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    World Suicide Prevention Day 2020: बड़े भाग मानुष तन पावा... जिंदगी से कर ले प्यार, त्याग दे खुदकुशी का विचार

    By MritunjayEdited By:
    Updated: Thu, 10 Sep 2020 02:54 PM (IST)

    World Suicide Prevention Day 2020 गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि गावा।। अर्थात बड़े भाग्य से मनुष्य का जीवन मिलता है।

    World Suicide Prevention Day 2020: बड़े भाग मानुष तन पावा... जिंदगी से कर ले प्यार, त्याग दे खुदकुशी का विचार

    धनबाद, जेएनएन। World Suicide Prevention Day 2020 ऐसी मान्यता है कि मनष्य का देह बड़े भाग्य से मिलता है। यह साैभाग्य देवताओं के लिए कठिन है। सामवेद में कहा गया है कि कई जन्मों के अच्छे कर्मों की वजह से मनुष्य का शरीर मिलता है। वैदिक परंपरा में माना जाता है कि मनुष्य का जन्म चाैरासी लाख योनियों में आत्मा भटकने के बाद मिलता है। मनुष्य के अलावा दूसरे सभी जन्मों में भोग ही प्रमुख रहता है। अच्छे कर्म केवल मनुष्य शरीर मिलने के बाद ही किए जा सकते हैं। वेदों में कहा गया है-मनुर्भव! यानी मनुष्य बनें। इसका अर्थ है कि केवल मनुष्य शरीर पाने से हम मनुष्य नहीं हो जाते, बल्कि इसके लिए अच्छे कर्म करने की जरूरत है। बेकार न जाए यह जन्म। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सदग्रंथनि गावा।। अर्थात बड़े भाग्य से, अनेक जन्मों के पुण्य से यह मनुष्य शरीर मिला है जिसकी महिला सभी शास्त्र हाते हैं कि यह देवताओं के लिए भी कठिन है। सार्थक जीवन मनुष्य जन्म कुछ अच्छा करने के लिए मिला है। इसलिए आज विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस-2020 पर हमें मनुष्य के जीवन की कीमत समझनी चाहिए। मनुष्य का जीवन आत्महत्या करने के लिए नहीं है। कुछ अच्छे कर्म कर गुजरने के लिए है। 

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    219 लोग खुद को पाए बेबस, दांव पर लगा दी जिंदगी 

    जीवन में जल्द से जल्द सब कुछ हांसिल कर लेने की तमन्ना, एक दूसरे आगे निकलने की होड़ में आज लोग बेवजह मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। इसमें जरा सी नाकामयाबी अखरने लगती है। फिर लोग अपनी जिंदगी तक को दांव पर लगा देते हैं। वर्तमान की परिस्थितियों को छोड़ भी तो इस दौरान आम लोगों को विपरीत परिस्थितियां झेलने को मजबूर होना पड़ा। लोग घरों में रहने को विवश हैं। काम-धंधे बंद है। नौकरी है तो संकट के बादल मडरा रहे हैं। कई लोग खुद को बेबस पाए और परिस्थितियों को नहीं झेल सके नतीजा अवसाद का शिकार होकर आत्महत्या कर ली। इस साल अब तक 219 लोगों ने आत्महत्या की। यदि केवल लॉकडाउन की बात करे तो चार माह में अप्रैल से लेकर 31 जुलाई तक 118 दिनों में कुल 113 लोगों ने अपनी जान दे दी। इनमें सबसे अधिक युवा थे। 51.5 प्रतिशत ये वे लोग थे। जिनके काम-धंधे चौपट हो गए। रोजगार का साधन छिन गया और कुछ बेहतर होने की उम्मीद खो बैठे। 22 फीसदी किशोर जिसमें लड़के-लड़कियां भी शामिल थी। इन दोनों उम्र वर्गों को मिला दें, तो लॉकडाउन के दौरान खुदकुशी करनेवालों में 70.7 प्रतिशत किशोर या युवा हैं। खुदकुशी करनेवाले बाकी 29.1 फीसदी लोग अधेड़ या बुजुर्ग थे। पिछले दो वर्षाें की बात करे तो 2018 में 457 आत्महत्या वहीं 2019 में 444 आत्महत्या के मामले दर्ज दर्ज हो चुके हैं। 

    18 से 29 वर्ष वाले ज्यादा करते हैं आत्महत्या

    आत्महत्या करनेवालों में सबसे ज्यादा 18 से 29 वर्ष के लोग शामिल हैं। इसके बाद 30 से 44 वर्ष के लोग आत्महत्या करते हैं। इसके बाद 14 से 17 वर्ष व 45 से 59 वर्ष के लोग यह अंतिम गलती करनेवालों में शामिल हैं। 60 वर्ष या इससे ज्यादा उम्र वाले लोग सबसे कम संख्या में आत्महत्या करते हैं।

