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    'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल'

    By Edited By:
    Updated: Mon, 05 Mar 2012 08:31 PM (IST)

    रविकांत सुमन /दुमका

    'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'। मतलब मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है। एसपी कॉलेज के डॉ.केपी यादव द्वारा प्रस्तुत आलेख में समाहित उक्त श्लोक के अर्थ को चरित्रार्थ करने के संकल्प के साथ सोमवार को स्नातकोत्तर संताली विभाग का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ। यूजीसी प्रायोजित इस सम्मेलन में तीन दिनों तक 'संताली शिक्षा व संस्कृति' पर खूब चर्चा हुई। सम्मेलन में इसके विकास पर देश-विदेश के कई शिक्षाविदों ने अपने विचार प्रकट किये।

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    संताली भाषा की भी होगी पूजा : डॉ.खान

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    कुलपति प्रो.डॉ.एम.बशीर अहमद खान ने कहा कि तमिल की तरह संताली भाषा की पूजा के लिए इसका सर्वागीण विकास जरूरी है।

    ओलचिकी स्कूल की हो स्थापना : प्रो.माल

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    स्वामी विवेकानंद तकनीकी विवि छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो.डॉ.बीसी माल ने कहा कि संताली भाषा के विकास के लिए ओलचिकी लिपि पर आधारित स्कूल की स्थापना होना चाहिए।

    विकास के लिए जागरूकता जरूरी : प्रो.अलबर्ट

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    बांग्लादेश के प्रो.अलबर्ट सोरेन ने संताली भाषा व संस्कृति के विकास के लिए जागरूकता पर विशेष जोर दिया।

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    बढ़ गयी संताली भाषा की प्रासंगिता व भूमिका: टुडू

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    विभागाध्यक्ष डॉ.निकोदिमस टुडू ने कहा कि आठवीं अनुसूची में संताली भाषा को दर्ज किये जाने के बाद इसकी प्रासंगिकता व भूमिका दोनों बढ़ गयी है।

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    डॉ.लुईस ने संताल जीवन व कृषि पर प्रस्तुत किया आलेख

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    फोटो फाइल नेम

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    डॉ.लुईस मरांडी ने सम्मेलन में संताल जीवन व कृषि विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत किया। सम्मेलन के सफल संचालन में भी उनकी भूमिका अहम रही।

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    देव भाषा है संताली : प्रो.शर्मिला

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    फोटो फाइल नेम

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    प्रो.शर्मिला सोरेन ने संताली भाषा साहित्य व संस्कृति पर आलेख प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने बताया कि संताली आदिवासियों की मातृभाषा है। इसे देव भाषा भी कहा जाता है।

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    मातृभाषा को कभी न भूले : डॉ.धुनी

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    अप्रवासी भारतीय डॉ.धुनी सोरेन ने भाषा के विकास के लिए मातृभाषा को कभी नहीं भूलने की सीख दी।

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    सही आकलन के लिए अध्ययन जरूरी : डॉ.यादव

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    फोटो फाइल नेम

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    डॉ.केपी यादव ने कहा कि संताली जनजातियों की स्थिति का सही आकलन संताली भाषा व इसके साहित्य के अध्ययन के बाद ही किया जा सकता है।

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