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    किन्नरों के भी होते बेटा-बेटी, नाती-नतिनी, यहां जन्म के बाद बनते अटूट रिश्ते... रिश्‍ता जुड़ा तो फिर जीवन भर निभाते हैं!

    By Deepak Kumar PandeyEdited By:
    Updated: Fri, 17 Jun 2022 08:39 PM (IST)

    खून के रिश्तों में स्नेह की डोर भले कमजोर हो जाए टूट जाए मगर किन्नरों के रिश्ते अटूट होते हैं। जो कभी नहीं टूटते। जन्म के बाद बनते हैं फिर प्रेम की डो ...और पढ़ें

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    जब कोई किन्नर गुरु गद्दी पर बैठती है तो अपनी सेवा के लिए कुछ शिष्यों का चयन करती है।

    डाॅ. प्रणेश, साहिबगंज: खून के रिश्तों में स्नेह की डोर भले कमजोर हो जाए, टूट जाए, मगर किन्नरों के रिश्ते अटूट होते हैं। जो कभी नहीं टूटते। जन्म के बाद बनते हैं, फिर प्रेम की डोर से मजबूत होते जाते हैं। इनमें बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतिनी जैसे रिश्ते होते हैं। एक बार रिश्ता बनने के बाद किन्नर जीवन भर मर्यादा निभाते हैं।

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    दरअसल, जब कोई किन्नर गुरु गद्दी पर बैठती है तो अपनी सेवा के लिए कुछ शिष्यों का चयन करती है। यहीं से रिश्तों का सिलसिला शुरू होता है। शिष्यों को भी अपना शिष्य रखने का अधिकार होता है। नए नए किन्नर आते जाते हैं और रिश्तों की डोर में बंधते जाते हैं। इस तरह इनका भी परिवार बनता है, जो बढ़ता जाता है। गुरु अपने शिष्य को बेटा व शिष्या को बेटी का दर्जा देते हैं। बेटे का शिष्य गुरु का पोता और बेटी का शिष्य नाती कहलाता है। यदि बेटे की शिष्या है तो पोती कहलाएगी व बेटी की शिष्या नतिनी। गुरु माता की उम्र की किन्नर को गुरु माता का चेला हमेशा मौसी कह कर पुकारेगा। गुरु के निधन के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा उनके शिष्यों के बीच होता है। गद्दी के हकदार भी शिष्य में से ही सबसे प्रिय व योग्य होता है। जो किन्नरों के हितों के प्रति गंभीर हो, उनकी सुरक्षा के प्रति सचेत।

    सुन ना सके ताने तो कलेजे पर पत्थर रख तोड़ा नाता

    साहिबगंज में किन्नर सम्मेलन में दार्जिलिंग से पहुंची सोनाली किन्नर का दर्द बातचीत के दौरान छलक गया। बात करते हुए उसकी आंखें अतीत में खो गईं। उसने बताया- दार्जलिंग के एक बड़े व्यवसायी परिवार में उसका जन्म हुआ था। भरापूरा परिवार था। माता-पिता करोड़पति थे। हमसे बहुत प्यार करते थे। उसे अपने साथ रखना चाहते थे। बावजूद पड़ोसियों और समाज के लोगों के तानों से टूट गए थे। सभी उनसे कहते, उनके घर किन्नर है, साथ क्यों रखे हो। उस समय पांच साल की थी, जब माता-पिता ही उसे किन्नरों को सौंप आए। तब से इनके बीच ही रहकर पली बढ़ी। फिर कभी माता-पिता के यहां नहीं गई। बिल्कुल दार्शनिक अंदाज में उसने कहा- जब माता-पिता ने ही उसे त्याग दिया तो फिर उनकी चिंता क्या करना। अब किन्नर समाज में ही उसका हर रिश्ता नाता है।

    सोनाली कहती है कि गरीब परिवारों में किन्नर के जन्म पर उनके माता-पिता को विशेष फर्क नहीं पड़ता, लेकिन उच्चवर्गीय परिवारों में उनके जन्म से समस्या गंभीर हो जाती है। लोग उस परिवार को ताने मार मारकर उसका जीना मुहाल कर देते हैं। वह कहती है कि कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को अलग नहीं करना चाहते, मगर किन्नर के मामले में मजबूर हो जाते हैं।