भागलपुर-दुमका-रामपुरहाट के बीच डबल रेललाइन मंजूर, तीन राज्य के लोगों को होगा फायदा
केंद्र सरकार ने भागलपुर-दुमका-रामपुरहाट रेलखंड के दोहरीकरण को स्वीकृति दी है। इस परियोजना से 77 किलोमीटर की दूरी कम होगी और ट्रेनों की आवाजाही सुगम होगी। इससे यात्रियों को सुविधा होगी, समय की बचत होगी और क्षेत्र के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। कनेक्टिविटी में सुधार होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

भागलपुर-दुमका-रामपुरहाट के बीच डबल रेललाइन मंजूर, तीन राज्य के लोगों को होगा फायदा
राजीव, दुमका। झारखंड की उपराजधानी दुमका अब उस ऐतिहासिक प्रतीक्षा के अंत की ओर बढ़ रही है, जो एक शताब्दी से अधिक समय से अधूरी थी। ब्रिटिश शासनकाल और ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव के दौर में बनी वह रेल योजना, जो साजिशों और औपनिवेशिक स्वार्थों में दबा दी गई थी, अब प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना के अंतर्गत साकार होने जा रही है।
केंद्र सरकार ने भागलपुर–दुमका–रामपुरहाट रेलखंड के दोहरीकरण हेतु 3169 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है। लगभग 177 किलोमीटर लंबे इस मार्ग के बन जाने से न केवल झारखंड, बिहार और बंगाल के बीच रेल संपर्क सुदृढ़ होगा, बल्कि भागलपुर से हावड़ा की दूरी भी लगभग 77 किलोमीटर घट जाएगी।
केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह रेलखंड तीन राज्यों के बीच व्यापार, उद्योग और जन-आवागमन को नई दिशा देगा। अब दुमका के लोगों की वह आकांक्षा पूरी होने जा रही है, जो 130 वर्ष पूर्व ब्रिटिश हुकूमत की उदासीनता के कारण अधूरी रह गई थी।
ब्रिटिश काल में बनी थी दुमका–हावड़ा रेल योजना
चितरंजन रेल कारखाना के मुख्य विद्युत अभियंता दिनेश साह बताते हैं कि ब्रिटिश संसद में वर्ष 1905 में प्रस्तुत “भारत में रेल व्यवस्था की प्रशासकीय रिपोर्ट” में दुमका होकर हावड़ा तक रेल संपर्क की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था।
रानीगंज से क्यूल तक की रेल लाइन 1871 में चालू हुई थी, जबकि कोलकाता से रानीगंज तक की रेल सेवा 1855 के आसपास प्रारंभ हो गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी और ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी के अभियंताओं ने उसी समय यह महसूस किया था कि यदि रानीगंज, देवघर, भागलपुर और अहमदपुर होते हुए हावड़ा तक रेल मार्ग बनाया जाए, तो यह पूरा क्षेत्र आर्थिक, औद्योगिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन सकता है।
सन् 1889 में हुआ था दुमका मार्ग का पहला सर्वेक्षण
दिनेश साह के अनुसार, लंदन से प्रकाशित एक कला और प्रौद्योगिकी पत्रिका में वर्ष 1895 में यह उल्लेख किया गया था कि सन् 1889 में तत्कालीन पश्चिम बंगाल रेल कंपनी के मुख्य अभियंता रैमसे ने देवघर–दुमका–सिउड़ी–कटवा–राणाघाट के बीच रेल मार्ग का सर्वेक्षण पूरा कर लिया था।
पत्रिका में लिखा गया था कि इस मार्ग से हावड़ा से पंजाब तक की दूरी घटेगी और यह क्षेत्र कृषि तथा जनसंख्या की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। परंतु ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी ने इस परियोजना का कड़ा विरोध किया, क्योंकि उसे अपने व्यापारिक एकाधिकार के समाप्त होने का भय था। इसी विरोध के कारण यह योजना ब्रिटिश शासन के दस्तावेजों में ही दबकर रह गई।
