Navratri 2025: नवरात्र में यहां दो प्रतिमाएं रखकर होती है पूजा, पुरानी अदावत से जुड़ी है परंपरा
दुमका के रामगढ़ में भालसूमर दुर्गा मंदिर 200 साल से भी अधिक पुराना है। ग्रामीणों के अनुसार यहां सच्चे मन से मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं। मंदिर की स्थापना को लेकर जमींदार और लगवा ई-स्टेट के बीच मुकदमा भी हुआ था। भालसूमर और डेलीपाथर गांव के ग्रामीणों के बीच Durga Puja को लेकर विवाद है जिसके चलते मंदिर में दो प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं।

अमरेंद्र कुमार भगत, रामगढ़(दुमका)। दुमका के रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से कोई छह किलोमीटर दूर भालसूमर में प्रकृति की गोद में स्थापित है मां दुर्गा की एक मंदिर। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें जरूर पूरी होती है। पुराने लोग बताते हैं कि भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है।
कहते हैं कि गांव के जमींदार बान सिंह मांझी ने यहां मां दुर्गा की पूजा शुरु की थी। यहां की देवी पूजन को लेकर पहले जमींदार व लगवा ई-स्टेट और अब भालसूमर और डेलीपाथर गांव के ग्रामीणों के बीच अदावत कायम है।
पुराने लोग बताते हैं कि दुर्गा की मंदिर स्थापना को लेकर लगवा स्टेट के राजा और भालसूमर के जमींदार बान सिंह मांझी के बीच तत्कालीन भागलपुर आयुक्त के न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था।
लगवा स्टेट के राजा मंदिर की स्थापना अपने यहां कराना चाहते थे, लेकिन कोर्ट ने बान सिंह मांझी के पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद यहां पर एक झोपड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित की गई थी।
बाद में चंदा एकत्र कर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया है। जमींदार बान सिंह की मृत्यु के बाद भालसूमर तथा डेलीपाथर गांव में रह रहे वंशजों के बीच मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर उत्पन्न अदावत आज भी कायम है।
दो प्रतिमाएं स्थापित कर होती है देवी दुर्गा की पूजा
भालसूमर तथा डेलीपाथर के ग्रामीणों के बीच मुख्य मंदिर के अंदर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर अदावत का क्रम जारी है। इनके बीच चली आ रही विवाद की वजह से हर वर्ष प्रशासन को हस्तक्षेप करनी पड़ती है।
हालांकि हाल के वर्षों में पूजा के दौरान यहां किसी प्रकार की कोई परेशानी सामने नहीं आई है। इनके बीच का मामला आज भी न्यायालय में लंबित है।
वहीं प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद दोनों गांव के लोग आपसी सहमति से वर्षो पूर्व यह निर्णय लिए हैं कि डेलीपाथर गांव के ग्रामीण के द्वारा निर्मित दुर्गा की प्रतिमा मंदिर के अंदर तथा भालसूमर गांव के ग्रामीणों द्वारा निर्मित दुर्गा की प्रतिमा मंदिर के बाहर बरामद में रखकर पूजा-अर्चना की जाएगी।
वर्षों से तय यही निर्णय आज भी कायम है। एक ही मंदिर में दो दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है एक अंदर तथा एक बाहर बरामदा में।
सप्तमी को होती है कलश स्थापना
दुर्गा पूजा के दौरान यहां पर सप्तमी को कलश स्थापित की जाती है। अष्टमी की रात्रि से ही यहां हजारों की संख्या में पाठा की बलि दी जाती है। पाठा के सिर को बेचने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा प्रतिवर्ष इसकी डाक की जाती है। इस वर्ष 2.51 लाख रुपए का डाक किया गया है।
हर वर्ष की तरह से इस वर्ष भी पूरे उत्साह से भालसूमर दुर्गा मंदिर में पूजा-अर्चना की जाएगी। मान्यता है कि सच्चे मन से मांग गई मुराद पूरी होती है।
प्रत्येक वर्ष मंदिर में रंग रोगन पर प्रशासन के स्तर से राशि खर्च की जाती थी, लेकिन इस बार प्रखंड प्रशासन ने रंग रोगन के लिए कोई भी राशि देने से साफ इंकार कर दिया है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए प्रशासनिक स्तर पर यहां बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने की जरूरत है। -अखिलेश्वर मांझी, अध्यक्ष भालसूमर दुर्गा मंदिर, रामगढ़
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।