    49 प्रतिशत ने आर्थिक तो 19 प्रतिशत ने पारिवारिक कलह में दी जान 

    लॉकडाउन के दौरान रोजगार के साधन छिन जाना और आर्थिक तंगी ही आत्महत्याओं की सबसे बड़ी वजह के रूप में सामने आई। करीब 49 प्रतिशत लोगों ने इन्हीं वजहों से जान दे दी। इनमें ज्यादातर युवा या अधेड़ वर्ग के लोग शामिल हैं। वहीं, 19 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक कलह या अन्य वजहों से जान दे दी। 10.3 प्रतिशत ने प्रेम-प्रसंग, परीक्षा में असफलता या परिजनों की डांट-फटकार के बाद खुदकुशी कर ली। 19 फीसदी आत्महत्याओं की वजह स्पष्ट नहीं है। 

    खुदकुशी करनेवालों में पुरुष ज्यादा

    एक और खास बात, आम तौर पर आत्महत्या करनेवालों में ज्यादा संख्या महिलाओं की होती है। लेकिन, लॉकडाउन के दौरान पुरुषों ने ज्यादा आत्महत्या की। 118 दिनों में 31 महिलाओं के मुकाबले 82 पुरुषों ने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

     

    चिंताजनक हैं आंकड़े 

    पिछले चार महीने में अकेले धनबाद में आत्महत्या के आंकड़े भयावह तस्वीर दिखाते हैं। वैसे तो आत्महत्या जैसा कदम लोग पहले भी उठाते आए हैं, लेकिन इन चार महीनों में जितने मामले आए हैं उनमें से कुछ ऐसे पक्ष हैं, जो लीक से अलग हैं। कुल 82 पुरुष और उसमें 71 फीसदी 40 वर्ष से कम के थे। अधिकतर लाॅकडाउन के आर्थिक कुप्रभाव से जुड़े। नौकरी का छूटना, रोजगार धंधे का बैठना, काम न मिलना आदि। यह प्रभाव निम्न सामाजिक आर्थिक वर्ग पर ज्यादा था और अधिकतर लोग परिवार चलाने वाले थे। जैसे-जैसे समय बढ़ा लोगों की उम्मीद टूटने लगी। आत्महत्या करने वाले अधिकतर लोग परिवार को चलाने वाले थे। यह समाज के लिए चिंता और चेतावनी दोनों ही है, क्योंकि इसका असर समाज पर किसी न किसी रूप में होगा। निदान क्या है और यह कैसे हो, यह विचारणीय है।

    इसके तीन मुख्य पक्ष 

    आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक। सबसे पहले मनोवैज्ञानिक पक्ष पर सोचना होगा, क्योंकि यही मनुष्य में उस पल के लिए जिम्मेदार है, जिसमें वह अंतिम निर्णय लेता है। यदि इसे टाल दिया जाए, तो कई जानें बच सकती हैं। हेल्पलाइन एक रास्ता है। किंतु हेल्पलाइन को एक स्वीकार्य विकल्प बनाने के लिए अभियान चलाना होगा। अधिकतर मामले नियोजित नहीं होते और उन्हें रोका जा सकता है। सामाजिक पक्ष पर यह सोचना होगा कि आबादी तो बहुत बढ़ गई, लेकिन लोग खुद में सिमट गए और मनुष्य की सामाजिक प्राणी की परिभाषा बदल गई। आर्थिक पक्ष का तो कुछ संस्थागत विकल्प ढूंढना होगा। लोगों के बीच में क्या है परेशानी आंकड़ों के मुताबिक लोगों में पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी का सफर खत्म कर लेते हैं. कई सारे लोग अपनी नौकरी या फिर शादीशुदा समस्याओं की वजह से परेशान होकर ऐसा कदम उठाते हैं. वहीं एग्जाम और बेरोजमागरी जैसी चीजें भी इस लिस्ट में हैं. अकेलेपन का शिकार होने की वजह से व्यक्ति आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा सकता है.

    लोग वर्तमान परिस्थिति से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं. यह केवल सामाजिक समस्या नहीं रही. वर्तमान स्थिति में केवल आत्महत्या रोकने के लिए कोई ड्राइव चला कर कुछ नहीं कर सकते हैं. आपके पास बताने के लिए भी कुछ नहीं है. जिनकी नौकरी जा रही, रोजगार जा रहा है, उनको क्या बतायेंगे? जिन चीजों से लोगों को तकलीफ है, उसका उपाय ढूंढना होगा। आनेवाले दिनों में परेशानी और बढ़ सकती है. केवल सुसाइड ही नहीं है। इसके साथ डिप्रेशन, नशा, हिंसा, रिश्तों का खराब होना भी है। इसी के बीच से रास्ता निकालने की कोशिश करनी होगी। निराशा से कैसे, निकले इसके लिए ठोस प्रयास करना होगा। 

    -डा. मीना श्रीवास्तव, मनोरोग विशेषज्ञ, बीबीएमकेयू

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