वर्चस्व की लड़ाई में दब गई थी दुमका की उम्मीद
ब्रिटिश काल के रेलवे टाइम्स में 28 दिसंबर 1895 को प्रकाशित विवरण में उल्लेख है कि भागलपुर से दुमका होते हुए अहमदपुर तक रेल मार्ग के सर्वेक्षण का कार्य आरंभ हो चुका था।
इसकी एक शाखा देवघर से नोनीहाट जोड़ने की भी योजना थी। किंतु ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद भी औपनिवेशिक रेल कंपनियों के बीच वर्चस्व की होड़ जारी रही, और इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सन् 1899 में कोलकाता से प्रकाशित “बंगाल प्रशासन प्रतिवेदन” में भी लिखा गया था कि “अहमदपुर से भागलपुर मार्ग (दुमका और सिउड़ी होकर) पर अब तक कोई प्रगति नहीं हो सकी।”
वर्ष 1902 में प्रकाशित “भारतीय अभियंत्रण साप्ताहिक पत्र” में ब्रिटिश अभियंता एफ. वी. हरबर्ट ने सुझाव दिया था कि गंगा पर भागलपुर में रेल पुल बनाया जाए और वहां से दुमका होते हुए अहमदपुर तथा हुगली तक चौड़ी पटरी की नई रेल लाइन बिछाई जाए। प्रस्ताव में दुमका से रानीगंज कोयला क्षेत्र तक जोड़ने की शाखा लाइन भी शामिल थी।
दिनेश साह का कहना है कि दुमका की भौगोलिक स्थिति और आर्थिक उपयोगिता इतनी उपयुक्त थी कि यह रेल मार्ग औद्योगिक क्षेत्र के लिए वरदान सिद्ध होता। परंतु ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी की सशक्त लॉबी नहीं चाहती थी कि उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच कोई वैकल्पिक संपर्क स्थापित हो। इसी कारण यह योजना अधूरी रह गई।
अब गति शक्ति योजना से बदलेगी तस्वीर
प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना के अंतर्गत भागलपुर–दुमका–रामपुरहाट रेलखंड का दोहरीकरण इस पूरे क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास की नई दिशा तय करेगा।
दुमका की भौगोलिक स्थिति इसे बिहार, झारखंड और बंगाल के बीच प्राकृतिक सेतु बनाती है। ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में जिन योजनाओं को औपनिवेशिक स्वार्थों ने दबा दिया था, उन्हें अब केंद्र सरकार साकार कर रही है। यह केवल रेल परियोजना नहीं, बल्कि विकास की नई धारा है।- दिनेश साह
दुमका की रेल यात्रा : 2011 से अब तक
दुमका, जो लंबे समय तक राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण रहा, रेल सुविधाओं की दृष्टि से सदैव उपेक्षित रहा। अनेक वर्षों की प्रतीक्षा के बाद यहाँ से पहली रेलगाड़ी 12 जुलाई 2011 को देवघर के लिए चली। इसके बाद 2015 में दुमका–रामपुरहाट और 2016 में दुमका–मंदारहिल–भागलपुर के बीच रेल सेवा प्रारंभ हुई।
अब जब केंद्र सरकार इस रेलमार्ग का दोहरीकरण करने जा रही है, तब यह उम्मीद है कि दुमका न केवल झारखंड बल्कि बिहार, बंगाल और पूर्वोत्तर भारत से भी तेज़ व सुगम संपर्क प्राप्त करेगा।
विकास की नई पटरी पर दुमका
इस परियोजना के पूरा होने पर दुमका की पहचान केवल उपराजधानी के रूप में नहीं, बल्कि पूर्वी भारत के एक सशक्त संपर्क केंद्र के रूप में होगी। इससे व्यापार, उद्योग, शिक्षा, पर्यटन और स्थानीय रोज़गार में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है।
यह केवल रेल लाइन नहीं, बल्कि 130 वर्षों से अधूरी पड़ी एक ऐतिहासिक कहानी का पुनर्लेखन है। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय की जिस उपेक्षा ने दुमका को पीछे रखा, उसका अंत अब होने जा रहा है। दुमका अब वास्तव में विकास की नई पटरी पर अग्रसर है।- दिनेश साह

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