Sohrai 2021: दिवाली की तरह संथाल आदिवासी भी मनाते पंच पर्व, सिर्फ नाम का फर्क; जानिए
सनातन धर्मावलंबी पांच दिनों के दीप पर्व पर धनतेरस छोटी दिवाली दीपावली भैया दूज व गोवद्र्धन पूजा करते हैं। भगवान चित्रगुप्त की भी उपासना होती है। दूसरी ओर संथाल आदिवासियों का भी पांच दिन का सोहराय पर्व दीपावली के दिन से शुरू होता है।

बीके पाण्डेय, बोकारो। झारखंड में आदिवासियों की बड़ी आबादी है। बोकारो शहर में भी 12 फीसद से अधिक संथाल आदिवासी रहते हैं। एक ओर दीपावली का उत्साह पुरजोर है तो दूसरी ओर संथाल आदिवासी सोहराय पर्व की खुशियों में डूबे हैं। गुुरुवार को दीपावली है। इसके साथ ही आदिवासियों के सोहराय पर्व की भी शुरू हो गया है। इस दौरान प्रकृति व गोमाता की पूजा आदिवासी करते हैं। आज आदिवासियों को सनातन धर्म से अलग बताने की आवाजें उठ रही हैं, मगर अवलोकन करें तो पता चलेगा कि दोनों की परंपराएं एक दूसरे के काफी करीब हैं। धार्मिक रीति रिवाज भी प्रकृति पूजा से जुड़े हैं।
आपे सानामको दीपावली, छठ, का़ली पूजा़ आर सोहराय पो़रो़ब रेयाक् आ़डी-आ़डी सा़गुन जोहार। pic.twitter.com/d82FBEGuIU
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) November 4, 2021
सनातन धर्मावलंबी पांच दिनों के दीप पर्व पर धनतेरस, छोटी दिवाली, दीपावली, भैया दूज व गोवद्र्धन पूजा करते हैं। गोवद्र्धन पूजा के दिन गाय मां का पूजन भी होता है। भगवान चित्रगुप्त की भी उपासना होती है। दूसरी ओर संथाल आदिवासियों का भी पांच दिन का सोहराय पर्व दीपावली के दिन से शुरू होता है। पांचों दिन अलग-अलग विधि से वे पूजन व प्रार्थना कर अपनी परंपराओं का निर्वहन करते हैं। आदिवासी समाज धरती मां व गोवंशी की पूजा में लीन रहता है। दीपावली व सोहराय पर्व सामाजिक व धार्मिक एकता के प्रतीक हैं। दोनों की परंपराएं हर वर्ग को शिक्षित करती हैं।
पांच दिन आदिवासी इस प्रकार मनाते सोहराय पर्व
पहला दिन : जेहरा स्थल में गोड पूजा विधि विधान से नायके कराते हैं। इसमें क्या बच्चे क्या बड़े, सभी शामिल होते हैं।
दूसरा दिन : गोड़ा बोंगा (गोहाल के देवता ) की दूसरे दिन पूजा होती है। गोशाला या गाय बैल के रहने वाले स्थान पर आदिवासी जाकर पूजा करते हैं। घर के देवता की पूजा कर पशुधन एवं परिवार की सुरक्षा का वरदान मांगते हैं।
तीसरा दिन : तीसरे दिन आदिवासी खुंटो पूजा करते हैं। इस पूजा में गो गाय व बैल को घर से बाहर खड़ा कर स्नान कराया जाता है। फिर उनकी पूजा होती है। यह पूजा पशुओं के निरोग रहने एवं खेती में पशुओं के योगदान को याद करने को होती है। पूजा कर ईश्वर को बताया जाता है कि उनके द्वारा प्रदत्त जीवों की रक्षा के लिए पूजा हुई है। पशुओं को धान के पौधे की माला पहनाते हैं। उनके पैर की पूजा की जाती है। दीपक जलाकर आरती उतारी जाती है।
चौथा दिन : चौथे दिन गांव के युवा जाजले पूजा करते हैं। वे घर-घर घूम कर संथाली नृत्य करते हुए अनाज संग्रह करते हैं। संदेश यही कि प्रकृति की कृपा से अनाज मिलता है।
पांचवा दिन: जाजले सोय पूजा में गांव के प्रमुख स्थल पर भोज होता है। यहां सभी लोग ग्राम देवता की पूजा में शामिल होते हैं। एक ही भोजन पूरा गांव करता है।
पांच दिनों तक चलने वाले सोहराय पर्व में संथाल आदिवासी अनाज देने वाले ईश्वर, अनाज उत्पादन में योगदान देने वाले पशुओं के प्रति आभार जताते हैं। पर्व पर पांचों दिन पूजा का विधान है। इस पूजा में क्या बच्चे क्या बड़े सभी शरीक होते हैं।
-करण मुर्मू, नायके, मांझी टोला बालीडीह, बोकारो
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