भक्ति मोक्ष का मार्ग नहीं, बल्कि यह मोक्ष से कहीं बढ़कर, इसे पा लिया तो फिर कुछ हासिल करने की जरूरत नहीं
आनंद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में रविवार को आनंद नगर में आनंद मार्ग की ओर से आयोजित त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन का पांचजन्य से शुभारंभ हुआ। देश व दुनिया भर के कई अन्य देशों से आनंदमार्गी साधक बड़ी संख्या में इसमें शामिल हुए।

जागरण संवादददता, धनबाद: आनंद पूर्णिमा के उपलक्ष्य में रविवार को आनंद नगर में आनंद मार्ग की ओर से आयोजित त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन का पांचजन्य से शुभारंभ हुआ। देश व दुनिया भर के कई अन्य देशों से आनंदमार्गी साधक बड़ी संख्या में इसमें शामिल हुए। धनबाद एवं इसके आसपास से भी हजारों आनंदमार्गियों ने आनंद नगर धर्म महासम्मेलन में सशरीर एवं वेब टेलीकास्ट के माध्यम से भाग लिया।
कार्यक्रम में आनंद मार्ग के पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने जीवन का लक्ष्य विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने आध्यात्मिक उद्बोधन में कहा कि शास्त्रों में मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बताए गए हैं। इनमें ज्ञान, कर्म और भक्ति प्रमुख रूप से शामिल हैं। बाबा श्रीश्री आनंदमूर्ति ने इसका खंडन करते हुए कहा कि भक्ति पथ नहीं है, बल्कि भक्ति लक्ष्य है, जिसे हमें प्राप्त करना है। साधारणत: लोग ज्ञान और कर्म के साथ भक्ति को भी पथ या मार्ग ही मानते हैं, परंतु ऐसा नहीं है।
उन्होंने कहा कि जीवन में जितनी भी अनुभूतियां होती हैं, उनमें भक्ति की अनुभूति सर्वश्रेष्ठ है। ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग के माध्यम से मनुष्य भक्ति में प्रतिष्ठित होते हैं। बाबा कहते हैं कि भक्ति मिल गई तो सब कुछ मिल गया। इसके बाद कुछ और प्राप्त करने को नहीं बचता। भक्ति को श्रेष्ठ बताया है। उन्होंने बताया कि मोक्ष प्राप्ति के उपाय में भक्ति श्रेष्ठ है। भक्ति आ जाने पर मोक्ष यूं ही प्राप्त हो जाता है। भक्त और मोक्ष में द्वंद्व होने पर भक्त की विजय होती है। मोक्ष यूं ही रह जाता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा कहते हैं कि मैं भक्तों के साथ रहता हूं। जहां वे मेरा गुणगान करते हैं, कीर्तन करते हैं। परम पुरुष के प्रति जो प्रेम है, उसे ही भक्ति कहते हैं। निर्मल मन से जब इष्ट का ध्यान किया जाता है तो भक्ति सहज उपलब्ध हो जाती है।

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