फ्लोरोसिस से बचाव के लिए करें एफआरसी का प्रयोग
दुमका : फ्लोरोसिस प्रदूषित पेयजल से होनेवाली एक खतरनाक बीमारी है। शुरुआती दौर में इससे बचाव संभव है।
दुमका : फ्लोरोसिस प्रदूषित पेयजल से होनेवाली एक खतरनाक बीमारी है। शुरुआती दौर में इससे बचाव संभव है। रोग बढ़ जाने पर इसका इलाज संभव नहीं है। यह बीमारी पीनेवाले पानी में मौजूद फ्लोराइड की वजह से होती है। उक्त बातें सिदो-कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय परिसर में सोमवार को फ्लोरोसिस की समस्या, कारण व निवारण विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में मगध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान व रसायनशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बिहारी ¨सह ने कही।
व्याख्यानमाला का आयोजन रसायनशास्त्र स्नातकोत्तर विभाग की ओर से किया गया था। प्रो. बिहारी ने कहा कि देश के कुछ भागों में पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा पाए जाने के कारण कई गंभीर बीमारियां देखने को मिलती हैं। इनमें फ्लोरोसिस प्रमुख है। झारखंड के छोटानागपुर समेत सात जिलों में इस बीमारी ने पांव पसारा है। यह हानिकारक तत्व जमीन के अंदर भिन्न-भिन्न जगहों में विभिन्न स्तरों में पाया जाता है। प्रभावित क्षेत्र में खासकर चापाकल के पानी में यह पाया जाता है। फ्लोराइड की मात्रा पानी में मिलने से मनुष्य के शरीर के लिए हानिकारक है। इससे हड्डी, दांत व आदि अंगों पर काफी बुरा असर पड़ता है।
बचाव के उपाय : फ्लोरोसिस बीमारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड पानी को प्रयोगशाला में जांच करानी चाहिए। उच्च तकनीकवाले वाटर फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। जिस जगह किसी खास स्तर पर पाया जाता है तो चापाकल लगाते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि पाइप उस स्तर ऊपर या नीचे रखा जाए। ऐसी जगहों को सरकार चिह्नित कर वहां फ्लोराइड रिमूवल सेंटर (एफआरसी) की स्थापना करती है। इससे आसपास के लोग पानी पीने को लेते हैं। जो शुद्ध पीने योग्य होता है। प्रभावित क्षेत्र के लोगों को आंवला, साग, आयरन आदि का उपयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए। घर में हार्वे¨स्टग का होना जरूरी होना चाहिए। वर्षा के पानी के शुद्ध करने पीने का प्रयास करना चाहिए। यदि इस बीमारी से छोटा बच्चा ग्रसित हो जाए ओर तुरंत पता चल जाए तभी इलाज संभव है, वरना यह बीमारी लाईलाज है।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश सह बिहार के पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष धर्मपाल सिन्हा ने सामाजिक न्याय के तहत कहा कि संविधान में सभी को बराबर अधिकार दिया गया है। यदि कोई इस तरह के बीमारी से ग्रसित है तो कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार की जिम्मेदारी है कि पीड़ित लोगों को न्याय दिलाए। ऐसे प्रभावित लोगों को यदि पौष्टिक खाना नहीं मिल पाता है तो उसे भी देखना सरकार व समाज दोनों का काम है। लोगों को पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है। लोगों को ऐसा पौधा लगाना चाहिए कि 24 घंटा ऑक्सीजन छोड़े, जिससे घटती हुए पेड़ों की भरपाई कर सकें। उत्तम विचार के लिए महापुरुषों की जीवनी पढ़नी चाहिए। कहा आरक्षण का प्रत्येक 10 वर्ष में समीक्षा होनी चाहिए। हालांकि ऐसा नहीं हो पा रहा है।
इसके पूर्व कुलपति डॉ. कमर अहसन ने कहा कि देश के एक निश्चित भाग में प्रति वर्ष बाढ़ आती रहती है। बाढ़ समाप्ति के बाद स्थिति एकदम भयानक हो जाती है। क्योंकि बाढ़ का प्रति वर्ष आना निश्चित होने के कारण सरकार की ओर से इसके निवारण के लिए स्थाई विभाग का गठन कर दिया है। इसे सामाजिक न्याय कहा जाता है। विकास होगा तो प्रदूषण भी निश्चित रूप से होगा, लेकिन इसके लिए भी एक मापदंड तय किया है। प्रदूषण गरीब के बजाए समृद्ध लोग करते हैं और इसका खमियाजा गरीब लोग भरते हैं।
मंच संचालन डॉ. अजय कुमार सिन्हा व धन्यवाद ज्ञापन स्नातकोत्तर रसायनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. हसमत अली ने किया। व्याख्यानमाला में कुलपति ने शॉल व मोमेंटो देकर अतिथियों को सम्मानित किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी पदाधिकारी व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
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