भोजन की तलाश में मीलों की दूरी तय कर धनबाद पहुंचे साइबेरियन पक्षी, याददाश्त इतनी तेज की इंसान जाए हार
साइबेरिया से हजारों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षियां धनबाद पहुंच रही हैं। सर्दी के मौसम में साइबेरिया में बर्फ जम जाने के कारण इनके सामने भोजन का संकट खड़ा हो जाता है इसलिए ये यहां आते हैं।

आशीष सिंह, धनबाद। मैथन डैम और तोपचांची झील प्रवासी पक्षियों का ठिकाना है। यहां साइबेरियन पक्षी भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान होते हुए चार हजार किमी का सफर तय कर पहुंचते हैं। एक माह से अधिक निवास कर अपने वतन लौट जाते हैं।
मीलों की दूरी तय कर धनबाद में पहुंचे रहे हैं पक्षी
ये कभी रास्ता नहीं भटकते। इनकी स्मरण शक्ति काफी तेज है। हर वर्ष करीब 250 से 330 साइबेरियन पक्षी पहुंचते हैं। इनका एक रूट अफगानिस्तान, पाकिस्तान, गुजरात होते हुए धनबाद का है।
दूसरा हिमालय से चंडीगढ़ होते हुए धनबाद और तीसरा नार्थ ईस्ट से रूट है। इन पक्षियों में कामन पोचार्ड, आरसीपी, रूडी शेल्डक, रू-शी, रू-शेल एवं गार्गेनी पक्षियों की प्रजातियां हैं।

साइबेरिया से इस वजह से कर रहे भारत का रूख
साइबेरिया में तापमान जाड़े में माइनस में पहुंचता है। ऐसे में इन पक्षियों के समक्ष भोजन का संकट खड़ा होता है। ये पक्षी दिन में दो बार ही भोजन करते हैं। सुबह का नाश्ता साढ़े आठ बजे तक हो जाता है। इसके बाद शाम पांच से छह बजे तक दूसरी बार भोजन करते हैं। अमूमन पानी के अंदर के जलीय पौधे इनका भोजन है।
घर छोड़ने से पहले करते हैं भरपेट भोजन
धनबाद बर्ड्स संस्था के संस्थापक एवं बर्ड वाचर एके सहाय कहते हैं कि अपना घर छोड़कर यहां आने से पहले ये दो-तीन महीने तक भरपेट भोजन करते हैं। हजारों किमी की दूरी तय करने के कारण एनर्जी खर्च होती है। हर दिन औसतन 40 किमी की उड़ान भरते हैं।
पिछले एक दशक में धनबाद के दोनों ठिकानों पर प्रवासी पक्षियों की संख्या बढ़ी है। कुछ वर्ष पहले तक यह संख्या 80-90 हुआ करती थी, जबकि इस बार जनवरी-फरवरी माह में 201 प्रवासी पक्षी पहुंचे। प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए यह एक अच्छा संकेत है।
मनुष्य से दस गुना अधिक यादाश्त
एके सहाय कहते हैं कि साइबेरियन पक्षियों की मनुष्य से दस गुना अधिक यादाश्त होती है। यही कारण है कि से चार हजार किमी का सफर तय करने के बाद भी अपने गंतव्य तक आसानी से पहुंच जाते हैं। साइबेरियन पक्षियों से धनबाद की तोपचांची झील और मैथन डैम हर वर्ष गुलजार रहता है।
साइबेरिया में कड़ाके की ठंड में भोजन मिलना हो जाता है मुश्किल
साइबेरिया में तापमान माइनस में पहुंच जाता है। ऐसे में इन पक्षियों के समक्ष भोजन का संकट खड़ा हो जाता है। भारत में सर्दियाें में भी इनके लिए पर्याप्त भोजन है। ये साइबेरियन पक्षी दिन में दो बार ही भोजन करते हैं। ये पक्षी शाकाहारी होते हैं।
प्रत्येक वर्ष तीन रूट से लगभग चार हजार किमी की दूरी तय कर साइबेरियन पक्षी तोपचांची एवं मैथन पहुंचते हैं। अपना घर छोड़कर यहां आने से पहले दो-तीन महीने तक भरपेट भोजन करते हैं। हजारों किमी की दूरी तय करने के कारण एनर्जी खर्च होती है इसलिए ऐसा करते हैं।
इंसान की तुलना में इनमें कई गुना होती है एनर्जी
हर दिन औसतन 40 किमी की उड़ान भरते हैं। ये पक्षी अपना रास्ता नहीं भटकते। इसका कारण यह है कि इनकी तंत्रिका मनुष्य की तुलना में अधिक सक्रिय और सटीक हाेती है। सिर्फ भोजन के लिए हजारों किमी की दूरी तय कर यहां आते हैं।
साइबेरिया में माइनस में तापमान जाने के कारण प्लांट खाने को नहीं मिलता। ये पक्षी मछली नहीं खाते। तोपचांची झील और मैथन डैम में पौष्टिक से भरपूर जलीय पौधे मौजूद हैं।

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