पोषक खाद्य प्रजातियों की मछलियों की अच्छी गुणवत्ता पाई गई है।

    बाजार सर्वेक्षण के दौरान छोटी देसी मछली प्रजातियों में पुत्ती, सिंगी, कुचेया, टेंगरा, मोला, चंदा, बुल्ला, गरई और झींगा बहुतायत में पाई गई हैं जो मछुआरा व आदिवासी समुदाय के लिए खाद्य सुरक्षा भी हैं।

    छोटी देसी मछलियों के संरक्षण पर जोर

    सर्वेक्षण टीम ने रिपोर्ट में कहा है कि मयूराक्षी नदी व डैम में पाई जाने वाली छोटी देसी मछलियों के संरक्षण की दरकार है। खास कर इसके लिए मछली पकड़ने के तरीकों में बदलाव, विध्वंसक मछली पकड़ने की पद्धतियों को रोकने के लिए जागरूकता जरूरी है।

    इसके लिए मछुआरों और समुदायों को सतत मछली पकड़ने की पद्धतियों के बारे में प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया गया है ताकि पर्यावरणीय नुकसान कम हो और मछली उत्पादन को भी स्थिर बनाया जा सके।

    संतोषजनक स्तर पर है मयूराक्षी नदी का पानी

    हिजला नदी तट दुमका में किए गए जल नमूना परीक्षण में घुले हुए आक्सीजन का स्तर 6.6 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया। नदी जल की गुणवत्ता परीक्षण में पीएच 8.4, टर्बिडिटी 112 एनटीयू, कंडक्टिविटी 136.3 पीपीएम, टीडीएस 96.8 पीपीएम, कुल क्षारीयता 78 मिलीग्राम प्रति लीटर और कुल कठोरता 54 मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई जो कि संतोषजनक स्तर पर है।

    दुमका में महत्वपूर्ण छोटी मछलियां जिले के आदिवासी व मछुआरा समुदायों के लिए जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह इनके आहार का एक अहम हिस्सा हैं। यह मछलियां न केवल पोषण प्रदान करती हैं, बल्कि स्थानीय बाजारों में इनकी खपत भी ज्यादा होती है। - डॉ.बसंता कुमार दास, निदेशकआइसीएआर सेन्ट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट, बैरकपुर