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    लोरी-कहानियों की दुनिया में लौट चलो, डिजिटल युग में बच्चों को फिर गुदगुदाएंगे 'तीन कंजूस'

    डिजिटल युग में बच्चों को किताबों से जोड़ने के लिए 17 साल बाद डॉ. यू.एस. आनंद की बाल पुस्तक तीन कंजूस व अन्य कहानियां को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक सरल भाषा रोचक कहानियों और आकर्षक चित्रों के माध्यम से बच्चों को मोबाइल की दुनिया से दूर कर पढ़ने की आदत को प्रोत्साहित करने का एक सराहनीय प्रयास है।

    By Chandan Sharma Edited By: Chandan Sharma Updated: Tue, 26 Aug 2025 04:50 PM (IST)
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    17 साल बाद डाॅ. यूएस आनंद की चर्चित कृति का नया संस्करण।

    राजीव, जागरण दुमका। डिजिटल युग और सोशल मीडिया ने बच्चों की स्वाभाविक दुनिया को कैद कर लिया है। अब बच्चे दादा-दादी और नाना-नानी से कहानियां नहीं सुनते। नंदन, चंपक, बाल कहानियां, चाचा चौधरी और साबू जैसे किरदार बीते समय की याद बन चुके हैं।

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    मां की लोरियां भी अब बच्चों को उतना आकर्षित नहीं करतीं। मनोरंजन की यह डिजिटल दुनिया उन्हें क्षणिक आनंद तो देती है, लेकिन इसके लिए मानसिक और शारीरिक स्तर पर बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।

    ऐसे माहौल में 17 साल बाद राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने दुमका के डाॅ. यूएस आनंद की लोकप्रिय बाल पुस्तक तीन कंजूस व अन्य कहानियों का पुनर्मुद्रण कर यह संदेश दिया है कि अब लौट चलें किताबों की उस दुनिया में। यह पुस्तक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा नव साक्षर साहित्य माला श्रृंखला के तहत वर्ष 2025 में पुनः प्रकाशित की गई है।

    बच्चों और युवाओं के बीच लोकप्रिय है तीन कंजूस की कहानी

    साहित्यकार डाॅ. यूएस आनंद का कहना है कि डिजिटल युग में किताबों और अखबारों से दूरी बढ़ना एक गंभीर चिंता है। ऐसे में यह सुखद है कि उनकी रचना का दूसरा संस्करण प्रकाशित हो रहा है।

    डाॅ. आनंद का मानना है कि नव साक्षर साहित्य माला का मुख्य उद्देश्य नए साक्षर हुए पाठकों को सरल व रोचक साहित्य उपलब्ध कराना है ताकि पढ़ने की आदत बनी रहे। तीन कंजूस व अन्य कहानियों का पुनर्मुद्रण बेहद उत्साहजनक है। इससे नई पीढ़ी को पुस्तकों और कहानियों से जुड़ाव मिलेगा तथा उन्हें किताबों की दुनिया में लौटने की प्रेरणा भी मिलेगी।

    यह है पुस्तक का विवरण 

    यह संग्रह अपनी मनोरंजक और शिक्षाप्रद कहानियों के लिए विख्यात है। इसमें हास्य और नैतिकता का सुंदर मेल है, जो विशेष रूप से युवा पाठकों को आकर्षित करता है। शीर्षक कहानी तीन कंजूस हास्यपूर्ण अंदाज में कंजूसी की प्रवृत्ति को उजागर करती है।

    पुस्तक में देवयानी दास गुप्ता के किए गए चित्रांकन कहानियों को जीवंत बना देते हैं। ये चित्र पाठकों के लिए कहानियों को समझने में सहायक होने के साथ-साथ दृश्य रूप से और भी आकर्षक बनाते हैं।

    इसका पहला संस्करण वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद नौ जुलाई 2025 को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ने इस पुस्तक का तीसरा संस्करण प्रकाशित किया है।

    पुस्तक परिचय : तीन कंजूस व अन्य कहानियां

    • लेखक : डॉ. यूएस आनंद

    • चित्रांकन : देवयानी दास गुप्ता

    • पहला प्रकाशन : 2008

    • श्रृंखला : नव साक्षर साहित्य माला, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

    • नया संस्करण : 9 जुलाई 2025 (तीसरी आवृत्ति)

    क्यों पढ़ें यह किताब?

    • इसमें हैं हंसी से लोटपोट कर देने वाली कहानियां

    • हर कहानी सिखाती है एक छोटी-सी बड़ी सीख

    • शब्द सरल, कथानक रोचक और चित्र बेहद मजेदार

    • मोबाइल-टीवी से हटाकर बच्चों को ले जाएगी किताबों की दुनिया में

    विशेषज्ञों की राय

    “किताबों से बच्चों और युवाओं की दोस्ती आज शिक्षकों के सामने बड़ी चुनौती है। स्कूल और कालेज के छात्र भी डिजिटल माध्यमों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। ऐसे प्रयास निश्चित रूप से स्वागत योग्य हैं।”

    — डाॅ. यदुवंश प्रणय, व्याख्याता, हिंदी संकाय, संताल परगना कालेज, दुमका

    “आजकल छोटे बच्चे मोबाइल और टीवी के गिरफ्त में आकर अपने स्वास्थ्य को गिरवी रख रहे हैं। अधिक स्क्रीन टाइम उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डाल रहा है। अभिभावकों के लिए भी यह चिंता का विषय है। ऐसे हालात में एनबीटी की पहल निश्चित रूप से सराहनीय है।”

    — डाॅ. अंकिता सिंह, चिकित्सक, होप हास्पिटल, दुमका