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    सात सौ श्लोक हैं दुर्गा सप्तशती में

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    Updated: Wed, 17 Oct 2012 07:57 PM (IST)

    -नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ फलदायी

    दुमका, जागरण प्रतिनिधि : दुर्गा सप्तशती हिन्दू धर्म का सर्वमान्य, सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक ग्रंथ है। यह मानना है एसपी कालेज में संस्कृत के व्याख्याता डा.धनंजय मिश्र का। डा.मिश्र के मुताबिक दुर्गा सप्तशती भी श्रीमद्भगवद् गीता की भांति कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी बहाने वाला अमूल्य ग्रंथ रत्‍‌न है। यद्यपि भक्त इसका पाठ वर्ष भर करते हैं, नित्य करते हैं तथापि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ एवं श्रवण समस्त मनोवांछित फल को प्रदान करने वाला है। सकाम भक्त मनोवांछित दुर्लभतम वस्तु एवं स्थिति को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं और निष्काम भक्त भगवती की कृपा से दुर्लभ मोक्ष को पाकर जन्म जन्मांतर के बंधन से छूट कृतार्थ होते हैं।

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    दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का अंश है जिस प्रकार गीता महाभारत का ही अंश है। दुर्गा सप्तशती में कुल 700 श्लोक मंत्र रूप में विद्यमान है। ये मंत्र आर्त अर्थार्थी, जिज्ञासु एवं प्रेमी भक्तों को अपना मनोरथ सफल करने वाले सोपान है।

    दुर्गा सप्तशती में कुल तेरह अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में मेधा ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को भगवती दुर्गा की महिमा बताते हुए मधु-कैरभ वध का प्रसंग सुनाना वर्णित है। इस अध्याय में 104 श्लोक मंत्र रूप में है। द्वितीय अध्याय में देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महषासुर की सेना का वध वर्णित है। इसमें कुल 69 मंत्र हैं। तृतीय अध्याय सेनापतियों सहित महिषासुर का वध वर्णित है। इसमें मंत्रों की संख्या 44 है। चतुर्थ अध्याय में इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति वर्णित है। इसमें कुल 42 मंत्र है। पंचम अध्याय में 129 मंत्र है जिनमें देवताओं द्वारा देवी की स्तुति, चण्ड-मुण्ड के मुख से अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुभ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना वर्णित है। षष्ठ अध्याय में धूम्रलोचन का वध वर्णित है जिसमें 24 श्लोक है। सप्तम अध्याय में 27 श्लोक के द्वारा चण्ड-मुण्ड वध वर्णित है। अष्टम अध्याय में रक्तबीज वध, नवम अध्याय में निशुम्भ वध एवं दशम अध्याय में शुम्भ वध क्रमश: 63, 41 एवं 32 श्लोकों में वर्णित है। एकादशवें अध्याय में 55 मंत्रों द्वारा देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान प्रस्तुत किया गया है। बारहवें अध्याय में देवी-चरित्रों के पाठ का महातम्य 41 मंत्रों में वर्णित है तथा तेरहवें एवं अंतिम अध्याय में 29 मंत्रों के द्वारा सुख एवं वैश्य को देवी का वरदान प्राप्त हुआ है। इस प्रकार संपूर्ण दुर्गासप्तशती में 700 मंत्र है जो सदैव उपादेय एवं स्मरणीय है। संपूर्ण दुर्गासप्तशती के भगवती के तीन चरित्र मिलते हैं। अतएव तीन विनियोग होता है। प्रथम चरित्र के ऋषि ब्रह्मा, देवता, महाकाली, छन्द गायत्री, शक्ति नन्दा, बीज रक्तदन्तिा, तत्व अग्नि, स्वरूप ऋगवेद है। यह प्रथम अध्याय है। द्वितीय चरित्र द्वितीय से चतुर्थ कुल तीन अध्यायों में है। इस मध्यम चरित्र के देवता महालक्ष्मी, ऋषि विष्णु, छन्द उष्णिक, शक्ति शाकम्भरी, बीज दुर्गा, तत्व वायु और स्वरूप यर्जुवेद है। तृतीय अर्थात उत्तर चरित्र का वर्णन पंचत से अंतिम अर्थात तेरहवें अध्याय तक कुल नौ अध्यायों में वर्णित है। इस उत्तर चरित्र का ऋषि रुद्र, देवता सरस्वती, छन्छ अनुष्टुम् शक्ति भीमा, बीज भ्रामरी, तत्व सूर्य एवं स्वरूप महासरस्वती का है। संपूर्ण तेरहों अध्यायों में ध्यान के लिए एक-एक मंत्र है अर्थात कुल 13 मंत्र ध्यान के हैं।

    साधक को चरित्र की मां भगवती दुर्गा की प्रीति के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें। भक्तों को चाहिए कि कम से कम इसका श्रवण अवश्य करें। मां की कृपा निराली होती है। उनके आशीर्वाद से और भक्त की सच्ची भक्ति एवं निष्ठापूर्वक स्वकर्म से हर मुश्किल आसान हो जाता है ऐसी मान्यताएं आदिकाल से चली आ रही है जो सर्वथा उचित है।

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